अक्षर यानी जिसका कभी क्षरण न हो, क्षय न हो, जो कभी नष्ट न हो हर स्थिति परिस्थिति में व्याप्त हो, जो हर संयोग-वियोग, गति-प्रगति में अपने योग से शब्द रूपी शक्ति उत्पन्न करता है। उसे वेद ग्रंथों में अक्षर रूपी ब्रह्म की संज्ञा दी गई है।
संसार में आज तक की ज्ञात जितनी भी शक्तियाँ हैं सभी शब्दाक्षरों के इर्द-गिर्द घूमती हैं चाहे वह ईश्वर की शक्ति हो, आर्थिक या शारीरिक शक्ति हो। मन की चेतना शक्ति हो, किसी राज्य या देश की शक्ति हो, आधुनिक युग में निर्मित विनाश लीला दिखाने वाली एटमी शक्ति हो या फिर जनसमूह की शक्ति हो सभी शब्दों से ही संचालित होती हैं यह मात्र शब्दों (नाम) की शक्ति ही है जो कि उसे कभी उठाती है तो कभी गिराती है।
जिससे विद्यार्थी, कलाकार, शिल्पकार, फिल्मकार, चिकित्सक, पत्रकार, आध्यात्मिक गुरू, अध्यापक, वैज्ञानिक, तकनीशियन, व्यापारी, उद्योगपति, शासक, प्रशासक, लेखक राजनीतिक, कारोबारी, नर्तक, नेता, अभिनेता, संगीतज्ञ आदि विविध क्षेत्रों से जुड़े लोग अपने नामाक्षर की शक्ति पहचान कर उसे सही दिशा में परिवर्तित कर लाभ उठा सकते हैं।
नेम थेरेपी, व्यक्ति के नाम को सुधार कर उसके भाग्य में वृद्धि करती है। इसके अंतर्गत जातक के जन्म-समय आदि विविध पहलुओं का मूल्यांकन कर जरूरत हुई तो उसे बदला जाता है और उसमें नए अंक व नामाक्षर द्वारा नई ऊर्जा का संचार कर दिया जाता है।
4-आर्थिक प्रगति के लिए नामाक्षर को उचित दिशा देना।
5-निर्णय लेने व सही दिशा में कार्य करने की क्षमता को बढ़ाना।