शुक्रवार, 31 दिसंबर को वर्ष 2021 का आखिरी प्रदोष व्रत मनाया जा रहा है। शुक्रवार के दिन आने के कारण इसे शुक्र प्रदोष व्रत (shukra pradosh vrat) कहा जाता है। वैसे तो हर वार के अनुसार प्रदोष व्रत का महत्व होता है। लेकिन शुक्रवार के दिन यह प्रदोष व्रत साल के अंतिम दिन मनाया जाएगा।
मान्यतानुसार त्रयोदशी तिथि में शाम के समय भगवान शिव कैलाश पर्वत पर स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं और इस दिन वे शिव अतिप्रसन्न होते हैं। इसलिए उनका पूरे मनोभाव से पूजन करने से वे प्रसन्न होकर अपने भक्तों पर अपनी विशेष कृपा बरसाते हैं। उसके बाद नववर्ष 2022 में पहला प्रदोष व्रत शनिवार, 15 जनवरी 2022 को शनि प्रदोष व्रत के रूप में मनाया जाएगा। यहां पढ़ें शुक्र प्रदोष की कथा (Pradosh Vrat Katha), मुहूर्त (Pradosh Vrat Puja Muhurat) एवं पूजा विधि Puja Vidhi-
Pradosh Vrat Puja Muhurat-पूजन मुहूर्त
31 दिसंबर, 2021, शुक्रवार को पौष, कृष्ण त्रयोदशी (Paush Krishna Trayodashi) तिथि का प्रारंभ, सुबह 10:39 मिनट से।
शनिवार, 1 जनवरी 2022 को सुबह 07:17 मिनट पर त्रयोदशी तिथि समाप्त होगी।
शुक्रवार प्रदोष काल पूजन का शुभ समय- शाम 05.35 से 08.19 मिनट तक।
शुक्रवार राहु काल का समय : प्रात:10:30 से दोपहर 12:00 तक। इस समय शिव जी का पूजन ना करें।
पूजा विधि-Pradosh Vrat Puja Vidhi
- शुक्रवार के दिन सुबह स्नान के बाद साफ धुले हुए सफेद या गुलाबी रंग के वस्त्र पहनें और भगवान शिव का अभिषेक करें।
- सूर्यदेव को तांबे के लोटे से जल में शकर डालकर अर्घ्य दें तथा अच्छा आरोग्य देने अथवा अपने रोगों को खत्म करने की प्रार्थना करें।
- शिव जी को धूप दिखाएं और भोग लगाएं।
- तत्पश्चात व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
- इस दिन निराहार रहें तथा ज्यादा से ज्यादा जल का सेवन करें।
- शाम के समय प्रदोष काल में भगवान शिव का पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शकर) से स्नान करके पुन: शुद्ध जल से अभिषेक करें तथा रोली, मौली, चावल, धूप और दीप से पूजन करें।
- शिव पूजन के समय पंचामृत का उपयोग करना विशेष लाभकारी रहता है, अत: इस दिन इससे शिव जी का पूजन अवश्य करें।
- अब साबुत चावल की खीर और फल अर्पण करें।
- इस दिन शिव जी के साथ माता माता पार्वती का पूजन करना लाभदायी होता है।
- इस दिन कथा सुनें अथवा सुनाएं तथा कथा समाप्ति के बाद हवन सामग्री मिलाकर 11 या 21 या 108 बार 'ॐ ह्रीं क्लीं नम: शिवाय स्वाहा' मंत्र से आहुति दें।
- उसके बाद शिव जी की आरती तथा प्रसाद वितरित करें, उसके बाद भोजन करें।
- यह व्रत विवाहित महिलाओं के सौभाग्य में वृद्धि तथा पति की लंबी आयु देने वाला माना जाता है।
मंत्र-
- ॐ नम: शिवाय मंत्र 108 बार का जाप करें
- शिवपंचाक्षरी स्तोत्र का कम से कम 5 बार पाठ करें।
शुक्र प्रदोष व्रत कथा- Pradosh Vrat Katha
शुक्र प्रदोष व्रत कथा के अनुसार कहा जाता है कि एक नगर में तीन मित्र रहते थे- राजकुमार, ब्राह्मण कुमार और तीसरा धनिक पुत्र। राजकुमार और ब्राह्मण कुमार विवाहित थे। धनिक पुत्र का भी विवाह हो गया था, लेकिन गौना शेष था। एक दिन तीनों मित्र स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे। ब्राह्मण कुमार ने स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा- 'नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है।'
धनिक पुत्र ने यह सुना तो तुरंत ही उसने अपनी पत्नी को लाने का निश्चय कर लिया। तब धनिक पुत्र के माता-पिता ने समझाया कि अभी शुक्र देवता डूबे हुए हैं। ऐसे में बहू-बेटियों को उनके घर से विदा करवा लाना शुभ नहीं माना जाता लेकिन धनिक पुत्र ने एक नहीं सुनी और ससुराल पहुंच गया। ससुराल में भी उसे मनाने की कोशिश की गई लेकिन वो जिद पर अड़ा रहा और कन्या के माता-पिता को उनकी विदाई करनी पड़ी।
विदाई के बाद पति-पत्नी शहर से निकले ही थे कि बैलगाड़ी का पहिया निकल गया और बैल की टांग टूट गई। दोनों को चोट लगी लेकिन फिर भी वो चलते रहे। कुछ दूर जाने पर उनका पाला डाकुओं से पड़ा। जो उनका धन लूटकर ले गए। दोनों घर पहूंचे। वहां धनिक पुत्र को सांप ने डंस लिया। उसके पिता ने वैद्य को बुलाया तो वैद्य ने बताया कि वो तीन दिन में मर जाएगा। जब ब्राह्मण कुमार को यह खबर मिली तो वो धनिक पुत्र के घर पहुंचा और उसके माता-पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और कहा कि इसे पत्नी सहित वापस ससुराल भेज दें। धनिक ने ब्राह्मण कुमार की बात मानी और ससुराल पहुंच गया, जहां उसकी हालत ठीक होती गई यानी शुक्र प्रदोष के माहात्म्य से सभी घोर कष्ट दूर हो गए।
यही कारण है कि आज के प्रदोष व्रत कोकाफी खास माना जा रहा है। शुक्रवार के दिन पड़ने वाले इस प्रदोष व्रत से सुख-समृद्धि मिलती है। इस व्रत के प्रभाव से हर तरह के रोग दूर होकर बीमारियों पर होने वाले खर्च में कमी आती है। भगवान शिव को ज्ञान और मोक्ष का दाता माना जाता है। अत: अध्यात्म की राह पर चलने वालों को प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए। मान्यतानुसार शुक्रवार का प्रदोष व्रत सौभाग्य और दांपत्य जीवन में सुख-समृद्धि भर देता है।