सूर्य अर्घ्य का रहस्य

- हेमराज प्रजापति 'अकेला'

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पूजा-अर्चना और संध्योपासना कर्म में सूर्य को अर्घ्य देने का विधान है, हाथ की अंजुरि (अंजुलि) में जल लेकर सूर्य की ओर मुख करके सूर्य को जल समर्पित करना 'सूर्य अर्घ्य' कहा जाता है। वेदों में सूर्य को आँख कहा गया है।

सूर्य में सात रंग की किरणें हैं। इन सप्तरंगी किरणों का प्रतिबिंब जिस किसी भी रंग के पदार्थ पर पड़ता है, वहाँ से वे पुनः वापस लौट जाती हैं। लेकिन काला रंग ही ऐसा रंग है, जिसमें से सूर्य की किरणें वापस नहीं लौटती हैं।

हमारे शरीर में भी विविध रंगों की विद्युत किरणें होती हैं। अतः जिस रंग की कमी हमारे शरीर में होती है, सूर्य के सामने जल डालने यानी अर्घ्य देने से वे उपयुक्त किरणें हमारे शरीर को प्राप्त होती हैं। चूँकि आँखों की पुतलियाँ काली होती हैं, जहाँ से कि सूर्य किरणें वापस नहीं लौटतीं अतः वह कमी पूरी हो जाती है।

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वैज्ञानिकों द्वारा यह सिद्ध किया जा चुका है कि सूर्य की किरणों का प्रभाव जल पर अतिशीघ्र पड़ता है, इसलिए सूर्य को अभिमंत्रित जल का अर्घ्य दिया जाता है।

सूर्य एक प्राकृतिक चिकित्सालय है। सूर्य की सप्तरंगी किरणों में अद्भुत रोगनाशक शक्ति है। सुबह से शाम तक सूर्य अपनी किरणों, जिनमें औषधीय गुणों का अपार भंडार है, अनेक रोग उत्पादक कीटाणुओं का नाश करता है। टीबी के कीटाणु उबलते पानी से भी जल्दी नहीं मरते, वे सूर्य के तेज प्रकाश से शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। फिर दूसरे जीवाणुओं के नाश होने में संदेह ही क्या है।

स्वस्थ रहने के लिए जितनी शुद्ध हवा आवश्यक है, उतना ही प्रकाश भी आवश्यक है। प्रकाश में मानव शरीर के कमजोर अंगों को पुनः सशक्त और सक्रिय बनाने की अद्भुत क्षमता है।

सूर्य में प्रसन्नता-अप्रसन्नता के परमाणु भी हैं। संध्या का संबंध सूर्य से जोड़ा गया है। मुख्य संध्या है सावित्री जप। सावित्री सविता की ऋचा का ही नाम है। सविता सूर्य और सूर्य आभामंडल का पर्याय है। अतः संध्योपासना कर्म में जब सविता का ध्यान करना है तो अर्घ्य भी उसी को अर्थात सूर्य को ही देना चाहिए।

सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च (यजुर्वेद 7/42)। इस मंत्र में सूर्य को स्थावर-जंगम पदार्थों की आत्मा माना गया है। जीवेमशरदः शतम्‌ (यजुर्वेद 36/24) से सौ वर्ष जीने की, सौ वर्ष बोलने-सुनने की प्रार्थना भी उसी सूर्य से की जाती है। एक अमेरिकी वैज्ञानिक का कहना है कि यदि ऊष्मा हमारे अंदर सुरक्षित रह सके तो हम चार सौ वर्ष तक जीवित रह सकते हैं।

ऊष्मा हमें सूर्य से ही प्राप्त होती है। सूर्य के न होने से ही प्रलय काल में ऊष्मा के अभाव में सभी स्थावर-जंगम नष्ट हो जाते हैं। सूर्य के प्रकाश का संबंध सिर्फ गर्मी देने से नहीं है। इसका मनुष्य के आहार के साथ भी घनिष्ठ संबंध है। छोटे-बड़े पौधे व वनस्पतियों के पत्ते सूरज की किरणों के सान्निध्य से क्लोरोफिल नामक तत्व का निर्माण करते हैं।

इस तत्व के बिना पत्तों में कुदरती हरापन नहीं रहता। हम खान-पान में प्रायः हरी सब्जियों का प्रयोग करते हैं। इन हरी सब्जियों में ही मानव शरीर के पोषक तत्व रहते हैं। इस तरह सूर्य प्रकाश अप्रत्यक्ष रूप से मानव जीवन के लिए आवश्यक है।