सूर्य : सृष्टि की आत्मा....

- गुलशन अग्रवाल

ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को प्रामाणिक ग्रह माना गया है। सूर्य, अग्नि, विष्णु तथा जीवनदायिनी शक्ति है। इन शब्दों में विशेष अंतर है, जिसे समझना अत्यंत कठिन है। यजुर्वेद के अनुसार सूर्य, अग्नि एवं ज्योति के अंतर्संबंधों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। सूर्य की ज्योति बा रूप में और सूर्य से प्रजनित अग्नि सृष्टि की आंतरिक शक्ति के रूप में सृष्टि क्रम को चलाती है। इनका दैनिक जीवन में किस प्रकार प्रतिफल होता है, उसे ज्योतिष शास्त्र में बताया गया है। सूर्य की ज्योति का अध्ययन करना ही ज्योतिष का मूल लक्ष्य है।

सूर्य की कृपा के बिना किसी भी जातक के लिए सांसारिक तथा आध्यात्मिक विकास संभव नहीं होता है। सृष्टि के सृजन में सूर्य की विशेष महत्ता है। उसे होमादि यज्ञ करने वाले यजमानों के लिए उनका आराध्य देव माना गया है। वे देवगण, ग्रहों तथा नक्षत्रों के प्रमुख हैं। सूर्य ही ब्रह्मांड का केंद्र है। इनसे ही समस्त सृष्टि में उद्भव, पोषण एवं प्रलय होता है। सूर्य ही ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की एकीकृत त्रिमूर्ति का प्रतीक है। सूर्य के रथ में एक पहिया है, परंतु वायु से तेज ले जाने वाले सात घोड़े जुड़े हुए बतलाए गए हैं।
  ज्योतिष शास्त्र में सूर्य को प्रामाणिक ग्रह माना गया है। सूर्य, अग्नि, विष्णु तथा जीवनदायिनी शक्ति है। इन शब्दों में विशेष अंतर है, जिसे समझना अत्यंत कठिन है। यजुर्वेद के अनुसार सूर्य, अग्नि एवं ज्योति के अंतर्संबंधों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया।      


सूर्य का समस्त ग्रहों से घनिष्ठ संबंध है। चंद्रमा को सूर्य की किरणों से ज्योति मिलती है। इन्हीं किरणों से प्राप्त ज्योति के अनुपात में चंद्रमा का शुभत्व निर्धारित किया जाता है। मंगल ग्रह को शक्ति भी सूर्य से ही प्राप्त होती है। वास्तव में मंगल ग्रह जातक को आदित्य में लीन होने के लिए प्रेरित करता है तथा इस मार्ग में आने वाली कठिनाइयों का सामना करने की क्षमता प्रदान करता है, किंतु मंगल ग्रह की ये क्षमता सूर्य से प्राप्त किरणों पर ही निर्भर करती है। फलित ज्योतिष में सूर्य और मंगल परस्पर मित्र माने जाते हैं।

सूर्य का बुध ग्रह से भी घनिष्ठ संबंध है। बुध ग्रह मनुष्य का मानसिक विकास बताता है। मनुष्य को आत्मज्ञान बुध की इसी शक्ति से प्राप्त होता है, परंतु आत्म चेतना का मूलभूत स्रोत सूर्य ही है। इसी के फलस्वरूप जातक की बुद्धि, विद्वत्ता एवं मानसिक शक्ति का ज्ञान होता है। गुरु ग्रह से जातक के सुख-समृद्धि का अनुमान लगाया जाता है।

ये ग्रह मनुष्य का भरण-पोषण करता है एवं संकट के समय रक्षा करता है। धार्मिक प्रवृत्ति एवं शुभ मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी बृहस्पति से ही मिलती है, किंतु गुरु ग्रह को प्राण-शक्ति सूर्य से ही प्राप्त होती है। सूर्य व गुरु परस्पर मित्र भी हैं। सूर्य से अति निकट होने के कारण ही शुक्र, सूर्य की किरणों से दैदीप्यमान होता है और आनंद का एक स्रोत प्रवाहित करता है। सूर्य में वैराग्य एवं संभोग दोनों प्रकार की क्षमता प्रदान करने की शक्ति रहती है। सूर्य व शनि में पिता-पुत्र का संबंध है।

सूर्य की आकर्षित करने की शक्ति तथा शनि की प्रतिघाती शक्ति के परस्पर प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप ही सृष्टि में संतुलन स्थित रहता है। सूर्य को ग्रह मंडल का राजा माना गया है। अर्थात अन्य सभी ग्रहों का फल सूर्य की इच्छानुसार व प्रतिपादित नियमों के अनुसार होता है। अग्नि, जिसकी उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से मानी जाती है, सूर्य के प्रत्यधिदेवता हैं।

सूर्य पुरुष ग्रह और क्षत्रिय वर्ण में जन्मा कहा जाता है। सूर्य की किरणों की ज्वाला इतनी प्रखर थी कि इनकी पत्नी उसे सहन नहीं कर सकी। इसके फलस्वरूप 'छाया' को इनके पास रखकर स्वयं अपने पिता विश्वकर्मा के पास चली गई। सूर्य एवं छाया के संयोग से शनि, ताप्ती, विष्टि तथा सावणी मनु उत्पन्न हुए।

जब सूर्य को छाया की वास्तविकता का ज्ञान हुआ तब उन्होंने संज्ञा की खोज की। तब वह घोड़ी के रूप में ब्रह्मांड में भ्रमण कर रही थी। सूर्य ने भी अश्व का रूप धारण कर उससे संबंध स्थापित किया। इसके फलस्वरूप सूर्य ने यम, यमुना, दोनों अश्विनी कुमार तथा रैवत को जन्म दिया। वैवस्वत मनु भी इन्हीं के पुत्र हुए। महाभारत में भी सूर्य के संयोग से कर्ण के जन्म का वर्णन आता है। रामायण में राजा सुग्रीव को भी सूर्य पुत्र माना गया है।

सूर्य की किरणों की तीक्ष्णता को कम करने के लिए विश्वकर्मा ने इनकी किरणों से विष्णु का सुदर्शन चक्र्र, शिव का त्रिशूल, कुबेर का आयुध तथा कार्तिकेय का भाला आदि अनेक प्रकार के अस्त्र बनाए। इन वृत्तांतों से सूर्य की अपरिमित शक्ति, सृष्टि कम के लिए शक्तिशाली स्रोतों का प्रवाहित करना, देव हित तथा सृष्टि की अभिव्यक्ति के लिए अपने प्रभाव को सीमित रखना सूर्य के कुछ प्रमुख लक्षण प्रकट होते हैं।