भारत-पाक के बीच संगीत एक पुल है-राहत

सोमवार, 21 जून 2010 (16:53 IST)
-रचना श्रीवास्तव

BBC
फिल्म 'पाप' के एक गीत 'लागी तुम से लगन' ने रातोरात एक अनजान गायक को हिन्दुस्तान की आवाज बना दिया और आज हर दूसरी फिल्म में ये आवाज अपनी मधुरता के नए अंदाज स्थापित करती जा रही है।

हम बात कर रहे हैं स्वर्गीय नुसरत फतेह अली खान साहेब के सच्चे उत्तराधिकारी उस्ताद राहत फतेह अली खान की जो पिछले दिनों अमेरिका आए और यहाँ 'सुर इंटरटेनमेंट' के तहत आयोजित संगीत संध्या में समाँ बाँध दिया। राहत फतेह अली जितने सुरीले है और मधुर हैं, उनका व्यक्तित्व और विचार उससे भी बेहतर है। उनके साथ एक अंतरंग गुफ्तुगू के कुछ अंश:

जब आप ने अपना पहला स्टेज शो किया था तब आप बहुत छोटे थे तो क्या आप को डर नहीं लगा था?
जब मैंने पहला स्टेज शो किया था उस वक्त मै सात साल का था। पाकिस्तान में एक बहुत बड़ा मौसिकी का दंगल हुआ करता था। उसमें शिरकत करने बहुत बड़े-बड़े कलाकार आते थे। उसमें मैंने गाया था। मैं बिलकुल भी नहीं घबराया था। मुझको डर तब लगा था जब मै बड़ा हो गया। क्या है कि जब आपको किसी काम का पता चल जाता है तो आप ज्यादा सावधान रहते हैं।

संगीत का ये रूहानी सफर सही मायनों में कबसे शुरू हुआ?
आप तो जानती ही हैं कि मैं नुसरत फतेह अली खान साहब का भतीजा हूँ और मेरे वालिद फर्रुख फतेह अली खान साहेब को भी संगीत का शौक था। बस समझ लीजिए कि पूरे घर में ही संगीत का माहौल था। जब खाँ साहब (नुसरत फतेह अली) ने मुझे सुना तो उन्होंने बहुत तारीफ की। उन्होंने मुझे गोद ले लिया था।

तो आप उनके संगीत के उत्तराधिकारी हैं?
आप ऐसा कह सकती हैं। मै अपनी तरफ से कोशिश तो पूरी करता हूँ, अब कितना सफल होता हूँ, ये तो श्रोता ही बता सकते हैं।

आपने अपने एक साक्षत्कार में कहा था कि जब आप स्टेज पर गाते थे, आप नुसरत फतेह अली खान साहब की तरफ देखकर गाते थे ऐसा क्यों?
जी सही है। सभी कहते भी थे कि सामने देखकर गाओ। 1975 में खान साहब मुझे अपने साथ टूर पर ले गए, उस समय मै कॉलेज में था। मैं छुट्टियाँ लेकर गया था।

खान साहब से सीखने का जो समय मुझे मिलता था वो टूरिंग में ही मिलता था तो शिक्षा केवल स्टेज पर ही हुआ करती थी। मेरे पास सीखने का समय कम होता था तो मै गाते समय उन्हीं की तरफ देखा करता था कि वो क्या कह रहे हैं क्योंकि मैं कुछ भी मिस नहीं करना चाहता था।

नुसरत के गानों के रीमिक्स बने हैं। इस बारे में उन्होंने आपसे कभी कुछ कहा?
जी वो बहुत बुरा महसूस करते थे। उस गाने को वो सुनते ही नहीं थे। मेरा मानना तो ये है कि रीमेक कर ले पर रीमिक्स नहीं करना चाहिए। रीमिक्स तो वो है कि अगर किसी चीज की कोई कमी रह गई हो तो उसको मिक्स कर दिया जाए या जो मिक्स है उस को रीमिक्स किया जाए।

आज के दौर में जबकि फिल्मी संगीत हर किसी जबान पर है, आप कव्वाली और सूफी गानों का भविष्य कहाँ देखते हैं?
संगीत से दोनों ही देश आपस में बहुत गहरे जुड़े हैं और ये एक पुल है भारत और पाकिस्तान के बीच। इसका असर तो जानवरों पर भी होता है हम तो फिर भी इंसान हैं
आज मैं जो कुछ भी हूँ, सूफी गानों और क़व्वाली की वजह से ही हूँ। मेरे हिसाब से तो इनका भविष्य बहुत अच्छा है। आजकल लोगों का रुझान मध्यम सुरों के गाने, सुकून पहुँचाने वाले गानों की तरफ ज्यादा है। पॉप गाने भी पसंद करते हैं पर उसमें भी सुर तलाशते हैं, टेम्पो किस तरह का है, तत्व क्या हैं, टेक्नो बीट में देसी टच है या नहीं।

कम लोग जानते है कि आपने हॉलीवुड की फिल्म के लिए भी काम किया है। उसके बारे में हमें कुछ बताइए?
सन 1995 में 'डेड मैन वाकिंग' में मैंने अपने वालिद और खाँ साहेब के साथ संगीत देने में सहायता की थी। 2002 में 'फोर फेदर्स' के साउंड ट्रेक पर काम किया। एक मूवी 'एपोकैलिप्सो' 2006 में आई थी, उसके साउंड ट्रैक में मैंने आवाज भी दिया है।

आप ने बॉलीवुड और हॉलीवुड दोनों जगह काम किया है, इन दोनों जगहों के काम करने के तरीके में क्या फर्क है?
जमीन आसमान का फर्क है। हॉलीवुड में हम गीत नहीं देख पाते हैं, बस धुन पे संगीत देते हैं और यहाँ पूरा सीन मालूम होता है, गीत सामने होता है, पूरी सिचुएशन को समझ के संगीत दिया जाता है या फिर गाया जाता है जिससे गाने में भाव आते हैं और मेरे हिसाब से गाना तभी खूबसूरत बनता है।

क्या रागों में भी कोई अंतर है?
जी कोई अंतर नहीं है क्योंकि सुर तो सुर होते हैं बस नाम का अंतर है। जैसे हमारे यहाँ 'कहरवा' है वो इसको 'फोर बीट्स' कहते हैं। जब हम 'दादरा' गाएँगे तो वो इस को 'थ्री और फोर' कह देंगे। 'दादरा' को वो 'वाल्व और बैले' भी कहते हैं।

आपको बॉलीवुड में काम करके कैसा लग रहा है?
बहुत ही अच्छा लग रहा है। इतनी मुहब्बत और इज्जत मिली है कि दामन भर गया। मैं सभी का दिल की गहराइयों से शुक्रगुजार हूँ।

हिंदी सिनेमा में आपने बहुत से संगीतकारों के साथ काम किया है। उनमें से आपके पसंदीदा संगीतकार कौन-कौन हैं?
शंकर महादेवन, विशाल शेखर, विशाल भारद्वाज, प्रीतम। ये सभी मुझे बहुत पसंद हैं।

आपको अपने पहले गीत 'लागी तुम से मन की लगन' और आजकल के गीतों जैसे 'सजदा', 'दिल तो बच्चा है जी' में क्या कोई अंतर लगता है?
जी हाँ मौसीकी ऐसी चीज है कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, तजुर्बा बढ़ता है तो ये और मजबूत होती जाती है। यही फर्क है। गीत तो सभी अच्छे हैं पर समय के साथ और परिपक्व होते जाते हैं।

आप संगीत भी देते हैं। कम्पोज करते समय किन-किन बातों का विशेष ध्यान रखते हैं?
मै सुनने वालों का ध्यान रखता हूँ। साथ ही वैरिएशन भी करता हूँ। प्रीतम भाई मेरा बहुत साथ देते हैं कहते हैं ये आपका गाना है अब आप जैसे गाना चाहते हैं गाएँ।

अभी एक पंजाबी फिल्म आई है 'विरसा' इसमें आपका एक गाना है 'मैं तेनू समझावाँ' बहुत खूबसूरत गाना है?
जी वो माशा अल्लाह बहुत खूबसूरत गाना है। मेरे एक बहुत ही अच्छे दोस्त थे जो अभी इस दुनिया में नहीं रहे अहमद अनीज साहब, उनका लिखा हुआ है और ये गीत सही मायनों में उन्ही को समर्पित है।

आजकल भारत में पाकिस्तानी गायक बहुत सफल हैं और पसंद किए जा रहें हैं आप की जर में क्या कारण है?
मेरी निगाहों में ये दोस्ती और प्यार है। संगीत से दोनों ही देश आपस में बहुत गहरे जुड़े हैं और ये एक पुल है भारत और पाकिस्तान के बीच। इसका असर तो जानवरों पर भी होता है हम तो फिर भी इंसान हैं।

आप के एक गाने दिल तो बच्चा है जी को बहुत पसंद किया जा रहा है। इसमें संगीत बहुत कम है, थोडा़ अलग तरह का गाना है?
जी हाँ ये गाना बहुत अच्छा बना है, थोड़ा अलग है। ये एक सिचुएशनल गाना है, एक अलग तरह से फिल्माया भी गया है और इसके बोल भी बहुत सुंदर हैं।

फिल्मी गानों को गाने और कव्वाली गाने में क्या अलग-अलग नोड्स लगते हैं?
जी हाँ फिल्मों के ज्यादातर गानों में एक पिच नीचे होता है और क़व्वाली में बहुत ही ऊँचे नोड्स लगते हैं। कव्वाली गाते समय पता ही नहीं होता है कि आप कितने ऊँचे नोड्स पर पहुँच गए हैं।

आपने बहुत से कॉन्सर्ट किए हैं हर जगह सुनने वाले एक से नहीं होते?
जी आप ने सही कहा, कभी तो लोग केवल बॉलीवुड के गाने सुनना चाहते हैं, कभी कव्वालियों की फरमाइश होती है, कहीं लोग नुसरत साहब के गानों को सुनना चाहते हैं। इसीलिए आप क्या गाएँगे ये थोड़ा सोच के आ सकते हैं पर स्टेज पर आकर आपको सामईन (श्रोता) का ध्यान रखना होता है।

खुद राहत जी के शब्दों में राहत क्या है?
मै तो बस मौसीकी (संगीत) का खिदमतगार हूँ। मेरे परिवार में सभी मौसीकी की खिदमत करते आए हैं और मैं भी कर रहा हूँ।

आपको जब फुर्सत मिलती है तो संगीत के अलावा आप क्या करना पसंद करते हैं?
फुर्सत के पल कहाँ मिलते हैं, अगर मिले भी तो आराम करता हूँ और संगीत सुनता हूँ।

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