॥ वैभव प्रदाता श्री सूक्त ॥

ऋग्वेद में लक्ष्मी की स्तुति बड़े विशिष्ट रूप में की गई है। निम्नांकित ऋचाओं से गाय के शुद्ध घी से नियमित हवन करने से अलक्ष्मी (अर्थात दुःख, दरिद्रता की देवी) की अकृपा प्राप्त होती है। इन ऋचाओं में अलक्ष्मी की अकृपा एवं लक्ष्मी की संपूर्ण कृपा की कामना की गई है। जिन व्यक्तियों के जीवन में धन प्राप्ति होकर भी सदैव कर्ज बना रहता है उनके लिए यह सर्वश्रेष्ठ एवं अतिउपयोगी है। जिन व्यक्तियों को धन कभी न रहा हो किंतु रोग आदि की वजह से अन्न न खा सकते हों उनके लिए भी यह सर्वाधिक उपयोगी है।
 
श्री सूक्त की ऋचाओं से नियमित हवन करने से विभिन्न कष्ट दूर होकर ऐश्वर्य व भोग की प्राप्ति होती है। अलक्ष्मी की अकृपा प्राप्त होने से एक ओर जहाँ दुःख दरिद्रता, रोग, कर्ज से मुक्ति मिलती है, वहीं दूसरी ओर लक्ष्मी की कृपा से भोग की प्राप्ति होती है।
 
श्रीसूक्तम पाठ
 
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्‌।
चंद्रां हिरण्यमणीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥
 
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्‌।
यस्यां हिरण्यं विंदेयं गामश्वं पुरुषानहम्‌॥
 
अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्‌।
श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम्‌॥
 
कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलंतीं तृप्तां तर्पयंतीम्‌।
पद्मे स्थितां पद्मवणा तामिहोपह्वये श्रियम्‌॥
 
चंद्रां प्रभासां यशसा ज्वलंतीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्‌।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे॥
 
आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः।
तस्य फलानि तपसानुदन्तु या अंतरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः॥
 

उपैतु मां देवसखः कीतिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्‌ कीर्तिमृद्धिं ददातु मे॥
 
क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्‌।
अभूतिमसमृद्धि च सर्वां निर्णुद से गृहात्‌॥
 
गंधद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्‌।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्‌।
 
मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः॥
 
कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्‌॥
 
आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले॥
 
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम्‌।
चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह॥
 
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्‌।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ।
 
तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्‌ ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान्‌
विंदेयं पुरुषानहम्‌ ॥
 
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्‌ ।
सूक्तं पंचदशर्च च श्रीकामः सततं जपेत्‌ ॥
 
॥ इति श्री सूक्तम्‌ संपूर्णम्‌ ॥

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