मैं दुश्मनों को नहीं पहचानता-जेठमलानी

सर्वोच्च न्यायालय के जाने-माने वकील और राजनीतिज्ञ राम जेठमलानी अपनी तेज जबान और हाजिर जवाबी के लिए खासे मशहूर हैं। उनका मानना है कि मैं दुश्मनों को नहीं पहचानता। यदि वे सामने आ भी जाएँ तो दुश्मनी भूलकर में उनकी मदद करता हूँ।

हम लोग इतने सालों से सुनते आ रहे हैं कि बहुत ही रंगीले, ऊर्जावान, जबर्दस्त बोलने वाले और तीव्र बुद्घि का मिलन हैं राम जेठमलानी। ये सच है या कोई कल्पना गढ़ी गई है?

अगर मैं कहूँगा कि सच है तो ये गलत होगा क्योंकि अपनी तारीफ करना हमारी तहजीब के खिलाफ है। अगर कहूँगा कि झूठ है तो वे सब लोग गलत साबित होंगे, जो ऐसा कहते हैं। इसलिए आप खुद ही तय कीजिए कि ये सच है या झूठ।

हाजिर जवाबी वाली बात तो सही साबित हुई और कुछ हद तक बुद्घि वाली भी। ये बताइए कि एक अच्छे वकील के लिए हाजिर जवाबी अधिक जरूरी है या विषय का ज्ञान और बुद्घि?

हाजिर जवाबी की कोई जरूरत नहीं। कभी-कभी इसका इस्तेमाल करके बात बन सकती है लेकिन कोई वकील चाहे कि वो सिर्फ हाजिर जवाबी से अदालत में मुकदमे जीत लेगा तो ये गलत होगा। उसे जल्द ही अपनी वकालत छोड़नी पड़ जाएगी।

न्यायाधीश के सामने अपनी बात एक तरीके से रखनी होती है। वो भगवान का रूप होता है। सिर्फ चालाकी भरी बातों से आप मुकदमे नहीं जीत सकते। आपको प्यार और इज्जत के साथ न्यायाधीश को अपनी बात समझानी होती है। गाली-गलौज जैसी बातें फिल्मों में ही होती है।

हाजिर जवाबी से मेरा मतलब था तर्क करने और अपनी बात रखने की क्षमता?

तर्क करना और अपनी बात रखने की क्षमता एलएलबी की कक्षाओं में बैठने से नहीं आती। ये तो तजुर्बे से आती है। अपनों से बड़ों के अनुभव से सीखकर आती है।

आपने 17 साल की उम्र में एलएलबी कर ली थी। ये भी एक बड़ी बात है?

हाँ, मुझे स्कूल में चार प्रोन्नति मिली थीं। पहले मुझे तीसरी कक्षा से छठी कक्षा में प्रोन्नति मिली। फिर मैंने 13 साल की उम्र में दसवीं पास कर ली और चार साल बाद ही मुझे वकालत की डिग्री मिल गई।

इसका मतलब आप तो विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति हुए?

आप इसे विलक्षण प्रतिभा कहें लेकिन मैं तो इसे भी एक संयोग ही समझता हूँ। मेरा मानना है कि मेहनत के बिना कुछ भी नहीं मिलता और एक वकील के लिए तो ये बात और भी सही है। मैंने अपनी जवानी में 20-20 घंटे काम किया है।

आपकी जवानी तो अभी कायम है। इसका मतलब 20-20 घंटे काम भी जारी है?

जो लोग ऐसा कहते हैं शायद वो मेरे दोस्त हैं।

जेठमलानी साहब हम लोगों को आप अपनी पसंद का एक गाना बताएँ?

मैंने अपने परिवार की सात पीढ़ियाँ देखी हैं। उसमें कोई भी गाना गाने वाला नहीं है। मैं तो बाथरूम तक में गाना नहीं गाता लेकिन मुझे संगीत और संगीतकार अच्छे लगते हैं। मैं कोई संगीत की गहरी समझ नहीं रखता मेरे कान को जो अच्छा लगता है वही मेरे लिए अच्छा संगीत है।

मैं आजकल के गाने नहीं सुनता बल्कि पुराने जमाने का संगीत सुनता हूँ। मुझे केसी डे, लता मंगेशकर, केएल सहगल, पंकज उधास और मुकेश के गाने पसंद हैं। मुकेश मेरा बहुत गहरा दोस्त था। मैं अपने पास एक आइपॉड रखता हूँ जिसमें मैं अपनी पसंद के गाने रिकॉर्ड करके रखता हूँ और जो गाना सुनने का मन करता है उसे सुनता हूँ।

एक बार मैं डिट्रॉयट गया था तो उस समय मुकेश भी वहाँ था। उसका कोई शो था। सबने 100-200 डॉलर में टिकट ली थी उनका गाना सुनने के लिए। मैं भी वहाँ बैठा था। शो शुरू ही होने वाला था कि पता चला मुकेश का देहांत हो गया। डिट्रॉयट में उसके शो में शिरकत करने की जगह मैंने उसके अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया। एक मामले में मुकेश पकड़े गए थे तो मैंने ही छुड़ाया था। मुकेश के गाने तो आज भी मशहूर हैं।

राज कपूर की कोई याद, कोई मुलाकात। उनका कोई ऐसा गाना जो आपको पसंद हो?

राजकपूर पर फिल्माया गया गाना 'अवारा हूँ...' तो मुकेश ने ही गाया है। अभी मैं 84 साल का हूँ। मुझे कल की बातें याद नहीं रहतीं लेकिन बचपन की बातें याद हैं। मुझे याद है जब मैं छह वर्ष का था तो मुझे अपने से दो साल छोटी लड़की अच्छी लगने लगी थी मुझे उससे प्यार हो गया था।

मुझे आज भी उसका चेहरा याद है। उसकी बातें और आदतें याद हैं। उस समय मैं पहली कक्षा में पढ़ता था। मुझे अपने प्रोफेसरों की बातें भी याद हैं। पहली बार जब मैं बार गया था उस समय अपने सीनियर वकील से आशीर्वाद लेते समय कहीं बातें तक याद हैं। आप के दिमाग की एक बनावट होती है। उसमें अंतिम परतों में इकट्ठा हो रही बातें जल्दी भूल जाती हैं और पुरानी बातें याद रहती हैं।

कोर्ट की अवमानना के मामले में फँसे बिना मैं आपसे ये पूछना चाहता हूँ कि क्या ऐसा है जब आप अदालत में किसी मामले में जिरह करने जाते हैं तो न्यायाधीश आप से डरते हैं, आपको बहुत ध्यान से सुनते हैं?

ऐसा कहना गलत होगा कि न्यायाधीश मुझसे डरते हैं। वो मुझसे डरते नहीं बल्कि इज्जत जरूर करते हैं। मैं कोई गलत बात नहीं रखता हूँ। अगर मेरे मुकदमे में कोई कमी है तो मैं पहले कमजोर पक्ष सामने रखता हूँ फिर मजबूत पक्ष रखता हूँ। वकालत में आपको अदालत के सामने पूरे सम्मान के साथ रहना चाहिए। अदालत को आप में विश्वास होना चाहिए।

मैं अपनी तारीफ नहीं करना चाहता लेकिन मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ। मैं उन दिनों मुंबई उच्च न्यायालय में वकालत कर रहा था। गजेंद्र गड़कर साहब न्यायाधीश हुआ करते थे। वो मुझे किसी भी मामले पर सुनवाई शुरू करने से पहले ही पूछते थे कि मिस्टर जेठमलानी क्या आपको लगता है कि इसमें सुनवाई होनी चाहिए। मैं हाँ कहता था तो वो मामला सुनवाई के लिए स्वीकार कर लेते थे।

वहाँ आपने अपनी हाजिर जवाबी के दम पर अपने को सही साबित किया न कि मेहनत के दम पर?
हाँ मैं सही साबित हुआ। मुझे अपने मुवक्किल से उसके मामले में जिरह करने का पैसा मिलता है न कि न्यायाधीश को अपनी राय देने का।

अभी आप बता रहे थे कि आपको वो समय भी याद है जब आप सीनियर वकील के पास गए थे। उन्होंने आप को क्या सलाह दी थी?
उन्होंने कहा था कि अपना मुकदमा हार भी जाओ लेकिन अपना मुवक्किल कभी भी मत खोना। मुवक्किल को ये लगना चाहिए कि आपने मेहनत से काम किया। दूसरी बात जो उन्होंने कही थी कि अदालत का जो तुम पर विश्वास है उसे कभी भी मत गँवाना। वो बहुत कीमती है वकील के लिए।

तीसरी और सबसे बड़ी बात उन्होंने कही थी कि हो सकता है मुकदमा भी हार जाओ, मुवक्किल भी चला जाए और कोर्ट भी नाराज हो जाए लेकिन अपने अंतःकरण और विवेक को कभी कमजोर मत पड़ने देना।

इस बात के लगभग 50-60 सालों बाद क्या आप ये बात ईमानदारी से कह सकते हैं कि आपने इन बातों का हमेशा पालन किया?

मैं पूरी ईमानदारी के साथ कह सकता हूँ कि मैंने इन बातों का पालन करने की कोशिश की लेकिन मैं ये दावा नहीं कर सकता कि मैंने इनका उल्लंघन नहीं किया। हालांकि मैं कोशिश करता हूँ। और यही वजह है कि आज मैं एक सफल वकील हूँ और न्यायाधीश मुझ पर विश्वास करते हैं कि ये मुझे गलत नहीं बोलेगा।

देखिए अगर आप इन बातों का अक्षरशः पालन करते तो वकील और आदमी नहीं बल्कि देवता होते। और ये आपकी ईमानदारी ही है कि आप मान रहे हैं कि आपने अधिकतर इन बातों पर टिके रहने की कोशिश की है?

हाँ, बिल्कुल। एक वकील को पहले एक बेहतरीन इंसान होना चाहिए। बेहतरीन आदमी कभी झूठ नहीं बोलता। मुवक्किल झूठ बोलता है। क्योंकि वो आपके पास एक ऐसा मामला लेकर आता है जिसमें वो पहले ही झूठ बोल चुका होता है। लेकिन आपकी कोशिश होनी चाहिए कि आपके मुवक्किल को अदालत में और झूठ न बोलना पड़े।

लेकिन वकीलों को तो पता होता है कि उनका मुवक्किल झूठ बोल रहा है, वो अपराधी है। अब तर्क-कुतर्क करके किसी भी तरह उसे छुड़वाना है?

नहीं, उसके भी तरीके हैं। कुछ लक्ष्मण रेखा है। आप उसके बाहर नहीं जा सकते। आप जानते हैं कि आपके मुवक्किल ने हत्या की है, वो अपराधी है लेकिन आपको तो उसे बचाना ही पड़ेगा।

फर्ज करो कि मुझे मालूम है कि मेरे मुवक्किल ने अपराध किया है। मैं अदालत से कहूँगा कि साहब मेरे मुवक्किल को सजा देने के लिए ये सबूत काफी नहीं हैं। मैं ऐसा नहीं कहूँगा कि मेरा मुवक्किल कहता है कि उसने ऐसा नहीं किया इसलिए वो निर्दोष है। ये हमारे पेशे की पाबंदी है। अगर मैं ऐसा करूँगा तो बार काउंसिल मेरे खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकता है।

ये भी आपके व्यक्तित्व का एक पहलू है कि आप बहुत रोमांटिक हैं?

रोमांटिक होना कोई गुनाह नहीं है और अगर गुनाह भी है तो मैं इस गुनाह को स्वीकार करता हूँ।

तो पहली कक्षा वाली वो लड़की जिसका चेहरा आप याद कर रहे थे उस तरह से हर कक्षा में कितनी लड़कियों को आपने दिल दिया?

वो लड़की तो 80 साल की उम्र में गुजर गई लेकिन तब तक मेरी दोस्त थी।

कहते हैं कि जेठमलानी जी की महिला दोस्तों की सूची भी देश के बड़े रसूखदार लोगों से भरी पड़ी है। कुछ ऐसे भी रसूखदार लोग इसमें शामिल हैं जिन्हें और कोई नहीं जानता?

फिर मुझे अपनी प्रशंसा करनी पड़ेगी और ये उन लड़कियों के साथ बहुत अन्याय होगा अगर मैं उनका नाम बोलूँगा। लेकिन ये सच है कि मेरे अपनी बेटी से कम उम्र की लड़कियों से गहरे ताल्लुकात हैं जो बहुत प्यारी और खूबसूरत हैं। लड़कियों से दोस्ती होने का मतलब सिर्फ सेक्स नहीं है। उसके बाद भी बहुत कुछ है। अब हम लोग उसके आगे आ गए हैं।

जेठमलानी साहब आपके इस आकर्षक व्यक्तित्व का राज क्या है?

मैं अच्छा वकील हूँ। ईमानदार राजनीतिज्ञ हूँ। सच बोलता हूँ। मैं बहुत ही मीठा बोलता हूँ। जब भी मैं गुस्से में बोलता हूँ तो वो मेरे धंधे से जुड़ा होता है और सिर्फ अभिनय होता है।

मुझे बहुत दुख होता है जब मैं किसी पर गुस्सा करता हूँ। मैं अपने दुश्मनों को नहीं पहचानता हूँ। मेरा दुश्मन अगर सामने आ जाए तो मैं दुश्मनी भूलकर उसकी मदद करता हूँ। ये कहना बिल्कुल गलत है कि सेक्स लोगों के संबंध को निर्धारित करता है।

अगर मैं आपकी बातों का छोटा करके बोलूँ तो सेक्स जरूरी नहीं है बल्कि मीठी जबान, बड़ा दिल, अपने दुश्मनों को माफ करने की ताकत और बुद्घिमान होना अधिक महत्वपूर्ण है?

मैं आपको एक राज की बात बताता हूँ। एक लड़की थी उसने ब्रिटिश प्रधानमंत्री ग्लैडस्टोन के साथ खाना खाया। खाने के बाद उसको लगा कि वो दुनिया के सबसे बुद्घिमान आदमी से मिली है। कुछ दिनों बाद ही वही लड़की एक दूसरे ब्रिटिश प्रधानमंत्री डिजरैली के साथ खाने पर थी। खाने के बाद उस लड़की ने महसूस किया कि वो दुनिया की सबसे बुद्घिमान महिला है। डिजरैली ने उसे ऐसा महसूस कराया। औरतों को ऐसा महसूस करवा ले जाना एक बड़ी सफलता है।

आप भी औरतों को ये महसूस करा ले जाते हैं कि खूबसूरती के साथ दिमाग जरूरी है?

हाँ, सिर्फ सुंदर होना ही सब कुछ नहीं है।

आपका राजनीतिक जीवन बहुत उतार-चढ़ाव वाला रहा है। कभी तो आप राजनीति के सबसे रसूखदार लोगों के एकदम खासमखास होते हैं तो कभी बिल्कुल अलग-थलग। ऐसा कैसे होता है?

मेरी लिए सच और सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी ही सबसे ऊपर रही। मैंने कोई पार्टी इसलिए नहीं पकड़ी या छोड़ी कि मुझे कोई पद या लाभ मिलेगा। मैं जनता पार्टी से जुड़ा क्योंकि मैं आपातकाल के खिलाफ था। वो भारत के इतिहास में बड़ी खतरनाक घटना थी।

मैं याद नहीं करना चाहता कि कैसे हमारे न्यायाधीश पागल हो गए थे। वो अदालतों के न्यायाधीश ही थे जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र को नीचा दिखाया। हम आपातकाल के खिलाफ लड़े। हम भी कांग्रेसी थे। जो भी आजादी की लड़ाई के समय थे वो सब कांग्रेसी थे। उस समय कांग्रेस ही थी। मैंने पार्टी छोड़ी नहीं थी। कांग्रेस ने अपने उसूलों को छोड़ दिया था। कांग्रेस वो पुरानी वाली पार्टी नहीं रही थी।

जनता पार्टी आई तो मैं उससे जुड़ा। जनता पार्टी ने दो सालों में अपना मुँह काला कर लिया। बँटवारा हो गया बीजेपी बनी, मैं बीजेपी के साथ गया। मेरा मानना था कि इन लोगों ने पार्टी नहीं छोड़ी बल्कि दूसरे लोगों ने बहाना बनाकर पार्टी तोड़ी है। उसके बाद मैं इंदिरा गाँधी के तथाकथित हत्यारों के मामले में वकील बना। जिनको मौत की सजा होती है उनको न्यायालय सरकारी वकील देता है। पूछता है उनसे।

उन लोगों ने कहा कि हमें राम जेठमलानी चाहिए। उच्च न्यायालय ने मुझसे आग्रह किया। इस आग्रह को हम आदेश समझते हैं। मैं मुफ्त में उनकी तरफ से वकील बना और बीजेपी ने मुझे निकाल दिया। मुझे बहुत दुख हुआ। बीजेपी तो इंदिरा गांधी की मुखालफत करती थी। मैं इन तथाकथित हत्यारों का वकील क्यों न बनता। ऐसा न करना मेरे पेशे के खिलाफ था।

उसके बाद से आज तक मैं किसी पार्टी से नहीं जुड़ा। मैं आज स्वतंत्र सदस्य हूँ। बीजेपी ने मुझे मंत्री बनाया क्योंकि मैंने उनके लिए कानूनी लड़ाई लड़ी थी नहीं तो आज सब जेल में होते।

आपकी आज भी कभी-कभी आलोचना होती है। आप कहते हैं कि आप जेसिका लाल वाला मुकदमा लड़ेंगे?

क्यों नहीं लड़ूँगा। प्रेस वाले कौन होते हैं ये तय करने वाले कि कौन दोषी है कौन नहीं। अगर बेइंसाफी हो तो बेशक इंसाफ की पुकार प्रेस करे।

चाहे मैं इन सब बातों से सहमत करूँ या न करूँ लेकिन ये बात तो है कि आप में धारा के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत है?

धारा के साथ बहना चरित्र की कमजोरी है। एक मर्द की तरह धारा के खिलाफ खड़ा होना चाहिए।

क्या ये जो धारा के खिलाफ चलने की क्षमता है विपरीत सेक्स को आकर्षित करती है?

कुछ लोगों के लिए ये बात सही है। आपातकाल के खिलाफ मेरे संघर्ष की वजह से बहुत-सी महिलाएँ मेरी दोस्त और प्रशंसक बनी थीं।

आपने बताया कि आप सिर्फ पुरानी फिल्मों और गानों में रुचि लेते हैं। ये जो नए सुंदर और प्रतिभाशाली कलाकार हैं क्या आप इन सबसे महरूम रह गए?

आजकल तो अखबारों में कई-कई पन्ने भरे रहते हैं उनके चित्रों से।

तो क्या आप इनमें से किसी को नहीं जानते या मिले?

मैं उनको जानते हूँ जो राज्यसभा और लोकसभा में सदस्य हैं। ऐसा नहीं है कि मैं किसी से मिलता नहीं हूँ। सामाजिक रूप से कभी-कभी मिलता हूँ। मेरे पास अब इतना समय नहीं है कि मैं जाकर इनकी फिल्में देखूँ।

जो नए स्टार हैं जैसे शाहरुख खान और गोविंदा। इनकी फिल्में नहीं देखी?

अंतिम फिल्म जो मैंने देखी थी वो ऐश्वर्या राय की 'देवदास' थी। वो लड़की बहुत ही खूबसूरत है।

आप बहुत ही फिट दिख रहे हैं। सुबह उठकर सबसे पहले क्या करते हैं?

सुबह उठकर आधे घंटे व्यायाम करता हूँ। जिसमें 15 मिनट का योग शामिल है। आठ बजे मैं तैयार हो जाता हूँ। आठ से नौ बजे तक बैडमिंटन खेलता हूँ। बैडमिंटन के बिना मेरा दिन पूरा नहीं होता। मेरे घर में मैंने बैडमिंटन कोर्ट बनाया हुआ है।

मैं खुद से एक-तिहाई कम उम्र के लोगों के साथ बैडमिंटन खेलता हूँ। नौ-साढ़े नौ बजे तक कोर्ट जाने को तैयार हो जाता हूँ। संसद में तो कुछ काम होता नहीं है। मैं दो-तीन संसदीय समितियों का सदस्य हूँ तो इनका काम मुझे बहुत व्यस्त रखता है।

और शाम को थोड़ा बहुत पीने-पिलाने का कार्यक्रम हो जाता है?

सभी काम जरूरी है। आदमी को सब कुछ थोड़ा-थोड़ा करना चाहिए।

यानी जो भी करें संयम से?

हाँ, संयम एक बड़ा गुण है लेकिन हमेशा नहीं।

ऐसा कब नहीं करना चाहिए?

अगर किसी की बीवी अपने पति के प्रति वफादार नहीं है तो उसे कैसा लगेगा। अगर कोई न्यायाधीश कम ईमानदार है तो आपको वो कैसे अच्छा लग सकता है। मेरा मानना है कि प्यार और संवेदना में कोई संयम नहीं होना चाहिए। मैं धर्म का वि'र्थी हूँ। ये मेरी जिंदगी का एक और पहलू है।

मैंने अपने लिए एक धर्म बनाया है। एक लाइन में मेरा धर्म है- जितने इंसानों को खुश कर सको, खुश करो। खुशियाँ फैलाओ। इससे बड़ा कोई धर्म नहीं है। बाकी धर्म से कोई फायदा नहीं है। अगर देखा जाए तो हमें धर्म से नुकसान ही है। धर्म ने बहुत खून खराबा पैदा किया है और कुल मिलाकर ये बेकार है।

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