2025 Sindhara Dooj: सिंधारा दूज साल में दो बार मनाई जाती है- एक चैत्र मास में और एक श्रावण मास में। जो हरियाली तीज से ठीक एक दिन पहले मनाई जाती है। सिंधारा दूज का पर्व मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, जिसमें वे अपने पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं। इसे सौभाग्य दूज, प्रीति द्वितीया या गौरी द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार रिश्तों की मिठास और परिवार के प्रति प्रेम का प्रतीक है।ALSO READ: सावन सोमवार के दिन क्या नहीं करना चाहिए? जानें 15 काम की बातें
आइए यहां जानते हैं पूजा के मुहूर्त और विधि के बारे में खास जानकारी...
पूजा का शुभ मुहूर्त : सिंधारा दूज 2025 (श्रावण मास):
श्रावण शुक्ल द्वितीया तिथि का प्रारंभ: 25 जुलाई 2025 को दोपहर 11.22 मिनट से
द्वितीया तिथि का समापन- 26 जुलाई 2025, रात 10:41 मिनट पर।
श्रावण शुक्ल पक्ष द्वितीया : 26 जुलाई 2025, शनिवार- पूजन के दिन का शुभ समय:
इस दिन कई शुभ योग बन रहे हैं, जिनमें आप पूजा कर सकते हैं:
ब्रह्म मुहूर्त- 04:46 ए एम से 05:30 ए एम
प्रातः सन्ध्या- 05:08 ए एम से 06:13 ए एम
अभिजित मुहूर्त- 12:19 पी एम से 01:11 पी एम
विजय मुहूर्त- 02:55 पी एम से 03:48 पी एम
गोधूलि मुहूर्त- 07:17 पी एम से 07:38 पी एम
सायाह्न सन्ध्या- 07:17 पी एम से 08:22 पी एम
अमृत काल- 02:16 पी एम से 03:52 पी एम
निशिथ मुहूर्त- 12:23 ए एम, जुलाई 27 से 01:07 ए एम, जुलाई 27 तक।
- सिंधारा दूज के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। सुहागन महिलाएं इस दिन पारंपरिक पोशाक पहनती हैं, हाथों में मेहंदी लगाती हैं और सोलह श्रृंगार करती हैं।
- पूजा शुरू करने से पहले अपने पति की लंबी आयु और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए व्रत का संकल्प लें।
- एक चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाकर माता पार्वती और भगवान शिव की प्रतिमा या चित्र स्थापित करके माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करें।
- घी का दीपक जलाएं।
- माता पार्वती को सिंदूर, चूड़ियां, बिंदी, मेहंदी, चुनरी जैसे सुहाग का सामान अर्पित करें।
- फूल, फल, मिठाई विशेषकर खीर या मीठे पकवान चढ़ाएं।
- धूप, दीप जलाकर आरती करें।
- कुछ महिलाएं इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की भी पूजा करती हैं।
- इस दिन मायके से बेटी के लिए सिंधारा यानी उपहार, कपड़े, मिठाई, चूड़ियां और सुहाग का सामान आता है। विवाहित महिलाएं आपस में भी उपहारों का आदान-प्रदान करती हैं।
- सिंधारा दूज के दिन झूले डालने और झूलने का भी रिवाज है। महिलाएं झूले झूलते हुए लोकगीत गाती हैं और खुशियां मनाती हैं।
- शाम को गौरी माता की पूजा करने के बाद, व्रत रखने वाली महिलाएं अपनी सास को 'बाया' यानी उपहार भेंट करती हैं और उनका आशीर्वाद लेती हैं।
- इस दिन छोटा बैंगन और कटहल खाना निषेध माना जाता है। महिलाएं सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं।
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