पानी रे पानी तेरा रंग कैसा....

शेखर कपूर, फिल्म निर्देश
BBC
पानी हमारे लिए बहुत बड़ा मसला बन चुका है। हिंदुस्तान आर्थिक प्रगति के रास्ते पर है, लेकिन अगर पानी नहीं रहेगा तो सोचिए विकास की गाड़ी आगे कैसे बढ़ेगी?

जब मैं छोटा था तो दिल्ली में एक या दो बार हैंडपंप चलाने से पानी निकल आता था, पाँच फुट पर ही पानी होता था। अब 600 फुट पर भी पानी नहीं मिलता।

लोग कहते हैं कि पहले तेल को लेकर लड़ाइयाँ होती थीं और आने वाले दिनों में पानी को लेकर होंगी। ये लोग गलत हैं क्योंकि पानी को लेकर लड़ाइयाँ तो शुरू हो चुकी हैं।

बड़ी-बड़ी कंपनियाँ हमारे यहाँ से पानी लेकर शीतल पेय बनाती हैं और किसानों के खेत सूख रहे हैं। दक्षिण भारत में तो कई जगह पानी को लेकर दंगे फसाद हो चुके हैं। सोचिए, अगर भारत के शहरों में पानी की कमी के कारण झगड़े-दंगे होने लगें तो क्या होगा?

(22 मार्च को वर्ल्ड वॉटर डे है. शेखर कपूर इन दिनों अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म पानी पर काम कर रहे हैं। ये एक प्रेम कहानी है जो ऐसे शहर में आधारित है, जहाँ पानी को लेकर युद्ध छिड़ा हुआ है)

भले ही कोई खुले तौर पर न कहे लेकिन जब भारत और पाकिस्तान के बीच जंग हुई थी तो ये बात उठी थी कि पाकिस्तान की ओर जो नदियाँ बहती हैं, उनका पानी रोक लेना चाहिए। गोलन हाइट्स की लड़ाई भी वाटर वार ही थी। लोग कहते नहीं हैं, लेकिन पानी को लेकर युद्ध शुरू हो चुके हैं।

जल प्रबंधन की कमी : मुद्दा है कि हम आप क्या कर सकते हैं। मैं मानता हूँ कि जागरूकता बहुत बड़ी चीज है। एक जमाना था जब हम पानी की पूजा किया करते थे।

पहले पानी सामुदायिक इस्तेमाल की चीज होती थी। लोग पानी के स्रोत के पास जाकर पानी भरते थे लेकिन अब पानी आपके पास आ जाता है। अब तो हमारे बाथरूम में भी पानी होता है। पर कभी हमने सोचा कि ऐसी मूल्यवान चीज को हम संभालकर रखें?

इससे उलट हम पानी को बेफजूल खर्च करते हैं। वर्ल्ड वाटर डे पर मैं सबसे कहता हूँ कि कुछ और नहीं तो इस बात का पालन करें कि एक बाल्टी में रखे पानी से नहाएँगे, बर्बाद नहीं करेंगे।

दरअसल भारत में पानी के प्रबंधन को लेकर समझ नहीं है। बारिश के पानी की हार्वेस्टिंग कहीं-कहीं हो रही है जो सराहनीय है। इसी तरह कहीं-कहीं कानून है कि बारिश के पानी की हार्वेस्टिंग की सुविधा के बगैर इमारत नहीं बनेगी। ऐसे कानूनों की हमें जरूरत है।

कुछ लोग समझते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही पानी की किल्लत होने लगी है, लेकिन ऐसा नहीं है। इसका कारण है कि भारत में खेती ग्राउंड वाटर से होती है- जमीन से पानी निकाला जाता है। पानी की समस्या जलवायु परिवर्तन के कारण नहीं हुई है बल्कि इसलिए की जल प्रबंधन नहीं है।

जमीन का पानी खेती में इस्तेमाल हो जाता है, पेड़ लगातार कम हो रहे हैं, नदियाँ इतनी प्रदूषित कर दी हैं हमने कि उसका पानी पीने लायक नहीं है, जल संसाधनों का व्यवसायीकरण हो चुका है- पानी की समस्या तो होगी ही।

पर्यावरण अपने आप में बहुत ही संतुलित चीज होती है। हमने ये संतुलन इतना बिगाड़ दिया है कि पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की कमी हो गई है। ये किसी भी संस्कृति के लिए अच्छी बात नहीं है।
(बीबीसी संवाददाता वंदना से बातचीत पर आधारित)

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