राहुल की राह के रोड़े ये पांच कुंवारे

बुधवार, 6 मार्च 2013 (16:09 IST)
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कुंवारे राहुल चाहे मानें या ना मानें, लेकिन वो प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं। यह अजब संयोग है कि उनके राह के रोड़े भी भारतीय राजनीति के पांच कद्दावर कुंवारे ही हैं। अगले आम चुनाव के बाद अगला प्रधानमंत्री राहुल गांधी के अलावा भारतीय राजनीति के इन पांच कद्दावर कुंवारों के बिना नहीं तय होगा।


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नरेन्द्र मोदी : गुजरात के 62 साल के मुख्यमंत्री अपने भाषणों में यह कह ही देते हैं कि उनका कोई परिवार नहीं है और गुजरात में उनके समर्थक इस बात को उनकी बड़ी राजनीतिक ताकत मानते हैं।

कांग्रेस के नेता हों या मीडिया। गाहे बगाहे एक ऐसी महिला की कहानी छापते रहते हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वह क्लिक करें नरेन्द्र मोदी की पत्नी हैं। मोदी इस तरह की बातों पर कई और विवादास्पद मुद्दों की तरह टिप्पणी करना पसंद नहीं करते।

लेकिन भारत में गैर शादीशुदा होना कहीं ना कहीं राजनीतिक लाभ देता ही है। अटल बिहारी वाजपेयी इसका सबसे बेहतर उदहारण है। तीसरी बार अकेले अपने दम पर सरकार लाने वाले नरेन्द्र मोदी इस समय भारतीय जनता पार्टी के भीतर वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं।

यूं तो अपनी पार्टी के भीतर प्रधानमंत्री पद की दावेदारी की जंग में वह औरों से आगे दिख रहे हैं, लेकिन दिल्ली के केन्द्रीय नेता गोलबंदी करके किसी को हाशिए पर कैसे डाल सकते हैं इसका उदहारण नितिन गडकरी और उमा भारती हैं ही।

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मायावती : चार बार उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकीं 57 साल की मायावती का कहा ही उनकी पार्टी में कानून बन जाता है। मायावती ने हाल ही में नागपुर में अपने समर्थकों से कहा था कि वो उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए मेहनत करें।

राजनीति से अनजान और उन्हें ना पसंद करने वाले लोग उनकी इस बात पर हंसे, लेकिन कोई राजनेता नहीं हंसा। क्योंकि ऐसा पूरी तरह संभव है।

मायावती और मुलायम सिंह यादव दोनों उत्तर प्रदेश से आते हैं और दोनों की कोशिश है कि राज्य से ज्यादा से ज्यादा सीटें ले कर आएं। उत्तरप्रदेश की जनता ने अगर राहुल, राजनाथ, मुलायम या मायावती में से किसी एक की झोली में 80 में से 50 सीटें डाल दीं तो वो लाल किले पर 26 जनवरी को अपनी सरकार ले कर चढ़ बैठे तो यह असंभव नहीं है।

नरेन्द्र मोदी की ही तरह मायावती भी कहती हैं कि उनका उत्तराधिकारी उनके परिवार का कोई सदस्य नहीं होगा। उन पर लगे तमाम भ्रष्टाचार के आरोपों बावजूद उनके समर्थक मानते हैं कि मायावती का अविवाहित होना उनकी ताकत है कमजोरी नहीं।

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ममता बनर्जी : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्षा ममता बनर्जी की बात उनकी पार्टी में अंतिम होती है। ममता बनर्जी को दशकों पहले पश्चिम बंगाल में वामपंथी सरकार के दौर में सचिवालय से धक्के मार कर निकाल दिया गया था उन्होंने कसम खाई कि वो सचिवालय में मुख्यमंत्री बनकर ही कदम रखेंगी। उन्होंने अपने आप से किया वादा निभाया।

पश्चिम बंगाल में 42 सीटें हैं और आज की तारीख में भी तृणमूल कांग्रेस के पास 26 सीटें हैं। ममता बनर्जी वो राजनीतिक खिलाड़ी हैं जिनका मजाक अब उनके धुर राजनीतिक विरोधियों ने भी उड़ाना बंद कर दिया है।

58 साल की ममता बनर्जी के बारे केवल दो ही बातें दावे के साथ कहीं जा सकती हैं। पहली यह कि उनके साथ उनके राज्य में बड़ा जनसमर्थन है और दूसरा वो कुछ ना कुछ अप्रत्याशित करेंगी।

ममता वामपंथियों को पसंद नहीं करतीं और वामपंथी भी ममता के बारे में ऐसा ही सोचते हैं, लेकिन अगर बात साफ छवि और धर्मनिरपेक्षता की हो तो ममता बनर्जी को नकारना बेहद मुश्किल होगा।

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नवीन पटनायक : बीजू जनता दल के मुखिया लंबे समय से ओडीशा के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। वो कुछ उन लोगों में से एक हैं जो मौका पड़ने पर कांग्रेस, भाजपा और वामपंथियों तीनों को स्वीकार्य हो सकते हैं। खासे अंग्रेजीदां नवीन जब उड़ीसा में अपने पिता की मृत्यु के बाद राजनीति में अचानक उतरे तो उन्हें उड़िया नहीं आती थी।

वो धर्मनिरपेक्ष होने का दावा कर सकते हैं क्योंकि उन्होंने 2007-08 में कंधमाल के दंगों के बाद भाजपा से संबंध तोड़ लिए थे। लेकिन उन्होंने कभी भी सार्वजनिक रूप से भाजपा को या नरेन्द्र मोदी को कोसा नहीं।

नरेन्द्र मोदी जब चौथी बार शपथ लेने जा रहे थे तो उन्होंने विशेष रूप से नवीन पटनायक को आमंत्रित किया, नवीन नहीं आए, लेकिन उन्होंने बधाई दी और कोई कारण बता कर अफ़सोस जता दिया। उनके पिता समाजवादी राजनीति की धुरी थे और वो अपनी खुले बाजार की नीतियों के कारण मध्यवर्ग और उद्योग सबकी पसंद हो सकते हैं। उनके ऊपर कोई भ्रष्टाचार का आरोप भी नहीं है।

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जे जयललिता : तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता की उम्र 65 साल है पर वो किसी भी किस्म से सामान्य राजनेता नहीं है। उनके चाहने वाले बाकायदा उनकी तस्वीरों और मूर्तियों की पूजा करते हैं। संघ परिवार और हिन्दू संगठन उन्हें वैचारिक रूप से दोस्त की तरह देखते हैं क्योंकि वो 'राम सेतु' जैसे मुद्दों पर हिचकिचाती नहीं और नरेन्द्र मोदी की दोस्त के तौर देखी जाती हैं।

वामपंथी उन्हें तीसरे मोर्चे की मजबूत कड़ी के रूप में देखते हैं। कांग्रेस किसी जमाने में उनके साथ मिलकर चुनाव लड़ चुकी है और वो भी बीच-बीच में कांग्रेस को समर्थन देने की बात करती हैं। उनकी बस एक ही शर्त होती है कि वो वहां खड़ी नहीं होंगी जहां द्रमुक होगा।

यूं तो भ्रष्टाचार के कई मुकदमे उनके पैर में पड़ी हुई बेडी हैं, लेकिन वो किंग नहीं तो किंग मेकर की भूमिका में कभी भी आ सकती हैं।

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