14 जुलाई को जगन्नाथ रथयात्रा, उससे पहले 'देव' तो आया 'बुखार', जानिए क्या है परंपरा
हमारे सनातन धर्म की खूबसूरती यही है कि यहां भगवान स्वयं भक्त के वश में है। स्वयं भगवान का उद्घोष है-"अहं भक्तपराधीनो..अर्थात् मैं भक्तों के अधीन हूं। भक्तों ने भी अपनी खुशी के लिए कभी उन्हें थोड़े से माखन और छाछ के लिए नचाया तो कभी बालपन का सुख लेने के लिए रोने पर विवश किया। कभी शापित कर विरहासिक्त किया तो कभी उनकी सेवा-सुश्रुषा का आनन्द लेने के लिए उन्हें रुग्ण किया।
चौंकिए मत, हमारे देश में भगवान भी रुग्ण यानी बीमार होते हैं और उनकी भी चिकित्सा की जाती है। ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ को ठंडे जल से स्नान कराया जाता है। इस स्नान के बाद भगवान को ज्वर (बुखार) आ जाता है। 15 दिनों तक भगवान जगन्नाथ को एकांत में एक विशेष कक्ष में रखा जाता है। जहां केवल उनके वैद्य और निजी सेवक ही उनके दर्शन कर सकते हैं। इसे अनवसर कहा जाता है।
इस दौरान भगवान जगन्नाथ को फ़लों के रस, औषधि एवं दलिया का भोग लगाया जाता है। भगवान स्वस्थ होने पर अपने भक्तों से मिलने रथ पर सवार होकर निकलते हैं जिसे जगप्रसिद्ध रथयात्रा कहा जाता है। रथयात्रा प्रतिवर्ष आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलती है।
इस वर्ष 28 जून 2018 ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ का अनवसर सम्पन्न हुआ और अब वे ज्वर से पीड़ित हो रुग्ण हो गए हैं। अब 15 दिनों तक वे एकान्त कक्ष में निवास करेंगे जहां उनकी चिकित्सा कर उन्हें स्वस्थ किया जाएगा। स्वस्थ होने के उपरान्त आषाढ़ शुक्ल द्वितीया 14 जुलाई को वे रथ पर सवार होकर अपने भक्तों से मिलने निकलेंगे जिसे जगप्रसिद्ध रथयात्रा कहते हैं।