स्वस्तिक शब्द को 'सु' और 'अस्ति' दोनों से मिलकर बना है। 'सु' का अर्थ है शुभ और 'अस्तिका' अर्थ है होना यानी जिससे 'शुभ हो', 'कल्याण हो' वही स्वस्तिक है। यही कारण है कि घर के वास्तु को ठीक करने के लिए स्वस्तिक का उपयोग किया जाता है।
इस मंत्र में 4 बार आए 'स्वस्ति' शब्द के रूप में 4 बार कल्याण और शुभ की कामना से श्रीगणेश के साथ इन्द्र, गरूड़, पूषा और बृहस्पति का ध्यान और आवाहन किया गया है।
इस मंगल-प्रतीक का गणेश की उपासना, धन-वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ बही-खाते की पूजा की परंपरा आदि में विशेष स्थान है। चारों दिशाओं के अधिपति देवताओं, अग्नि, इन्द्र, वरुण और सोम की पूजा हेतु एवं सप्त ऋषियों के आशीर्वाद को पाने के लिए स्वस्तिक बनाया जाता है। यह चारों दिशाओं और जीवन चक्र का भी प्रतीक है।