भगवान श्री गणेशजी आदिकाल से पूजित रहे हैं। वेदों में, पुराणों में (शिवपुराण, स्कंद पुराण, अग्नि पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि) में गणेशजी के संबंध में अनेक लीला कथाएं तथा पूजा-पद्धतियां मिलती हैं। उनके नाम से गणेश पुराण भी सर्वसुलभ है।
प्राचीनकाल में अलग-अलग देवता को मानने वाले संप्रदाय अलग-अलग थे। श्री आदिशंकराचार्य द्वारा यह प्रतिपादित किया गया कि सभी देवता ब्रह्मस्वरूप हैं तथा जन साधारण ने उनके द्वारा बतलाए गए मार्ग को अंगीकार कर लिया तथा स्मार्त कहलाए।
देवता कोई भी हो, पूजा कोई भी हो, गणेश पूजन के बगैर सब निरर्थक है। देखें-
'विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।
तथा
'महिमा जासु जान गनराऊ।
प्रथम पूजित नाम प्रभाऊ।।
मुद्गल पुराण में 'वक्रतुण्डाय हुं' जप का निर्देश दिया गया है। गणेशजी को प्रसन्न करने के लिए कई पूजा-व्रत करने का निर्देश दिया गया है जिन्हें करके गणेशजी को प्रसन्न किया जा सकता है। वे निम्नलिखित हैं -
कैसे करें शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष में गणेश पूजन :-
* शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को व्रत कर गणेश पूजन का गणेशजी द्वारा स्वयं निर्देश दिया गया है।
* कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को व्रत कर चन्द्र दर्शन कर गणेश पूजन कर ब्राह्मण भोजन करवाने से अर्थ-धर्म-काम-मोक्ष सभी अभिलाषित पदार्थ पाए जा सकते हैं, ऐसा स्वयं गणेशजी ने कहा है।
* प्रत्येक माह कृष्ण पक्ष 4 के दिन संकट (संकष्टी) चतुर्थी तथा चौथमाता का व्रत किया जाता है।
* दिनभर निराहार उपवास किया जाता है।
* चन्द्रोदय होने पर अर्घ्य देकर तथा गणेशजी एवं चौथ माता की पूजा करके लड्डू का भोग लगाकर भोजन करते हैं।
* वैशाख कृष्ण 4 से ही चौथमाता का व्रत प्रारंभ करते हैं।