वामन द्वादशी : जानिए 10 बिंदुओं से इस दिन का महत्व

21 जुलाई 2021 बुधवार को वामन द्वादशी है। चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन वामन द्वादशी का व्रत रखा जाता है इसके बाद आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भी वामन द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। आओ जानते हैं इस संबंध में 10 खास बातें।
 
1. इस दिन भगावन वामन की पूजा और आराधना करने के महत्व है। आषाढ़ के महीने में अंतिम पांच दिनों में भगवान वामन की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।
 
2. इस दिन भगावन वामन और बलि का कथा सुनने का महत्व है। बलि के राज्य केरल में ओणम का उत्सव प्रारंभ हो जाता है।
 
3. इन दिन भगवान वामन को शहद चढ़ाने का महत्व है। साथ ही इसका सेवन करने से व्यक्ति निरोगी बना रहता है।
 
4. गृहकलेश हो तो वामन द्वादशी के दिन वामन देवता के समक्ष कांसे के बर्तन में घी का दीपक जलाएं।
 
5. यदि नौकरी या व्यापार में रुकावट आ रही हो तो इस दिन भगवान वामन को नारियल पर यज्ञोपवीत लपेटकर अर्पित करें।
 
6. इस दिन भागवत पुराण कथा का पाठ करना भी शुभ माना जाता है।
 
7. इस दिन भगवान वामनदेव की पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करने के बाद चावल, दही इत्यादि वस्तुओं का यथाशक्ति अनुसार दान करना भी बेहद ही शुभ माना जाता है। 
 
8. इस दिन भगवान वामन की मूर्ति या चित्र की पूजा करें। मूर्ति है तो दक्षिणावर्ती शंख में गाय का दूध लेकर अभिषेक करें। चित्र है तो सामान्य पूजा करें। इस दिन भगवान वामन का पूजन करने के बाद कथा सुनें और बाद में आरती करें। अंत में चावल, दही और मिश्री का दान कर किसी गरीब या ब्राह्मण को भोजन कराएं।
 
 
9. यदि किसी पंडित से पूजा करा रहे हैं तो वह तो विधि विधान से ही पूजा करेगा। ऐसे में इस दिन व्रत रखा जाता है। मूर्ति के समीप 52 पेड़े और 52 दक्षिणा रखकर पूजा करते हैं। भगवान् वामन का भोग लगाकर सकोरों में चीनी, दही, चावल, शर्बत तथा दक्षिणा पंडित को दान करने के बाद वामन द्वादशी का व्रत पूरा करते हैं। व्रत उद्यापन में पंडित को 1 माला, 2 गौ मुखी मंडल, छाता, आसन, गीता, लाठी, फल, खड़ाऊं तथा दक्षिणा देनी चाहिए।
 
 
10. वामन कथा : श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार सतयुग में चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वादशी को श्रवण नक्षत्र में अभिजित मुहूर्त में ऋषि कश्यप और देवी अदिति के यहां भगवान वामन का अवतार हुआ था। ऋषि कश्यप उनका उपनयन संस्कार करके उन्हें बटुक ब्रह्मण बनाते हैं। महर्षि पुलह वामन को यज्ञोपवीत, अगस्त्य मृगचर्म, मरीची पलाश दंण, अंगिरस वस्त्र, सूर्य छत्र, भृगु खडाऊं, बृहस्पति कमंडल, अदिति कोपीन, सरस्वती रुद्राक्ष और कुबेर भिक्षा पात्र भेंट करते हैं।
 
 
वामन अवतार पिता से आज्ञा लेकर राजा बलि के पास दान मांगने के लिए जाते हैं। वहां राजा बलि से तीन पग धरती मांग लेते हैं। ब्राह्मण समझकर राजा बलि दान दे देते हैं। शुक्राचार्य इसके लिए बलि को सतर्क भी करते हैं लेकिन तब बलि इस पर ध्यान नहीं देता। फिर वामन भगवान विराट रूप धारण कर दो पग में त्रिलोक्य नाप देते हैं। तब पूछते हैं राजन अब मैं अपन तीसरे पैर कहां रखूं? राजा बली कहते हैं कि भगवन अब तो मेरा सिर ही बचा है आप इस पर रख दीजिए। राजा की इस बात से वामन भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे चिरंजीवी रहने का वरदान देकर पाताललोक का स्वामी बना दिया और सभी देवताओं को उनका स्वर्ग लौटा दिया।

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी