कला, साहित्य और नैसर्गिक सौंदर्य को अपने आँचल में समेटे जबलपुर शहर की एक और अलग पहचान है। विश्व का पहला पंचांग युक्त कैलेंडर प्रकाशित करने का गौरव भी इसी शहर को मिला है। वर्ष के पहले दिन से अंतिम दिन तक हर घर की मूलभूत आवश्यकता में शामिल पंचांग युक्त कैलेंडर का प्रकाशन इसी शहर में सन् 1934 में हुआ।
इसकी शुरुआत भी नए साल में अपने उपभोक्ताओं को दिए जाने वाले कुछ तोहफे के तौर पर हुई। लोगों को यह तोहफा इतना पसंद आया कि यह शहर पंचांगयुक्त कैलेंडर बनाने वाला देश का प्रमुख शहर बन गया है। वर्ष 1934 में न सिर्फ मध्यप्रदेश बल्कि देश का पहला हिंदी भाषी कैलेंडर पंचांग 'लाला राधामोहन रामनारायण' के नाम से प्रकाशित हुआ।
इसके पूर्व लोगों की दीवारों पर सिर्फ एक सरकारी कैलेंडर ही टंगा होता था। जबलपुर से प्रकाशित इस पंचांग में पहले तो हिंदी तिथियाँ, व्रत, त्योहार सहित पंचांग से जुड़ी सभी प्रकार की जानकारियाँ मौजूद होती थीं। समय के साथ चलते हुए इन पंचांग में भी बदलाव आता रहा और जो सबसे बड़ा बदलाव देखने को मिला वह था ज्योतिष संबंधी जानकारी का। इससे कैलेंडर पंचांग को एक नया रूप मिला।
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जबलपुर में सबसे पहले प्रकाशित हुआ पंचांग राधामोहन वर्तमान में इस नाम से प्रकाशित नहीं होता। प्रकाशन के कुछ वर्षों बाद तक इसका नाम लाला रामस्वरूप एंड संस और उसके बाद में लाला रामस्वरूप रामनारायण एंड संस हो गया। 1966 तक तो यह कैलेंडर इसी नाम से प्रकाशित हुआ। 1966 में पंचांग कैलेंडर के प्रकाशक परिवार में विभाजन हुआ। वर्तमान में इस परिवार के तीन कैलेंडर प्रकाशित हो रहे हैं। इस शहर को पंचांगयुक्त कैलेंडर शुरू करने का श्रेय तो प्राप्त ही है बल्कि आज देश का सबसे बड़ा कैलेंडर उद्योग भी जबलपुर में है।
जबलपुर में एक ही परिवार से तीन कैलेंडरों का प्रकाशन होता है। इसके अलावा अन्य प्रकाशकों को मिलाकर यहाँ से सात पंचांग कैलेंडर प्रकाशित होते हैं। पंचांगयुक्त कैलेंडर के साथ-साथ यहाँ से पंचांग का भी प्रकाशन किया जाता है। 1937 में यहाँ से 'भुवन मार्तंड पंचांग' का भी प्रकाशन किया गया। इसके संपादक लाला रामकिशोर अग्रवाल थे। 1968 में उनका देहावसान हो गया और इसके साथ ही इस पंचांग का प्रकाशन भी बंद हो गया। वर्तमान में देश के कई क्षेत्रों से इस तरह के पंचांगों का प्रकाशन होने लगा है।
कई पंचांग क्षेत्रीय भाषाओं में भी प्रकाशित हो रहे हैं लेकिन यहाँ के प्रकाशकों का दावा है कि जबलपुर से प्रकाशित होने वाले कैलेंडर पंचांगों की जानकारी सबसे श्रेष्ठ होती है। अपनी इस विशेषता के कारण ही ये न केवल हिंदीभाषी राज्यों में ही अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए है बल्कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी राज्यों में यहाँ के कैलेंडर लोकप्रिय हैं।
व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा हमेशा उपभोक्ता के हित में होती है। कैलेंडर पंचांगों में भी कुछ ऐसा ही हुआ है। जबलपुर में जब इन कैलेंडर प्रकाशकों की संख्या बढ़ी तो व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा स्वाभाविक ही थी। इसका खासा लाभ उपभोक्ताओं को मिल रहा है।
कुल 20-25 रुपए मूल्य के इन कैलेंडरों में दिन, तारीख, तिथि, मुहूर्त, व्रत, त्योहार आदि के अलावा सामान्य ज्ञान, ज्योतिष, धर्म और आध्यात्म नुस्खे सहित कई जानकारियाँ होती हैं।