भारतीय कालगणना ज्योतिर्विद्या पर आधारित हैं। माहों, तिथियों, पर्वों आदि का निर्धारण बेहद सूक्ष्म विचारों के आधार पर किया गया है। चंद्रमा इसका आधार है। चंद्रमा मन का द्योतक है। पृथ्वी के समीप या दूर उसकी स्थिति और सूर्य का प्रकाश लेकर चमकने की उसकी नियति मनुष्य ही नहीं, प्राणियों को भी प्रभावित करती है।
चंद्रमा जब जिस नक्षत्र के साथ विशेष संबंध (दूरी या कोण) बनाता है, तब ज्योतिष की भाषा में उसे चंद्रमा का नक्षत्र कहते हैं। महीनों का निर्धारण ऋषियों व ज्योतिर्विदों ने इसी आधार पर किया है। पूर्णिमा चंद्रमा की सबसे सशक्त तिथि मानी गई है। इस दिन वह अपनी सभी कलाएं बिखेरता है।
इस दिन के साथ जिस नक्षत्र का उदय होगा, संबंधित माह उसी नाम से संबोधित होगा। जैसे जिस पूर्णिमा को 'चित्रा' नक्षत्र का उदय होता है वह माह चैत्र कहलाता है। एक नक्षत्र छोड़कर अगली पूर्णिमा का नक्षत्र होगा 'विशाखा' तब वह माह वैशाख कहलाएगा। इसी प्रकार 'ज्येष्ठा' से ज्येष्ठ, 'पूर्वाषाढ़' से आषाढ़, 'श्रवण' से श्रावण इत्यादि।
इस व्यवस्था से त्योहारों-तिथियों में मौसम-ऋतुओं का सामंजस्य बना रहता है। हिजरी सन् में ऐसी व्यवस्था नहीं है। संवत, माह, तिथियों आदि की गणनाएं भारत में जिस बारीकी से हुई हैं, उसे देखकर विश्व के कई विज्ञानवेत्ता दांतों तले उंगली दबाते हैं।