फाल्गुन अमावस्या 2020: जानिए क्यों खास है अमावस्या?
ज्योतिष शास्त्र में चंद्र को मन का देवता माना गया है। अमावस्या के दिन चंद्रमा दिखाई नहीं देता। ऐसे में जो लोग अति भावुक होते हैं, उन पर इस बात का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। लड़कियां मन से बहुत ही भावुक होती हैं। इस दिन चंद्रमा नहीं दिखाई देता तो ऐसे में हमारे शरीर में हलचल अधिक बढ़ जाती है।
जो व्यक्ति नकारात्मक सोच वाला होता है उसे नकारात्मक शक्ति अपने प्रभाव में ले लेती है। अत: अमावस्या के दिन विशेष सावधानी रखनी चाहिए। धर्मग्रंथों में चंद्रमा की 16वीं कला को 'अमा' कहा गया है। चंद्रमंडल की 'अमा' नाम की महाकला है जिसमें चंद्रमा की 16 कलाओं की शक्ति शामिल है। शास्त्रों में अमा के अनेक नाम आए हैं, जैसे अमावस्या, सूर्य-चंद्र संगम, पंचदशी, अमावसी, अमावासी या अमामासी।
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार अमावस्या के दिन चंद्र नहीं दिखाई देता अर्थात जिसका क्षय और उदय नहीं होता है उसे अमावस्या कहा गया है। अमावस्या माह में एक बार ही आती है। शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृ देव को माना जाता है। अमावस्या सूर्य और चंद्र के मिलन का काल है। इस दिन दोनों ही एक ही राशि में रहते हैं।
इसके अलावा अमावस्या अगर सोमवार, मंगलवार व गुरुवार (बृहस्पतिवार) को आती है और यदि नक्षत्र अनुराधा, विशाखा या स्वाति रहता है तो यह भी बहुत ही शुभ योग माना जाता है। अत: इस दिन नकारात्मक या बुरे विचारों से दूर रहना लाभदायी रहता है। वर्ष के मान से उत्तरायण में और माह के मान से शुक्ल पक्ष में देव आत्माएं सक्रिय रहती हैं तो दक्षिणायन और कृष्ण पक्ष में दैत्य आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं।
जब दानवी आत्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं, तब मनुष्यों में भी दानवी प्रवृत्ति का असर बढ़ जाता है इसीलिए उक्त दिनों के महत्वपूर्ण दिन में व्यक्ति के मन-मस्तिष्क को धर्म की ओर मोड़ दिया जाता है। अमावस्या के दिन भूत-प्रेत, पितृ, पिशाच, निशाचर जीव-जंतु और दैत्य ज्यादा सक्रिय और उन्मुक्त रहते हैं। ऐसे दिन की प्रकृति को जानकर विशेष सावधानी रखनी चाहिए।
अमावस्या के दिन विशेष करके किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। इसके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते हैं। जानकार लोग तो यह कहते हैं कि चौदस, अमावस्या और प्रतिपदा उक्त 3 दिन पवित्र बने रहने में ही भलाई है।
प्रेत के शरीर की रचना में 25 प्रतिशत फिजिकल एटम और 75 प्रतिशत ईथरिक एटम होता है। इसी प्रकार पितृ शरीर के निर्माण में 25 प्रतिशत ईथरिक एटम और 75 प्रतिशत एस्ट्रल एटम होता है। अगर ईथरिक एटम सघन हो जाए तो प्रेतों का छायाचित्र लिया जा सकता है और इसी प्रकार यदि एस्ट्रल एटम सघन हो जाए तो पितरों का भी छायाचित्र लिया जा सकता है।