तांत्रिक साधना के प्रकार

तांत्रिक साधना दो प्रकार की होती है- एक वाम मार्गी दूसरी दक्षिण मार्गी। वाम मार्गी साधना बेहद कठिन है। साधना में जब पात्रता का विचार किया जाता है, तब कहा जाता है गुरु भक्त हो जिसका मन चंचल न हो, वही तंत्र साधना का अधिकारी हो सकता है, जिसके हृदय में विश्वास नहीं है उसे मंत्र कभी सिद्ध नहीं हो सकते।

शान्ति, वक्ष्य, स्तम्भनानि, विद्वेषणोच्चाटने तथा।
गोरणों तनिसति षट कर्माणि मणोषणः॥

शान्ति कर्म वशीकरण स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन, मारण इन छ: प्रयोगों को तांत्रिक षट् कर्म कहते हैं।

मारण मोहनं स्तम्भनं विद्वेषोच्चाटनं वशम्‌।
आकर्षण यक्षिणी चारसासनं कर त्रिया तथा

मारण, मोहनं, स्तम्भनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के ये नौ प्रयोग हैं।

रोग कृत्वा गृहादीनां निराण शन्तिर किता।
विश्वं जानानां सर्वेषां निधयेत्व मुदीरिताम्‌॥
पूधृत्तरोध सर्वेषां स्तम्भं समुदाय हृतम्‌।
स्निग्धाना द्वेष जननं मित्र, विद्वेषण मतत॥
प्राणिनाम प्राणं हरपां मरण समुदाहृमत्‌।

जिससे रोग, कुकृत्य और ग्रह आदि की शान्ति होती है, उसको शान्ति कर्म कहा जाता है और जिस कर्म से सब प्राणियों को वश में किया जाए, उसको वशीकरण प्रयोग कहते हैं तथा जिससे प्राणियों की प्रवृत्ति रोक दी जाए, उसको स्तम्भन कहते हैं तथा दो प्राणियों की परस्पर प्रीति को छुड़ा देने वाला नाम विद्वेषण है और जिस कर्म से किसी प्राणी को देश आदि से पृथक कर दिया जाए, उसको उच्चाटन प्रयोग कहते हैं तथा जिस कर्म से प्राण हरण किया जाए, उसको मारण कर्म कहते हैं।

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