मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) गुरुवार, 16 दिसंबर को है। प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है। दिन के हिसाब से इस व्रत का महत्व भी अलग-अलग होता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसी दिन सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है तथा धनु संक्रांति होती है। इसी दिन नौवें हिंदू महीने की शुरुआत भी हो जाती है।
महत्व Importance- त्रयोदशी तिथि या प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने का विधान है। इसी दिन अनंग त्रयोदशी व्रत भी किया जाएगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार हर माह दो प्रदोष व्रत आते हैं, जो कि त्रयोदशी तिथि के दिन रखा जाता है। मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी के दिन गुरु प्रदोष व्रत पड़ रहा है। इस दिन बृहस्पतिदेव तथा शिव जी के पूजन का विशेष महत्व है। प्रदोष व्रत में पूजन सायंकाल के समय प्रदोष मुहूर्त में ही करने का विधान है। इस बार दिसंबर महीने का दूसरा प्रदोष व्रत भी गुरुवार के दिन ही है। गुरुवार होने के कारण इस दिन गुरु प्रदोष व्रत भी रहेगा। भगवान शिव की कृपा प्राप्ति के लिए गुरु प्रदोष व्रत के दिन मंत्र जाप भी अवश्य ही करना चाहिए।
गुरु प्रदोष व्रत पूजन के शुभ मुहूर्त Pradosh Vrat Date n Muhurat
इस बार मार्गशीर्ष शुक्ल त्रयोदशी तिथि का प्रारंभ बुधवार, 15 दिसंबर 2021 को देर रात्रि 02.01 मिनट पर हो रहा है और इसका समापन शुक्रवार, 17 दिसंबर को प्रात: 04.40 मिनट पर होगा। तिथि के हिसाब से प्रदोष व्रत पूजन का शुभ मुहूर्त गुरुवार, 16 दिसंबर को प्राप्त हो रहा है। अत: प्रदोष व्रत 16 दिसंबर किया जाएगा और प्रदोष काल में शाम के समय पूजन-अर्चन किया जाएगा।
अत: प्रदोष व्रत रखने वालों के लिए सायं 05.27 मिनट से रात 08.11 मिनट के बीच पूजन करना उचित रहेगा। कुल मिलाकर पूजन अवधि का समय 02 घंटे 44 मिनट तक रहेगा।
1 जल से भरा हुआ कलश, बेल पत्र, धतूरा, भांग, कपूर, सफेद और पीले पुष्प एवं माला, आंकड़े का फूल, सफेद और पीली मिठाई, सफेद चंदन, धूप, दीप, घी, सफेद वस्त्र, आम की लकड़ी, हवन सामग्री, 1 आरती के लिए थाली।
पूजन विधि- Pradosh Vrat Worship
- प्रदोष व्रत के दिन व्रतधारी को प्रात:काल नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि करके बृहस्पतिदेव तथा शिव-पार्वती का पूजन करना चाहिए।
- पूरे दिन निराहार रहकर शिव के प्रिय मंत्र 'ॐ नम: शिवाय' का मन ही मन जाप करना चाहिए।
- तत्पश्चात सूर्यास्त के पश्चात पुन: स्नान करके भगवान शिव का षोडषोपचार से पूजन करना चाहिए।
- नैवेद्य में जौ का सत्तू, घी एवं शकर का भोग लगाएं।
- तत्पश्चात आठों दिशाओं में 8 दीपक रखकर प्रत्येक की स्थापना कर उन्हें 8 बार नमस्कार करें।
- उसके बाद नंदीश्वर (बछड़े) को जल एवं दूर्वा खिलाकर स्पर्श करें।
- शिव-पार्वती एवं नंदकेश्वर की प्रार्थना करें।
- गुरु प्रदोष व्रत तथा शिव जी की कथा पढ़ें या सुनें।
- अंत में शिव जी की आरती करें।
- प्रसाद बांटें तत्पश्चात भोजन ग्रहण करें।
कथा- Pradosh Vrat Katha
इस व्रत की कथा के अनुसार एक बार इंद्र और वृत्तासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। यह देख वृत्तासुर अत्यंत क्रोधित हो स्वयं युद्ध को उद्यत हुआ। आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया। सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहूंचे। बृहस्पति महाराज बोले- पहले मैं तुम्हें वृत्तासुर का वास्तविक परिचय दे दूं।
वृत्तासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया। पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया। वहां शिवजी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहासपूर्वक बोला- 'हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं किंतु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे।'
चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी शिवशंकर हंसकर बोले- 'हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है। मैंने मृत्युदाता-कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारणजन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो!' माता पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ से संबोधित हुईं- 'अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा- अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं।'
जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्तासुर बना। गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- 'वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है अत हे इंद्र! तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो।'
देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इंद्र ने शीघ्र ही वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शांति छा गई। अत: प्रदोष व्रत के दिन हर शिव भक्त को यह कथा अवश्य पढ़ना चाहिए।