Shardiya Navratra : इन दिनों शारदीय नवरात्रि का पर्व चल रहा है और नवरात्रि की सप्तमी तिथि को माता का कालरात्रि का पूजन किया जाता है। ऐसे लोग जो किसी कृत्या प्रहार से पीड़ित हो एवं उन पर किसी अन्य तंत्र-मंत्र का प्रयोग हुआ हो, वे माता कालरात्रि की साधना कर समस्त कृत्याओं तथा शत्रुओं से निवृत्ति पा सकते हैं।
दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि को महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह देवी सभी प्रकार के रोगों की नाशक, सर्वत्र विजय दिलाने वाली, मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। नागदौन का पौधा ग्वारपाठे के समान होता हैं। यह सुख देने वाली एवं सभी प्रकार के विष की नाशक औषधि है।
ग्वारपाठे के पत्ते दिखने में चिकने, मोटे व दोनों धारों में कांटेयुक्त होता है, तो नागदौन के पत्ते आकार में पतले, सूखे और तलवार के जैसे दोनों ओर से धार वाले होने के साथ-साथ बीच में से मुड़े हुए होते हैं। इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगा लें, तो घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को करना चाहिए। इस दिन देवी को गुड़ का भोग लगाकर उसे प्रसाद के रूप में खाना सेहत के लिए भी फायदेमंद है। इस दिन स्लेटी रंग के कपड़े पहनना शुभ रहता है।
पूजन विधि-
- नवरात्रि की सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि के पूजन के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त हो जाएं।
- अब रोली, अक्षत, दीप, धूप अर्पित करें।
- मां कालरात्रि को रातरानी का फूल चढाएं।
- गुड़ का भोग अर्पित करें।
- मां की आरती करें।
- इसके साथ ही दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा तथा मंत्र जपें।
- इस दिन लाल कंबल के आसन तथा लाला चंदन की माला से मां कालरात्रि के मंत्रों का जाप करें।
- अगर लाला चंदन की माला उपलब्ध न हो तो रूद्राक्ष की माला का उपयोग कर सकते हैं।
पंचमेवा, खीर, पुष्प, फल आदि की आहुति दें। जितने भी मंत्र दिए गए हैं, वे सभी शास्त्रीय तथा कई श्री दुर्गासप्तशती से उद्घृत हैं।
- 'ॐ फट् शत्रून साघय घातय ॐ।'
स्वप्न दर्शन के फल शास्त्रों में कई बतलाए गए हैं। यदि कुफल वाला कोई स्वप्न देखें जिसका फल खराब हो, उसे अच्छा बनाने के लिए स्वप्न देखने के बाद प्रात: एक माला जपने से बुरा फल नष्ट होकर अच्छा फल मिलता है।
जप का दशांश हवन, का दशांश तर्पण, का दशांश मार्जन, का दशांश ब्राह्मण भोजन तथा कन्या पूजन तथा भोजन कराने से मंत्र सिद्धि होती है।
21 अक्टूबर 2023, शनिवार के मुहूर्त:
सुकर्मा योग- 04.07 पी एम तक
त्रिपुष्कर योग- 11.24 ए एम से 01.23 पी एम
ब्रह्म मुहूर्त-03.30 ए एम से 04.17 ए एम
प्रातः सन्ध्या- 03.53 ए एम से 05.03 ए एम
अभिजित मुहूर्त-10.49 ए एम से 11.38 ए एम
विजय मुहूर्त-01.17 पी एम से 02.07 पी एम
गोधूलि मुहूर्त-05.24 पी एम से 05.48 पी एम
सायाह्न सन्ध्या- 05.24 पी एम से 06.34 पी एम
अमृत काल- 06.45 ए एम से 08.18 ए एम
निशिता मुहूर्त-10.50 पी एम से 11.37 पी एम,
04.09 ए एम, 22 अक्टूबर से 05.40 ए एम तक।
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