चन्द्रमा के बाद रात के आकाश में सबसे ज्यादा शुक्र ही है। शुक्र का आकार और घनत्व करीब-करीब पृथ्वी जैसा है और इसका गुरुत्वाकर्षण भी पृथ्वी जितना है। फिर भी जीवन के लिए यह पूर्णत: प्रतिकूल है, क्योंकि इसका औसत तापमान 464 डिग्री सेंटीग्रेट रहता है।
शुक्र, सूर्य से 10.82 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर है। यह अपने अक्ष पर 2 डिग्री झुका हुआ है और उल्टा घूमते हुए 35.02 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से सूर्य की परिक्रमा करता है। इसलिए शुक्र पर सूर्य पश्चिम से उगकर पूर्व में अस्त होता दिखेगा।
शुक्र पृथ्वी के 225 दिनों की अवधि में सूर्य का एक चक्कर लगा लेता है जबकि खुद अपनी धुरी पर घूमने में 117 दिन लगाता है।
शुक्र हल्के-पीले बादलों से ढंका है और इसकी पूरी सतह छिपी रहती है। इसके बादल सल्फ्युरिक एसिड की बूंदें हैं। शुक्र की जानकारी लेने गए करीब 20 रूसी व अमेरिकी अंतरिक्ष यान वहां कुछ घंटों में ही नष्ट हो गए। 12,104 किलोमीटर व्यास के शुक्र ग्रह के वायुमंडल में 97 कार्बन डाई ऑक्साइड है, जो जहरीली है। वहां वायुमंडल का दबाव 1.330 पौंड प्रति इंच है।
पृथ्वी से 90 गुना ज्यादा ऐसा दबाव समुद्र में 80 मीटर गहरे जाने पर बनता है।
दूरबीन से देखे जाने पर इसकी कलाएं देखी जा सकती हैं। यह चन्द्रमा की तरह घटता-बढ़ता है।
शुक्र ग्रह पर मौजूद कार्बन डाई ऑक्साइड और जल वाष्प सूर्य की प्रकाश किरणों को समाहित कर लेती है। वापस नहीं जाने देती। इस ग्रीनहाउस प्रभाव के चलते यह लगातार और गर्म होता जा रहा है। कुछ भी हो, इसकी चमक सदियों से इंसानों को आकर्षित कर रही है।
प्राचीन रोमवासियों ने तो इसे प्यार और सौन्दर्य की देवी बताकर 'वीनस' नाम दिया है।