श्री गुरु पूर्णिमा : कैसे मनाएं घर में पर्व जब कोई गुरु नहीं हो...ग्रहण के कारण इस समय कर लें पूजन

जीवन में हर कार्य किसी न किसी के द्वारा सिखाया जाता है। वह 'गुरु' कहलाता है। साधार‍णतया गुरु का महत्व अध्यात्म में सर्वोपरि माना गया है जिसमें दीक्षा किसी न किसी रूप में दी जाकर शिष्य की देखरेख उसके कल्याण की भावना से की जाती है।

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सभी धर्मों में गुरु का अपनी-अपनी तरह से महत्व है। कुंडलिनी जागरण के लिए सर्वोपरि सहस्रार चक्र में गुरुदेव का वास बतलाया गया है, जो सबके आखिर में सिद्ध होता है।
 
वे लोग बड़े सौभाग्यशाली होते हैं जिन्हें किसी सद्गुरु से दीक्षा मिली हो। वे लोग जिन्हें गुरु उपलब्ध नहीं है और साधना करना चाहते हैं उनका प्रतिशत समाज में अधिक है। अत: वे इस प्रयोग से लाभान्वित हो सकते हैं।

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सर्वप्रथम एक चावल की ढेरी श्वेत वस्त्र पर लगाकर उस पर कलश-नारियल रख दें। उत्तराभिमुख होकर सामने शिवजी का चित्र रख दें। 
 
शिवजी को गुरु मानकर निम्न मंत्र पढ़कर श्रीगुरुदेव का आवाहन करें-
 
'ॐ वेदादि गुरुदेवाय विद्महे, परम गुरुवे धीमहि, तन्नौ: गुरु: प्रचोदयात्।।'
 
हे गुरुदेव! मैं आपका आह्वान करता हूं। 
 
फिर यथाशक्ति पूजन करें, नैवेद्यादि आरती करें तथा 'ॐ गुं गुरुभ्यो नम: मंत्र' की 11, 21, 51 या 108 माला करें।
 
यदि किसी विशेष साधना को करना चाहते हैं, तो उनकी आज्ञा गुरु से मानसिक रूप से लेकर की जा सकती है। 
 
विशेष इस वर्ष 27 जुलाई 2018 को आषाढ़ी पूर्णिमा है उसी दिन रात्रि को चन्द्रग्रहण है। अत: गुरु पूजन, दिन के 2 बजे के पहले ही पूर्ण कर लें, बाद में सूतक लग जाएगा। रात्रि में ग्रहण के दौरान जप किया जा सकता है तथा विशेष लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
 
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