फिल्म उमराव जान के एक सीन में फारुख शेख रेखा के बालों में आहिस्ता-आहिस्ता ऊँगलियाँ फिरा रहे हैं। इस बेहद खूबसूरत और रोमांटिक सीन में रेखा की काली जुल्फों के साथ जिस चीज पर कैमरा फोकस कर रहा है वह फारुख शेख के हाथ की एक ऊँगली में जगमगा रहा नैशापुरी फिरोजा है। लखनऊ में शूटिंग के दौरान नवाब मीर जाफर अब्दुल्ला की ऊँगली से उतरवाकर फिल्म के निर्देशक मुजफ्फर अली ने यह अँगूठी खास तौर पर फारुख शेख को पहनाई थी।
मुजफ्फर अली शिया मुसलमान हैं और कहीं न कहीं वह यह जरूर दिखाना चाहते थे कि शियाओं की एक पहचान फिरोजा रत्न भी है क्योंकि चौथे खलीफा हजरत अली और आठवें इमाम रजा फिरोजे की अँगूठी पहनते थे। ईरान स्थित नौशापुर का फिरोजा सबसे बेहतरीन माना जाता है। इराक के नजफ में हजरत अली के रौजे और ईरान के मशद में इमाम रजा की कब्र से मस (छुआ) कर फिरोजा पहनना शियाओं में सवाब (पुण्य) माना जाता है।
फिरोजे का इस्तेमाल सोने के जेवरों में भी हमेशा से खूब होता आया है। इसकी नीली चमक पीले सोने में खूब फबती है। इसे जवाहरात की श्रेणी में दूसरे नंबर पर रखा गया है। इस पर न तो तेजाब का असर होता है और न आग में पिघलता है। इसे पहनने से दिल के मर्ज में फायदा होता है। तबीयत को राहत और ताजगी बख्शता है। आँखों की रोशनी बढ़ाता है और गुर्दे की पथरी निकालता है। साफ और खुली फिजा में इसका रंग और ज्यादा खिल जाता है।
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फिरोजा ही नहीं, अकीक पहनना भी मुसलमानों में सवाब माना जाता है। मक्का में 'संगे असवद' को बोसा (चूमना) देना हज और उमरे की जरूरी रस्म मानी जाती है। हजरत मूसा और हजरत ईसा से पहले हजरत इब्राहीम के जमाने में यह पत्थर आसमान से उतरा। इसी ने हजरत इब्राहीम को रास्ता दिखाया। जहाँ पर गिरा वहीं पर मक्के की बुनियाद रखी गई। यह काला पत्थर अकीक (पुखराज की तरह) की नस्ल का बताया जाता है।
मुसलमानों के सारे फिरकों में अकीक पहनना इसीलिए सवाब माना जाता है। अकीक को मुसलमानों में पवित्र और मजहबी नगीना इसलिए भी माना जाता है पैगंबर मोहम्मद साहब भी अकीक की अँगूठी पहनते थे। यमन का अकीक सबसे महँगा और पवित्र माना जाता है। अकीक एकमात्र रत्न है जो धूप या अन्य किरणों को जज्ब कर जिस्म के अंदर पहुँचाता है। इसे पहनने से दिमाग को ताकत मिलती है और नजर को भी बढ़ाता है।