एक तरह से यह साल उल्का बौछारों के नाम रहेगा। 21 व 22 अक्टूबर को ओरियोनाइड उल्का बौछारें नजर आएँगी। इसके बाद 17 व 18 नवंबर को लियोनाइड्स उल्का बौछारें दिखेंगी। इससे पहले यह उल्का बौछारें वर्ष 2001 में दिखाई दी थीं। 13 व 14 दिसंबर को जेमिनिड्स उल्का बौछारें दिखाई देंगी। यह उल्का बौछारें आधी रात के बाद दिखाई देंगी। यह साल उल्कापातों का साल माना जाएगा।
हाल ही में शुक्र, शनि व मंगल ग्रह पृथ्वी के नजदीक आए थे। इसके बाद अब 20 अगस्त को नेप्च्यून, 21 सितंबर को जूपिटर तथा 22 सितंबर को यूरेनस ग्रह पृथ्वी के निकट होंगे। मौसम साफ होने पर इन ग्रहों को दिल्ली वासी आधी रात के बाद नंगी आँखों से देख सकेंगे।
खगोल विज्ञान में रुचि रखने वालों के लिए अगले छह महीने विशेष होंगे। जुलाई से लेकर दिसंबर तक आसमान में दुर्लभ खगोलीय नजारों की भरमार होगी। एक तरह से अगले छह महीने आसमान कई खूबसूरत खगोलीय घटनाओं का साक्षी होगा। जूपिटर, नेप्चून व यूरेनस जैसे ग्रहों को न केवल नंगी आँखों से देखा जा सकेगा बल्कि पुच्छलतारों व उल्का बौछारों के भी दर्शन होंगे।
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हालाँकि इन खगोलीय घटनाओं की शुरूआत इस साल 3 व 4 जनवरी से क्वाड्रेन्टिड्स उल्का बौछारों के साथ हो चुकी है। फरवरी व मार्च में शुक्र व शनि ग्रह भी पृथ्वी के नजदीक आकर गुजर चुके हैं। भोपाल आंचलिक विज्ञान केंद्र के एमएम राउत के अनुसार खगोलीय घटनाओं में रुचि रखने वाले जो लोग इन उल्का बौछारों, पुच्छलतारों व ग्रहों को देखने से वंचित हो गए हैं उन्हें निराश होने की जरूरत नहीं है। अगले छह महीने तक आसमान में बारी-बारी से यह खगोलीय घटनाएँ फिर घटेंगी। इसकी शुरूआत मेकनॉट पुच्छलतारा से होने जा रही है। 2 जुलाई को आसमान में मेकनॉट पुच्छलतारा दिखाई देगा।
इसके बाद 11 जुलाई को पूर्ण सूर्यग्रहण लगेगा लेकिन यह भारत में नहीं दिखाई देगा। 28 व 29 जुलाई को सदर्न डेल्टा ऐक्वारिड्स उल्का बौछारें दिखाई देंगी। लगभग 20 उल्काएँ प्रति घण्टे की रफ्तार से गुजरते दिखाई देंगी। 12 व 13 अगस्त को पर्सिड्स नामक उल्का की बौछारें नजर आएँगी। पृथ्वी से 11.2 मिलियन मील दूरी से गुजरने वाला हार्टले पुच्छलतारा भी 20 अक्टूबर को देखा जा सकेगा। खास बात यह है कि इतनी दूरी से गुजरने के बावजूद यह नंगी आँखों से दिखाई देगा।