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ज्योतिषाचार्य डॉ. राधाकृष्ण श्रीमाली कहते हैं कि माता-पिता एवं गुरुजनों की सेवा करने से ग्रहों की प्रतिकूल दशा भी अनुकूल हो जाती है।

वैसे तो संसार में सभी प्राणी एवं वनस्पति जगत भी ग्रहों की चाल से किसी न किसी रूप में प्रभावित होते हैं लेकिन समस्या उत्पन्न क्यों हुई और उसका समाधान कैसे होगा इस बात का अधिक महत्व होता है। अतः समस्याओं का समाधान आध्यात्मिक साधना से ही संभव होता है।

शास्त्रों में अनंत ज्ञान भरा हुआ है लेकिन प्रायः लोग उनका शाब्दिक अर्थ लेकर सामान्य धरातल पर ही रह जाते हैं। आवश्यकता है मंत्र और स्तोत्रों के लाक्षणिक अर्थ को जानने के उदाहरणों में डॉ. श्रीमाली ने 'श्मशानेष्वा क्रीड़ा स्मरहर पिशाचा सहचरा' आदि श्लोकों के माध्यम से स्तोत्रों के रहस्यात्मक लाक्षणिक अर्थ बताए।

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ज्योतिर्विद सुरेश श्रीमाली ने कहा यदि लग्न पत्रिका में कोई ग्रह नीच राशि में भी क्यों न बैठा हो उसका प्रभाव आध्यात्मिक साधकों पर एवं माता-पिता की सेवा करने वालों पर नहीं पड़ता। अतः जन्म के समय ग्रह जहाँ भी बैठ गए हों बैठे रहने दीजिए लेकिन आप अपने माता-पिता एवं गुरुजनों के चरणों में बैठ जाइए सब ठीक हो जाएगा।

भाग्य और कर्म दोनों ही अपना-अपना महत्व रखते हैं। कर्म को एक से लेकर नौ अंक मान लों और भाग्य को शून्य। लेकिन कर्म के साथ भाग्य जोड़ दोगे तो उसका मान 10 गुना बढ़ता ही जाएगा। लेकिन केवल भाग्य भरोसे बैठकर कर्म भी क्षीण होने लगते हैं।

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