होली देती है भविष्य के संकेत, पढ़ें विशेष जानकारी...

* तंत्र साधना एवं मंत्र सिद्धि के लिए श्रेष्ठ होती है होली की रात, पढ़ें मुहूर्त भी
 
होली वैसे तो रंगों का त्योहार है लेकिन हमारे सनातन धर्म में होली के पर्व का विशेष धार्मिक महत्व है। होली से जुड़ी प्रह्लाद की कथा तो आप सभी को भली-भांति विदित ही है। लेकिन होली की रात्रि यंत्र निर्माण, तंत्र साधना एवं मंत्र सिद्धि के लिए एक श्रेष्ठ मुहूर्त होती है। होली की रात्रि को संपन्न की गई साधना शीघ्र सफल व फलदायी होती है। आइए, जानते हैं होली से जुड़ीं कुछ विशेष बातें-
 
होली से भविष्य संकेत -
 
प्राचीन समय में होली के पर्व पर होलिकादहन के उपरांत उठते हुए धुएं को देखकर भविष्य कथन किया जाता था। यदि होलिकादहन से उठा धुआं पूर्व दिशा की ओर जाता है तब यह राज्य, राजा व प्रजा के लिए सुख-संपन्नता का कारक होता है। यदि होलिका का धुआं दक्षिण दिशा की ओर जाता है तब यह राज्य, राजा व प्रजा के लिए संकट का संकेत करता है।
 
यदि होली का धुआं पश्चिम दिशा की ओर जाता है तब राज्य में पैदावार की कमी व अकाल की आशंका होती है। जब होलिकादहन का धुआं उत्तर दिशा की ओर जाए तो राज्य में पैदावार अच्छी होती है और राज्य धन-धान्य से भरपूर रहता है। लेकिन यदि होली का धुआं सीधा आकाश में जाता है तब यह राजा के लिए संकट का प्रतीक होता है अर्थात राज्य में सत्ता परिवर्तन की संभावना होती है, ऐसी मान्यता है।
 
होली का वैज्ञानिक आधार-
 
हमारे सनातन धर्म से जुड़ी हुईं अनेक परंपराएं व पर्व भले किसी न किसी पौराणिक कथा से संबंधित हों लेकिन अधिकांश वे किसी न किसी वैज्ञानिक आधार से संबंधित अवश्य होती हैं। होली के पर्व के पीछे भी एक सशक्त वैज्ञानिक आधार है।
 
होली का पर्व अक्सर उस समय मनाया जाता है, जब शीत ऋतु विदा ले रही होती है और ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो रहा होता है। इसे दो ऋतुओं का 'संधिकाल' कहा जाता है। यह 'संधिकाल' अनेक रोगों व बीमारियों को जन्म देने वाले रोगाणुओं का जनक होता है।
 
आपने अक्सर देखा होगा कि इस काल में आम जनमानस रोग का शिकार अधिक होता है, क्योंकि वातावरण में इस 'संधिकाल' से उत्पन्न रोगाणुओं की संख्या अधिक मात्रा में होती है। इन रोगाणुओं को समाप्त करने के लिए प्रचंड अग्नि के ताप की जरूरत होती है। इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए इस समय होलिकादहन किया जाता है जिससे कि वातावरण में पर्याप्त ताप व धुआं उत्पन्न हो, जो विषैले रोगाणुओं का नाश कर सके।
 
भद्रा उपरांत ही करें होलिकादहन :-
 
शास्त्रोक्त मान्यतानुसार होलिकादहन भद्रा के उपरांत ही करना चाहिए। भद्रा में होलिकादहन करने से राज्य, राजा व प्रजा पर संकट आते हैं।
 
आइए, जानते हैं इस वर्ष होलिकादहन का शुभ मुहूर्त कब है-
 
इस वर्ष होलिकादहन 1 मार्च 2018, गुरुवार को किया जाएगा। इस दिन भद्रा सायंकाल 7 बजकर 39 मिनट तक रहेगी अर्थात होलिकादहन 7 बजकर 39 मिनट के पश्चात ही किया जाना श्रेयस्कर रहेगा।
 
-ज्योतिर्विद पं. हेमंत रिछारिया
संपर्क: [email protected]
 
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