1.आकाश मंडल में तारों के समूह को नक्षत्र कहते हैं। प्राचीन आचार्यों ने हमारे आकाश मंडल को 28 नक्षत्र मंडलों में बांटा है। नक्षत्रों की जानकारी की इस सीरीज में इस बार जानिए पांचवां नक्षत्र मृगशिरा।
2.मृगशिरा को अंग्रेजी में ओरियन कहते हैं। मृगशिरा का अर्थ है मृग का शीष। आकाश में यह हिरण के सिर के आकार का नजर आता है। आकाश मंडल में मृगशिरा नक्षत्र 5वां नक्षत्र है। यह सबसे महत्वपूर्ण नक्षत्र माना जाता है।
3. इस नक्षत्र का वृक्ष खैर का है। इसके देवता सोम और नक्षत्र स्वामी मंगल है। मृगशिरा नक्षत्र के पहले दो चरण वृषभ राशि में स्थित होते हैं और शेष 2 चरण मिथुन राशि में स्थित होते हैं, जिसके कारण इस नक्षत्र पर वृषभ राशि तथा इसके स्वामी ग्रह शुक्र एवं मिथुन राशि तथा इसके स्वामी ग्रह बुध का प्रभाव भी रहता है। इस तरह इस नक्षत्र में जन्मे जातक पर मंगल, बुध और शुक्र का प्रभाव जीवनभर बना रहता है।
4. इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति सुंदर होते हैं और उनके हाथ-पैर लंबे होते हैं। स्त्री, भवन, वाहन और सभी प्रकार का सुख मिलने की शर्त मंगल का अच्छा होना माना गया है। इस नक्षत्र में जन्मे जातक समाज प्रिय, अपने कार्य में दक्ष, संगीत-प्रेमी, सफल व्यवसायी, अन्वेषक, अल्प-व्यवहारी, परोपकारी, नेतृत्व क्षमताशील होते हैं।
5.यदि शुक्र, मंगल और बुध में से किसी की भी स्थिति अच्छी नहीं है तो जातक मानसिक रूप से असंतुष्ट, चपल-चंचल, शंकालु, डरपोक, क्रोधी, परस्त्रीगमन करने वाला होगा। ऐसे व्यक्तित्व से सभी तरह के सुख जाते रहेंगे। यदि इस बात पर ध्यान नहीं दिया तो इस नक्षत्र के व्यक्ति अपने कर्मों से 33 साल की अवधि तक जीवन को जटिल बना लेते हैं और फिर आगे का जीवन संघर्षमय बन जाता है।