आषाढ़ मास की योगिनी एकादशी आषाढ़ कृष्ण ग्यारस के दिन मनाई जाती है। इसका महत्व तीनों लोक में प्रसिद्ध है। यह एकादशी अगर आप भी किसी श्राप से ग्रसित है, तो उससे मुक्ति पाने के लिए यह दिन बहुत खास है। एकादशी व्रत करने के कुछ खास नियम हमारे पौराणिक शास्त्रों में दिए गए हैं, अत: यह व्रत इस प्रकार से किया जाना शास्त्रसम्मत है।
योगिनी एकादशी पूजन के मुहूर्त एवं पारण का समय-
आषाढ़ कृष्ण एकादशी तिथि का प्रारंभ 04 जुलाई, रविवार को शाम को 07.55 मिनट से हो रहा है, जिसका समापन 05 जुलाई, सोमवार को रात 10.30 मिनट पर होगा।
एकादशी की उदया तिथि 05 जुलाई को प्राप्त हो रही है, इसलिए योगिनी एकादशी व्रत 05 जुलाई को रखा जाएगा।
पारण का समय- 06 जुलाई, मंगलवार को प्रात:काल 05.29 मिनट से सुबह 08.16 मिनट तक रहेगा। ज्ञात हो कि द्वादशी तिथि का समापन 06 जुलाई को देर रात्रि 01.02 मिनट पर हो रहा है। अत: द्वादशी तिथि के समापन से पूर्व तक पारण कर लें।
मंत्र- 'ॐ नमो नारायण' या 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:' का 108 बार जाप करें।
योगिनी एकादशी पूजा विधि-
* योगिनी एकादशी से जुड़ी एक मान्यता के अनुसार इस दिन स्नान के लिए धरती माता की रज यानी मिट्टी का इस्तेमाल करना शुभ होता है। इसके अलावा स्नान के पूर्व तिल के उबटन को शरीर पर लगाना चाहिए।
* एकादशी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत होकर व्रत शुरू करने का संकल्प लें।
* तत्पश्चात पूजन के लिए मिट्टी का कलश स्थापित करें।
* उस कलश में पानी, अक्षत और मुद्रा रखकर उसके ऊपर एक दीया रखें तथा उसमें चावल डालें।
* अब उस दीये पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। ध्यान रखें कि पीतल की प्रतिमा हो तो अतिउत्तम।
* प्रतिमा को रोली अथवा सिंदूर का टीका लगाकर अक्षत चढ़ाएं।
* उसके बाद कलश के सामने शुद्ध देशी घी का दीप प्रज्ज्वलित करें।
* अब तुलसी पत्ते और फूल चढ़ाएं।
* फिर फल का प्रसाद चढ़ाकर भगवान श्रीविष्णु का विधि-विधान से पूजन करें।
* फिर एकादशी की कथा का पढ़ें अथवा श्रवण करें।
* अंत में श्रीहरि विष्णु जी की आरती करें।
ज्ञात हो कि एकादशी तिथि पर भगवान विष्णु के लिए व्रत रखा जाता है।
* आषाढ़ कृष्ण एकादशी के एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि को रात्रि में एकादशी व्रत करने का संकल्प करना चाहिए।
* अगले दिन सुबह स्नानादि सभी क्रियाओं से निवृत्त होकर भगवान श्रीहरि विष्णु तथा लक्ष्मी नारायणजी के स्वरूप का ध्यान करते हुए शुद्ध घी का दीपक, नैवेद्य, धूप, पुष्प तथा फल आदि पूजन सामग्री लेकर पवित्र एवं सच्चे भाव से पूजा-अर्चना करना चाहिए।
* इस दिन गरीब, असहाय अथवा भूखे व्यक्ति को अन्न का दान, भोजन कराना चाहिए तथा प्यास से व्याकुल व्यक्ति को जल पिलाना चाहिए।
* रात्रि में विष्णु मंदिर में दीप दान करते हुए कीर्तन तथा जागरण करना चाहिए।
* एकादशी के अगले दिन द्वादशी तिथि को अपनी क्षमतानुसार ब्राह्मण तथा गरीबों को दान देकर पारणा करना शास्त्र सम्मत माना गया है।
* ध्यान रहें कि इस व्रत में पूरा दिन अन्न का सेवन निषेध है तथा केवल फलाहार करने का ही विधान है।
* दशमी से लेकर पारणा होने तक का समय सत्कर्म में बिताना चाहिए तथा ब्रह्मचार्य व्रत का पालन करना चाहिए।
वर्तमान समय में यह व्रत कल्पतरू के समान है तथा इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के सभी कष्टों दूर होते हैं तथा हर तरह के श्राप तथा समस्त पापों से मुक्ति दिलाकर यह व्रत पुण्यफल प्रदान करता है।
कथा- स्वर्गधाम की अलकापुरी नामक नगरी में कुबेर नाम का एक राजा रहता था। वह शिव भक्त था और प्रतिदिन शिव की पूजा किया करता था। हेम नाम का एक माली पूजन के लिए उसके यहां फूल लाया करता था। हेम की विशालाक्षी नाम की सुंदर स्त्री थी। एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया लेकिन कामासक्त होने के कारण वह अपनी स्त्री से हास्य-विनोद तथा रमण करने लगा।
इधर राजा उसकी दोपहर तक राह देखता रहा। अंत में राजा कुबेर ने सेवकों को आज्ञा दी कि तुम लोग जाकर माली के न आने का कारण पता करो, क्योंकि वह अभी तक पुष्प लेकर नहीं आया। सेवकों ने कहा कि महाराज वह पापी अतिकामी है, अपनी स्त्री के साथ हास्य-विनोद और रमण कर रहा होगा।
यह सुनकर कुबेर ने क्रोधित होकर उसे बुलाया। हेम माली राजा के भय से कांपता हुआ उपस्थित हुआ। राजा कुबेर ने क्रोध में आकर कहा- अरे पापी! नीच! कामी! तूने मेरे परम पूजनीय ईश्वरों के ईश्वर श्री शिवजी महाराज का अनादर किया है, इसलिए मैं तुझे शाप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा।
कुबेर के शाप से हेम माली का स्वर्ग से पतन हो गया और वह उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया। भूतल पर आते ही उसके शरीर में श्वेत कोढ़ हो गया। उसकी स्त्री भी उसी समय अंतर्ध्यान हो गई। मृत्युलोक में आकर माली ने महान दु:ख भोगे, भयानक जंगल में जाकर बिना अन्न और जल के भटकता रहा।
रात्रि को निद्रा भी नहीं आती थी, परंतु शिवजी की पूजा के प्रभाव से उसको पिछले जन्म की स्मृति का ज्ञान अवश्य रहा। घूमते-घूमते एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंच गया, जो ब्रह्मा से भी अधिक वृद्ध थे और जिनका आश्रम ब्रह्मा की सभा के समान लगता था। हेम माली वहां जाकर उनके पैरों में पड़ गया।
उसे देखकर मार्कण्डेय ऋषि बोले तुमने ऐसा कौन-सा पाप किया है, जिसके प्रभाव से यह हालत हो गई। हेम माली ने सारा वृत्तांत कह सुनाया। यह सुनकर ऋषि बोले- निश्चित ही तूने मेरे सम्मुख सत्य वचन कहे हैं, इसलिए तेरे उद्धार के लिए मैं एक व्रत बताता हूं। यदि तू आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करेगा तो तेरे सब पाप नष्ट हो जाएंगे।
यह सुनकर हेम माली ने अत्यंत प्रसन्न होकर मुनि को साष्टांग प्रणाम किया। मुनि ने उसे स्नेह के साथ उठाया। हेम माली ने मुनि के कथनानुसार विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आकर वह अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा। इसके व्रत से समस्त पाप दूर हो जाते हैं और अंत में स्वर्ग प्राप्त होता है। भगवान कृष्ण ने कहा- हे राजन! यह योगिनी एकादशी का व्रत 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल देता है।