अफजल गुरु : कश्मीर की वादियों से फांसी के फंदे तक

शनिवार, 9 फ़रवरी 2013 (18:10 IST)
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तेरह दिसंबर 2001 को संसद पर हुए हमले के लिए फांसी पर लटकाए गए मोहम्मद अफ़ज़ल गुरु का जीवन शिक्षा, कला, कविता और चरमपंथ का अनूठा मिश्रण है।

50 वर्षीय अफ़ज़ल उत्तरी क्षेत्र सोपोर के एक मध्यमवर्गीय परिवार के था, जो सोपोर से छ: किलोमीटर दूर आबगाह गाँव में झेलम नदी के किनारे बसा हुआ है।

अफ़ज़ल के सहपाठियों का कहना है कि वह स्कूल के कार्यक्रमों में इतने सक्रिय था कि उसे भारत के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर परेड की अगुवाई करने के लिए विशेष रूप से चुना जाता था। क्षेत्रीय स्कूल से अफ़ज़ल ने 1986 में मैट्रिक की परीक्षा पास की।

हायर सेकेडंरी के लिए जब उसने सोपोर के मुस्लिम एजुकेशन ट्रस्ट में दाख़िला लिया तो वहां उसकी मुलाक़ात नवेद हकीम से हुई जो शांतिपूर्ण भारत विरोधी गतिविधियों में सक्रिय था, लेकिन अफ़ज़ल ने पढ़ाई को प्राथमिकता दी और 12वीं पास कर, मेडिकल कॉलेज में दाख़िला लिया और पिता के ख़्वाब को पूरा करने में जुट गया।

मेडिकल का छात्र : जब कश्मीर में 1990 के आसपास हथियारबंद चरमपंथ शुरू हुआ तो अफ़ज़ल एमबीबीएस के तीसरे साल में था, तब तक उसके दोस्त नवीद हकीम चरमपंथी बन चुका था। इसी दौरान श्रीनगर के आसपास के क्षेत्र छानपुरा में भारतीय सेना पर बलात्कार के आरोप लगे थे।

अफ़ज़ल के साथियों का कहना है कि इस घटना से उसे गहरा आघात पहुंचा इसलिए उसने अपने साथियों के साथ नवेद से संपर्क स्थापित किया और भारत विरोधी जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ़्रंट में शामिल हो गया।

अफ़ज़ल नियंत्रण रेखा के पार मुज़फ़्फ़राबाद में हथियारों के प्रशिक्षण के बाद वापस लौटा तो संगठन की सैन्य योजना बनाने वालों में शामिल हो गया। सोपोर में लगभग 300 कश्मीरी नौजवान उसकी निगरानी में चरमपंथी गतिविधियों में हिस्सा लेता रहा।

ऐसे ही एक नौजवान फ़ारुक़ अहमद उर्फ़ कैप्टन तजम्मुल (जो अब चरमपंथ छोड़ चुका हैं) ने थोड़े समय पहले बताया था कि अफ़ज़ल ख़ून-ख़राबे को पसंद नहीं करता था।

चरमपंथ का सफ़र : पुरानी यादें दोहराते हुए फ़ारुक़ का कहना था कि जब कश्मीर में लिबरेशन फ़्रंट और हिजबुल मुजाहिदीन के बीच टकराव शुरू हुआ तो अफ़ज़ल ने 300 सशस्त्र लड़कों की बैठक सोपोर में बुलाई और ऐलान किया कि हम इस मार-काट में भाग नहीं लेंगे।

यही कारण है कि सारे क्षेत्र में आपसी लड़ाई में सैकड़ों मुजाहिदीन मारे गए लेकिन हमारा इलाक़ा शांत रहा। अपने चचेरे भाई शौकत गुरु (संसद पर हमले के एक और अभियुक्त जिसे दस साल की सजा हुई थी) की मदद से उसने दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और स्नातक के बाद अर्थशास्त्र में डिग्री ली।

शौकत के छोटे भाई यासीन गुरु का कहना है कि अफ़ज़ल दिल्ली में अपना और अपनी पढ़ाई का ख़र्च ट्यूशन देकर चलाता था। डिग्री के बाद थोड़े समय के लिए शौकत और अफ़ज़ल दोनों ने बैंक ऑफ़ अमेरिका में नौकरी की। अंत में दिल्ली में सात वर्षों तक रहने के बाद 1998 में वह अपने घर कश्मीर वापस लौटा। यहां उसकी शादी बारामूला की तबस्सुम के साथ हुई।

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शायरी का था शौक़ : तबस्सुम ने कुछ साल पहले बताया था कि वह अफ़ज़ल के अतीत से परिचित थी लेकिन अफ़ज़ल की संगीत में दिलचस्पी से उसने यह मतलब निकाला कि चरमपंथी बनना एक दुर्घटना थी। उसने तब कहा था कि ग़ालिब की शायरी उसके सर पर सवार थी, यहां तक कि हमारे बेटे का नाम भी ग़ालिब रखा गया। वह माइकल जैक्सन के गाने भी शौक़ से सुनता था।

उस दौर में अफ़ज़ल ने दिल्ली की एक दवा बनाने वाली कंपनी में एरिया मैनेजर की नौकरी कर ली और साथ-साथ खु़द भी दवाइयों का कारोबार करने लगा। अफ़ज़ल के दोस्तों का कहना है कि यह समय अफ़ज़ल के लिए वापसी का दौर था। वह सामान्य रूप से सैर-सपाटे, गाने-बजाने और सामाजिक कामों में दिलचस्पी लेने लगे था।

अफ़ज़ल के बचपन के साथी मास्टर फ़ैयाज़ का कहना है कि क्षेत्रीय फ़ौजी कैंप पर हर रोज़ हाज़िर होने की पाबंदी और पुलिस टास्क फ़ोर्स की कथित ज़्यादतियों ने अफ़ज़ल की सोच को वापस मोड़ दिया।

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इसके बाद अफ़ज़ल ने सोपोर में रहना छोड़ दिया और अधिकतर दिल्ली और श्रीनगर में रहने लगा। हिलाल गुरु का कहना है कि जब 13 दिसंबर को संसद पर हमला हुआ तो वह अफ़ज़ल के साथ दिल्ली में मौजूद था। अफ़ज़ल दूसरे ऐसे कश्मीरी हैं जिन्हें अलगाववादी गतिविधियों के लिए फांसी पर लटकाया गया है। उनसे पहले जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मक़बूल बट्ट को फांसी दी गई थी।

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