संतान का जन्म किसी भी परिवार के लिए खुशहाली व उत्सव का आधार होता है। ज्योतिष शास्त्र में शिशु के जन्म का समय अतिमहत्वपूर्ण होता है। किंतु जन्म समय को लेकर ज्योतिषाचार्यों में मतभेद हैं कि सही जन्म समय किसे माना जाए? कुछ शिशु के रोदन अर्थात रोने को सही जन्म समय मानते हैं, कुछ शिशु के बाहर आने को सही जन्म समय मानते हैं वहीं अधिकांश नालच्छेदन अर्थात शिशु की नाल काटने को सही जन्म समय मानते हैं।
यहां हमारा विषय सही जन्म समय से संबंधित न होकर जन्म नक्षत्र से संबंधित है। जिस प्रकार शिशु के जन्म का समय अतिमहत्वपूर्ण है, ठीक उसी प्रकार शिशु के जन्म का नक्षत्र भी अतिमहत्वपूर्ण है।
ज्योतिष शास्त्र में कुछ नक्षत्र ऐसे माने गए हैं जिनमें शिशु का जन्म होना नेष्टकारक होता है जिसे लोकाचार की भाषा में 'मूल' पड़ना कहते हैं। जब किसी शिशु का जन्म 'मूल संज्ञक' नक्षत्रों में होता है तब कुछ विशेष नियमों का पालन करना होता है एवं पुन: उस नक्षत्र के आने पर मूल शांति करानी होती है।
आइए जानते हैं कि 'मूल संज्ञक' नक्षत्र कौन से होते हैं? ज्योतिष शास्त्रानुसार 'मूल संज्ञक' नक्षत्रों की संख्या 6 मानी गई है। ये 6 'मूल संज्ञक' नक्षत्र हैं-
1. अश्विनी
2. आश्लेषा
3. मघा
4. ज्येष्ठा
5. मूल
6. रेवती
उपर्युक्त नक्षत्रों में संतान का जन्म होने पर 'मूल' में जन्म माना जाता है एवं मूल शांति करवाना अनिवार्य होता है।