27 अप्रैल 2023 का दिन अत्यंत शुभ और मंगलकारी है। इस दिन गुरु पुष्य नक्षत्र का शुभ संयोग है साथ ही इस दिन ही गुरु का उदय होना जा रहा है।
ह म सभी जानते हैं कि शुक्र या गुरु के तारे के अस्त होने के बाद कोई भी मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। 28 मार्च को गुरु अस्त हो गए थे। 27 अप्रैल, 2023 को 2 बजकर 27 मिनट पर गुरु ग्रह का उदय होगा। गुरु का उदय मेष राशि में होगा। गुरु तारे के उदय होते ही मांगलिक कार्यों में तेजी आएगी।
गुरु पुष्य अमृत योग से पहले जानिए कि पुष्य नक्षत्र क्या है? और क्या है इसका महत्व
- पुष्य नक्षत्र को नक्षत्रों का राजा कहा जाता है।
- 27 नक्षत्रों के क्रम में आठवें स्थान पर पुष्य नक्षत्र आता है।
- रविवार, बुधवार व गुरुवार को आने वाला पुष्य नक्षत्र अत्यधिक शुभ होता है।
- ऋग्वेद में इसे मंगलकर्ता, वृद्धिकर्ता एवं आनंदकर्ता कहा गया है।
- पुष्य नक्षत्र में खरीदी गई कोई भी वस्तु बहुत लंबे समय तक उपयोगी रहती है, शुभ फल प्रदान करती है, क्योंकि यह नक्षत्र स्थाई होता है।
- हर महीने में पुष्य नक्षत्र का शुभ योग बनता है।
- चंद्र वर्ष के अनुसार महीने में एक दिन चंद्रमा पुष्य नक्षत्र के साथ संयोग करता है। इस मिलन को अत्यंत शुभ कहा गया है।
- पुष्य नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं और स्वामी शनि हैं।
- पुष्य नक्षत्र में जन्म लेने वाले लोग सर्वगुण संपन्न, भाग्यशाली तथा अतिविशिष्ट होते हैं।
- पुष्य नक्षत्र के सिरे पर बहुत से सूक्ष्म तारे हैं जो कांति घेरे के अत्यधिक समीप हैं।
मुख्य रूप से इस नक्षत्र के तीन तारे हैं जो एक तीर (बाण) की आकृति के समान आकाश में दिखाई देते हैं। इसके तीर की नोक कई बारीक तारा समूहों के गुच्छ (पुंज) के रूप में दिखाई देती है।
आकाश में इसका गणितीय विस्तार 3 राशि 3 अंश 20 कला से 3 राशि 16 अंश 40 कला तक है।
- पुष्य नक्षत्र पर गुरु, शनि और चंद्र का प्रभाव होता है इसलिए सोना, चांदी, लोहा, बही खाता, परिधान, उपयोगी वस्तुएं खरीदना और बड़े निवेश आदि अत्यंत शुभ माने जाते हैं। इस नक्षत्र के देवता बृहस्पति हैं इसलिए गुरुवार को आने वाले पुष्य नक्षत्र का विशेष महत्व है। गुरु की कारक धातु सोना है। स्वामी शनि है अत: लोहा और चंद्र का प्रभाव रहता है इसलिए चांदी खरीदते हैं। स्वर्ण, लोहा (वाहन आदि) और चांदी की वस्तुएं खरीदी जा सकती है।
27 अप्रैल 2023 को गुरु पुष्य अमृत योग का संयोग तो है ही पर इस दिन ग्रह गोचर की स्थिति बहुत श्रेष्ठ बन रही है। शनिदेव अपनी ही कुंभ राशि में विराजमान हैं। चंद्र देव अपनी ही कर्क राशि में विराजमान हैं। 12 साल के बाद गुरु का मेष राशि में आगमन हो रहा है और इसी राशि में गुरु उदित भी हो रहे हैं। गुरु पुष्य योग का संयोग इस शुभ दिन को और दुर्लभ बना रहा है। 27 अप्रैल का यह संयोग अक्षय तृतीया के समान ही पुण्य फलदायक है।
क्या करें
*गुरु उदित के दिन बन रहे गुरु पुष्य अमृत शुभ संयोग में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करना चाहिए।
*लक्ष्मी नारायण की दूध, दही, शहद, घी, गंगाजल आदि चीजों के साथ पंचामृत से स्नान कराकर पूजा-पाठ करना चाहिए।
* गुरुवार का व्रत रखें। बृहस्पतिवार व्रत को इस दिन से साल भर के लिए भी ले सकते हैं।
* मस्तक पर केसर का या पीला तिलक लगाएं।
* पीपल की जड़ में जल चढ़ाएं।
* साधु अथवा ब्राह्मणों की सेवा करें व उनका आशीर्वाद धारण करें।
* पुखराज या सुनहला तर्जनी अंगुली में पहनें।
* हरिवंश-पुराण का पाठ करें।
* पीले फूल वाले पौधे घर के बगीचे में लगाएं।
* पीला-अनाज, पीला-वस्त्र, स्वर्ण, घी, पीला-फूल, पीला-फल, पुखराज, हल्दी, पुस्तक, शहद, शक्कर, छाता एवं दक्षिणा गुरु पुष्य अमृत योग के दिन दान करें।
* गुरु पुष्य अमृत योग को केले के पेड़ की पूजा कराना शुभ माना गया है।
* गुरु पुष्य अमृत योग में रुद्राभिषेक करना चाहिए।
* गुरु पुष्य अमृत योग में पांच मुखी रुद्राक्ष धारण करें।
* यदि संभव हो तो व्यापार में वृद्धि के लिए गुरु-पुष्य योग में केले की जड़ अपने दाहिनी भुजा में बांधें।
* बरगद के वृक्ष में गुरु पुष्य अमृत योग में हल्दीयुक्त कच्चा दूध चढ़ाएं।
* गुरु पुष्य अमृत योग में पीली कदली के पुष्पों को घर में लगाएं।
* गुरु पुष्य अमृत योग में गरीबों को पीली वस्तुएं और पुस्तकें दान करें।
* गुरु पुष्य अमृत योग में केले के पेड़ में हल्दीयुक्त जल समर्पित करें।
* गुरु पुष्य पूजा के लिए शुभ समय संध्या काल माना जाता है।
* गुरु पुष्य अमृत योग में भगवान शिव का पूजन करें। श्रीरुद्र का पाठ करें। गुरु के बीज मंत्र (19,000 जप) का गुरु पुष्य से आरंभ कर प्रतिदिन संध्या समय 40 दिन तक करें।
गुरु पुष्य अमृत योग दान-द्रव्य : पुखराज, सोना, कांसी, चने की दाल, खांड, घी, पीला कपड़ा, पीला फूल, हल्दी, पुस्तक, घोड़ा, पीला फल दान करना चाहिए।
गुरु पुष्य अमृत योग 27 अप्रैल को प्रातः काल 6 बजकर 59 मिनट से अर्थात 7 बजे से प्रारंभ होकर पूरे दिन रहेगा।
देवगुरु बृहस्पति कौन हैं?
*देवगुरु बृहस्पति महर्षि अंगिरा के पुत्र और देवताओं के पुरोहित हैं।
*इन्होंने प्रभास तीर्थ में भगवान शंकरजी की कठोर तपस्या की थी जिससे प्रसन्न होकर प्रभु ने उन्हें देवगुरु का पद प्राप्त करने का वर दिया था।
*इनका वर्ण पीला है तथा ये पीले वस्त्र धारण करते हैं।
*यह कमल के आसन पर विराजमान हैं तथा इनके चार हाथों में क्रमश:- दंड, रुद्राक्ष की माला, पात्र और वरमुद्रा सुशोभित हैं।
*इनका वाहन रथ है जो सोने का बना हुआ है और सूर्य के समान प्रकाशमान है।
*उसमें वायुगति वाले पीले रंग के आठ घोड़े जुते हुए हैं।
*इनका आवास स्वर्ण निर्मित है।
*ये अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें सम्पत्ति तथा बुद्धि प्रदान कर उन्हें सन्मार्ग पर चलाते हैं और विपत्तियों में उनकी रक्षा करते हैं। शरणागतवत्सलता इनमें कूट-कूट कर भरी है।
*इनकी तीन पत्नियां हैं। पहली पत्नी शुभा से सात कन्याएं उत्पन्न हुई हैं। दूसरी पत्नी तारा से सात पुत्र तथा एक कन्या है तथा तीसरी पत्नी ममता से दो पुत्र, भरद्वाज और कच हुए हैं। कच ने ही दैत्य गुरु शुक्राचार्य से मृतसंजीवनी विद्या सीख कर देवताओं की मदद की थी।
* बृहस्पति प्रत्येक राशि में एक-एक साल तक रहते हैं। वक्रगति होने पर अंतर आ जाता है। इनकी महादशा सोलह साल की होती है। ये मीन और धनु राशि के स्वामी हैं।
इनका सामान्य मंत्र है : ॐ बृं बृहस्पतये नम:” एक निश्चित समय और संख्या में श्रद्धानुसार इसका जप करना चाहिये। जाप का समय संध्या काल है।