आश्विन माह की कृष्ण अमावस्या को सर्वपितृ मोक्ष श्राद्ध अमावस्या (Sarvapritru Amavasya 2022) कहते हैं। यह दिन पितृ पक्ष का आखिरी दिन होता है। इस दिन सभी जाने और अनजाने पितरों हेतु निश्चित ही श्राद्ध किया जाना चाहिए। अगर आप पितृ पक्ष में श्राद्ध कर चुके हैं तो भी सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों का तर्पण करना जरूरी होता।
अत: इस दिन यदि आप अपने पितरों से क्षमा मांगने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु दोनों हाथ उठाकर माफी मांगकर उनका आशीष पा सकते हैं। इस दिन आप 2 तरह के पाठ कर सकते हैं। साथ ही नभ मंडल में उपस्थित सभी पितृओं से प्रार्थना करके क्षमा याचना भी कर सकते हैं। आइए जानते हैं यहां-
पितृ प्रार्थना- 'हे प्रभु, मैंने अपने हाथ आपके समक्ष फैला दिए हैं, शास्त्र के निर्देशानुसार मैंने दोनों भुजाओं को आकाश में फैला दिया है, मैं अपने पितरों की मुक्ति के लिए आपसे प्रार्थना करता हूं, मेरे पितर मेरी श्रद्धा भक्ति से संतुष्ट हो। मैं अन्न, धन और दिखावे से नहीं बल्कि अपनी पूरी श्रद्धा से पितरों को प्रणाम करता हूं.... उन्हें आप दिव्य लोक प्रदान करें...। ऐसा करने से व्यक्ति को पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।
पूजा में हुई गलतियों के लिए क्षमा मांगें-
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन।
यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे॥
- अर्थात् 'हे प्रभु, मैं आपका आवाहन करना नहीं जानता हूं, ना ही विदा करना जानता हूं। पूजा के विधि-विधान भी मुझे नहीं मालूम हैं। कृपा करके मुझे क्षमा करें। मुझे मंत्र याद नहीं हैं और ना ही पूजा की क्रिया मालूम है। मैं तो ठीक से भक्ति करना भी नहीं जानता। फिर भी मेरी बुद्धि के अनुसार पूरे मन से पूजा कर रहा हूं, कृपया इस पूजा में हुई जानी-अनजानी गलतियों के लिए क्षमा करें। इस पूजा को पूर्ण और सफल करें।
1. पितृ-सूक्तम्- पितृदोष निवारण में पितृ-सूक्तम् अत्यंत चमत्कारी मंत्र पाठ है। सर्वपितृ अमावस्या के दिन विधिवत रूप से श्राद्ध करें और यह पाठ पढ़ें। श्राद्ध पक्ष में पितृ-सूक्त का पाठ संध्या के समय तेल का दीपक जला कर करने से पितृदोष की शांति होती है, शुभ फल की प्राप्ति होती है और सर्वबाधा दूर होकर उन्नति की प्राप्ति होती है। इसे ही पितृ शांति पाठ भी कहते हैं।
2. रुचि कृत पितृ स्तोत्र- संपूर्ण श्राद्ध पक्ष या सर्वपितृ अमावस्या को रुचिकृत पित्र स्तोत्र का पाठ भी किया जाता है। इसे ही पितृ स्तोत्र का पाठ भी कहते हैं। अथ पितृस्तोत्र।