तांत्रिक साधना दो प्रकार की होती है- एक वाम मार्गी दूसरी दक्षिण मार्गी। वाम मार्गी साधना बेहद कठिन है। साधना में जब पात्रता का विचार किया जाता है, तब कहा जाता है गुरु भक्त हो जिसका मन चंचल न हो, वही तंत्र साधना का अधिकारी हो सकता है, जिसके हृदय में विश्वास नहीं है उसे मंत्र कभी सिद्ध नहीं हो सकते।
जिससे रोग, कुकृत्य और ग्रह आदि की शान्ति होती है, उसको शान्ति कर्म कहा जाता है और जिस कर्म से सब प्राणियों को वश में किया जाए, उसको वशीकरण प्रयोग कहते हैं तथा जिससे प्राणियों की प्रवृत्ति रोक दी जाए, उसको स्तम्भन कहते हैं तथा दो प्राणियों की परस्पर प्रीति को छुड़ा देने वाला नाम विद्वेषण है और जिस कर्म से किसी प्राणी को देश आदि से पृथक कर दिया जाए, उसको उच्चाटन प्रयोग कहते हैं तथा जिस कर्म से प्राण हरण किया जाए, उसको मारण कर्म कहते हैं।