जिस जिस दिन आपका जन्म हुआ उस समय को सही तौर पर सिर्फ तिथि से ही जाना जा सकता है। आपका जन्म यदि चतुर्थी को हुआ है तो यही आपके जन्म की सही तारीख है, क्योंकि यही वैज्ञानिक सत्य है। तिथियों का आपके जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
आओ, जानते हैं कि ऐसी कौन सी तिथि या दिन है जिस दिन जन्म लेने पर थोड़ी सावधानी और उपाय बरतना चाहिए?
नोट : यहां कुछ खास तिथि और योग के बारे में जो बताया जा रहा है, वह प्राथमिक और सामान्य जानकारी है, क्योंकि किसी भी जातक का जन्म यदि चतुर्थी में हुआ है तो उसके दूसरे ग्रह और नक्षत्र भी देखे जाते हैं, तभी यह तय होता है कि चतुर्थी में जन्म लेना शुभ है या नहीं? अत: आप इसे पूर्ण सत्य न मानें। पूर्ण सत्य हेतु अपनी कुंडली की जांच करें।
1. कृष्ण चतुर्थी को हुआ है जन्म तो करें ये उपाय
चतुर्थी को 6 भागों में बांटा गया है। प्रथम भाग में जन्म होने पर शुभ होता है, द्वितीय भाग में जन्म हो तो पिता का नाश, तृतीय भाग में जन्म हो तो माता की मृत्यु, चतुर्थ भाग में जन्म हो तो मामा का नाश, पंचम भाग में जन्म हो तो कुल का नाश, छठे भाग में जन्म हो तो धन का नाश या जन्म लेने वाले स्वयं का नाश होता है।
उपाय : इस दोष के निवारण के लिए भगवान गणेश की पूजा करें या सोमवार का व्रत रखकर शिवजी की पूजा करें। हनुमान चालीसा पढ़ें या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते रहें। यह जरूरी है कि दक्षिणमुखी मकान को छोड़ दें।
2. अमावस्या को हुआ है जन्म तो करें ये उपाय
कहते हैं कि इस दिन जन्म लेने वाले बालक का जीवन संघर्षमय होता है। इससे घर में दरिद्रता आती है। अत: अमावस्या के दिन संतान का जन्म होने पर शांति अवश्य करानी चाहिए। अमावस्या के देवता पितरों के अधिपति अर्यमा हैं। अमावस्या तिथि में जब अनुराधा नक्षत्र का तृतीय व चतुर्थ चरण होता है तो सर्पशीर्ष कहलाता है। सर्पशीर्ष में शिशु का जन्म दोष पूर्ण माना जाता है।
उपाय : इस दोष के निवारण हेतु कलश स्थापना करके उसमें पंच पल्लव, जड़, छाल और पंचामृत डालकर अभिमंत्रित करके अग्निकोण में स्थापना कर दें फिर सूर्य, चंद्रमा की मूर्ति बनवाकर स्थापना करें और षोडशोपचार या पंचोपचार से पूजन करें। फिर इन ग्रहों की समिधा से हवन करें, माता-पिता का भी अभिषेक करें और दक्षिणा दें और इसके बाद ब्राह्मण भोजन कराएं। किसी पंडित के सान्निध्य में ही यह पूजन विधिपूर्वक कराएं। श्राद्ध कर्म करते रहने से भी यह शांति हो जाती है। सर्पशीर्ष योग में जन्म होने पर रुद्राभिषेक कराने के बाद ब्राह्मणों को भोजन एवं दान देना चाहिए।
3. भद्रा इत्यादि में हुआ है जन्म तो करें ये उपाय
भद्रा, क्षय तिथि, व्यतिपात, परिध, वज्र आदि योगों में जन्म तथा यमघंट इत्यादि में जो जातक जन्म लेता है, उसे अशुभ माना गया है।
उपाय- उपरोक्त दुर्योग में यदि किसी का जन्म हुआ है तो उसे यह दुर्योग जिस दिन आए, उसी दिन इसकी शांति कराना चाहिए। इस दुर्योग के दिन विष्णु, शंकर इत्यादि की पूजा व अभिषेक शिवजी मंदिर में धूप, घी, दीपदान तथा पीपल वृक्ष की पूजा करके विष्णु भगवान के मंत्र का 108 बार हवन कराना चाहिए।
4. यदि हुआ है जन्म ग्रहण काल में तो करें ये उपाय
यदि किसी जातक का जन्म ग्रहण काल अर्थात सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण या अन्य किसी ग्रहण में हुआ है तो उसे व्याधि, कष्ट, दरिद्रता और मृत्यु का भय होता है।
उपाय- ग्रहण काल के जन्म की शांति के उपाय किसी पंडित के सान्निध्य में विधिपूर्वक पूर्ण करें। इसके अलावा राहु और केतु का दान करते रहें।
5. संक्रांति जन्म दोष
सूर्य की 12 संक्रातियां होती हैं। उनमें से कुछ शुभ और कुछ अशुभ मानी गई हैं। ग्रहों की संक्रांतियों के नाम घोरा, ध्वांक्षी, महोदरी, मंदा, मंदाकिनी, मिश्रा और राक्षसी इत्यादि हैं। कहते हैं कि सूर्य की संक्रांति में जन्म लेने वाला दरिद्र हो जाता है इसलिए शांति करानी आवश्यक है।
उपाय- इस दोष निवारण हेतु विधि-विधान के साथ नवग्रह का यज्ञ करते हैं। उत्तरमुखी मकान में रहें और लक्ष्मी माता की पूजा करें।
6. माता-पिता के नक्षत्र में हुआ है जन्म तो करें ये उपाय
कहते हैं कि यदि माता-पिता या सगे भाई-बहन के नक्षत्र में जातक का जन्म हुआ है तो उसको मरणतुल्य कष्ट होता है।
उपाय- इस दोष निवारण हेतु किसी शुभ लग्न में अग्निकोण से ईशान कोण की तरफ जन्म नक्षत्र की सुंदर प्रतिमा बनाकर कलश पर स्थापित करें फिर लाल वस्त्र से ढंककर उपरोक्त नक्षत्रों के मंत्र से पूजा-अर्चना करें फिर उसी मंत्र से 108 बार घी और समिधा से आहुति दें तथा कलश के जल से पिता, पुत्र और सहोदर का अभिषेक करें। यह कार्य किसी पंडित के सान्निध्य में विधिपूर्वक करें।
7. गंडांत योग में जन्मे जातक
पूर्णातिथि (5, 10, 15) के अंत की घड़ी, नंदा तिथि (1, 6, 11) के आदि में 2 घड़ी कुल मिलाकर 4 तिथि को गंडांत कहा गया है। इसी प्रकार रेवती और अश्विनी की संधि पर, आश्लेषा और मघा की संधि पर और ज्येष्ठा और मूल की संधि पर 4 घड़ी मिलाकर नक्षत्र गंडांत कहलाता है। इसी तरह से लग्न गंडांत होता है।
मीन-मेष, कर्क-सिंह तथा वृश्चिक-धनु राशियों की संधियों को गंडांत कहा जाता है। मीन की आखिरी आधी घटी और मेष की प्रारंभिक आधी घटी, कर्क की आखिरी आधी घटी और सिंह की प्रारंभिक आधी घटी, वृश्चिक की आखिरी आधी घटी तथा धनु की प्रारंभिक आधी घटी लग्न गंडांत कहलाती है। इन गंडांतों में ज्येष्ठा के अंत में 5 घटी और मूल के आरंभ में 8 घटी महाअशुभ मानी गई है। यदि किसी जातक का जन्म उक्त योग में हुआ है तो उसे इसके उपाय करना चाहिए।
ज्येष्ठा गंड शांति में इन्द्र सूक्त और महामृत्युंजय का पाठ किया जाता है। मूल, ज्येष्ठा, आश्लेषा और मघा को अति कठिन मानते हुए 3 गायों का दान बताया गया है। रेवती और अश्विनी में 2 गायों का दान और अन्य गंड नक्षत्रों के दोष या किसी अन्य दुष्ट दोष में भी एक गाय का दान बताया गया है।
ज्येष्ठा नक्षत्र की कन्या अपने पति के बड़े भाई का विनाश करती है और विशाखा के चौथे चरण में उत्पन्न कन्या अपने देवर का नाश करती है। आश्लेषा के अंतिम 3 चरणों में जन्म लेने वाली कन्या या पुत्र अपनी सास के लिए अनिष्टकारक होते हैं तथा मूल के प्रथम 3 चरणों में जन्म लेने वाले जातक अपने ससुर को नष्ट करने वाले होते हैं। अगर पति से बड़ा भाई न हो तो यह दोष नहीं लगता है।
मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में पिता को दोष लगता है, दूसरे चरण में माता को, तीसरे चरण में धन और अर्थ का नुकसान होता है। चौथा चरण जातक के लिए शुभ होता है।
उपाय- गंडांत योग में जन्म लेने वाले बालक के पिता उसका मुंह तभी देखें, जब इस योग की शांति हो गई हो। इस योग की शांति हेतु किसी पंडित से जानकर उपाय करें।
पाराशर होरा ग्रंथ शास्त्रकारों ने ग्रहों की शांति को विशेष महत्व दिया है। फलदीपिका के रचनाकार मंत्रेश्वरजी ने एक स्थान पर लिखा है कि-
अर्थात जब कोई ग्रह अशुभ गोचर करे या अनिष्ट ग्रह की महादशा या अंतरदशा हो तो उस ग्रह को प्रसन्न करने के लिए व्रत, दान, वंदना, जप, शांति आदि द्वारा उसके अशुभ फल का निवारण करना चाहिए।
नोट : लाल किताब में उपरोक्त से भिन्न तरह के उपाय होते हैं। उसके अनुसार जिस ग्रह और भाव का दोष हो उस ग्रह के उपाय करना चाहिए और जो व्यक्ति अपने कर्म शुद्ध रखते हुए प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ता रहता है तो यह सबसे बड़ा उपाय है।