सोनागाछी से अमेरिका का सफर

- सलीम रिजवी (न्यूयॉर्क से)

कोलकाता के सोनागाछी इलाके में जन्मा एक यौनकर्मी का बेटा अब न्यूयॉर्क के एक मशहूर फिल्म स्कूल में फिल्मकार बनने की शिक्षा ले रहा है।

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अभिजीत हलदर 20 वर्ष के हैं और कि वे सोनागाछी की एक यौनकर्मी के पुत्र हैं। सोनागाछी की गलियों के बच्चों पर बनने वाली एक फिल्म 'बॉर्न इंटू ब्रॉथल्स' ने अभिजीत के जीवन को बदल डाला। इस फिल्म को वर्ष 2004 में बेहतरीन वृतचित्र की श्रेणी में ऑस्कर से सम्मानित किया गया था।

वर्ष 1999 में जाना ब्रिस्की और रॉस कॉफमैन के निर्देशन में इस फिल्म की शूटिंग सोनागाछी के इलाके में और वहाँ कार्यरत विभिन्न यौनकर्मियों के घरों में भी की गई थी। इसमें अहम किरदार इन यौनकर्मियों के छोटे-छोटे बच्चों का था। छह से 12 साल तक के इन बच्चों को इस फिल्म में कैमरों से फोटो खींचते दिखाया गया और उसके जरिए उनके जीवन पर प्रकाश डाला गया।

इस फिल्म के निर्देशकों ने एक दान संस्था 'किड्स विद कैमरा' शुरू की और इसके जरिए स्कूलों में प्रवेश दिलाया गया और शिक्षा का पूरा प्रबंध किया गया। अभिजीत हलदर भी इनमें से एक थे और उन्होंने भी 'फ्यूचर होप' नाम के स्कूल में शिक्षा लेते हुए फोटोग्राफी भी जारी रखी।

अभिजीत कहते हैं, 'फिल्म की शूटिंग के दौरान हमें तो कुछ अंदाजा ही नहीं था कि ये लोग क्या कर रहे हैं। हमें यह भी नहीं पता था कि डाक्यूमेंट्री होती क्या है। हम लोग तो बस बॉलीवुड की फिल्में के बारे में ही जानते थे।'

उन्हें मालूम ही नहीं था कि उन लोगों पर फिल्म भी बनाई गई है जो कई पुरस्कार जीत चुकी है।

फिल्म की कामयाबी के बाद इन बच्चों की फोटोग्राफी को इतना पसंद किया गया कि कोलकाता और न्यूयॉर्क जैसे शहरों में प्रदर्शनियाँ लगाई गईं और सूदबीज जैसे मशहूर नीलामी घर में इनकी नीलामी तक हुई।

ऑस्कर जीतने के बाद जब इन बच्चों को पहली बार फिल्म दिखाई गई और बताया गया कि यह उनके बारे में है, तो वे लोग हैरान रह गएन्यूयॉर्क में अपने आरामदेह फ्लैट में बैठे हुए अमेरिकी अंदाज में बेहतरीन अंग्रेजी बोलते हुए अभिजीत हलदर ने बीबीसी को अपनी कहानी सुनाई।

उन्होंने बताया, 'बॉर्न इंटू ब्रॉथल्स ने तो मेरी जिंदगी बदल कर रख दी है। ऑस्कर मिलने के बाद वर्ष 2005 में पहली बार मैंने यह फिल्म देखी और वह मेरे लिए सबसे यादगार दिन था। फिल्म देखने के बाद मुझे पहली बार एहसास हुआ कि मेरी भी कोई आवाज है और लोग मेरे जीवन के बारे में भी जानना चाहते हैं।'

अभिजीत कहते हैं, 'तब तक मैं अंग्रेजी समझने और बोलने लगा था और मैंने सोचा कि यह तो बहुत ही प्रेरित करने वाली कहानी है।'

उन्होंने बताया कि कि फिल्म से उस समय तक काफी धन एकत्र हो गया था और फिल्म की निर्देशिका जाना ने पूछा, 'क्या अमेरिका जाकर पढ़ाई करना चाहते हो?' इस पर अभिजीत ने फौरन हाँ कर दी।

अभिजीत ने खुद ही अमेरिकी स्कूलों में फॉर्म भर कर भेजे और प्रवेश के लिए स्वीकृति भी हासिल कर ली। फिर उसने जाना को बताया कि अब सिर्फ पैसा भरना है और वह अमेरिकी स्कूल में पढ़ने जाएगा।

कई जगह से मदद मिली : अभिजीत ने 2005 में दान संस्था 'किड्स विद कैमरा' की आर्थिक मदद से सोनागाछी से अमेरिका के लिए प्रस्थान किया और न्यू हैंपशियर के एक हाई स्कूल में पढ़ाई शुरू की।

फिल्म के सह-निर्देशक रॉस कॉफमैन अभिजीत की कामयाबी पर खुश हैं। वे कहते हैं, 'मुझे अभिजीत पर गर्व है। उसने सोनागाछी जैसी जगह में अपने हालात से लड़ते हुए भी बेहतरीन कामयाबी हासिल की है और वह अब किसी भी आम युवा लड़के की तरह ही है। वह मेरे बच्चे जैसा है और मैं उसका हमेशा ख्याल रखूँगा। अभिजीत भी दूसरों की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता है।'

लेकिन अभिजीत को अमेरिका आने के बाद भी मुश्किलों से जूझना पड़ा। कई महीनों तक उसे अपना शहर, वहाँ की भीड़भाड़, अपने घर का खाना, बांग्ला भाषा बोलना और सुनना, सभी बहुत याद आता रहा। यहाँ तक की उसे कुछ दिनों के लिए कोलकाता वापस भी जाना पड़ा।

लेकिन उन्होंने फिर हिम्मत की और अपनी पढ़ाई जारी रखने की कसम खाकर अमेरिका वापस आए।

अभिजीत कहते हैं, 'मुझे लगा कि मैं तो यह कर सकता हूँ। फिल्में बनाने का काम मजेदार भी है, मैं खुश था। और खासकर इसलिए भी क्योंकि मेरे शिक्षकों ने मेरा काम पसंद भी किया था। उससे मेरा आत्मविश्वास भी काफी बढ़ा था। बस मुश्किल फीस अदा करने की थी।'

लेकिन उनकी मुश्किल आसान हो गई जब खुद न्यूयॉर्क विश्विद्यालय के टिश स्कूल ऑफ द आर्टस ने उनको स्कालरशिप देने का फैसला किया। बाकी की रकम किड्स विद कैमरा ने मुहैय्या कराई।

नए तौर-तरीके : सोनागाछी की गलियों में बचपन गुजारने वाले अभिजीत ने धीरे-धीरे अमेरिकी जीवन के तौर-तरीके भी अपनाने शुरू कर दिए हैं।

उन्होंने कुछ दोस्त भी बनाए हैं। अब उनकी एक गर्ल-फ्रैंड भी हैं, अलीना। अभिजीत अपने खींची फोटो को एक किताब की शक्ल देना चाहते हैं और अब वह कई भाषाएँ भी सीख रहे हैं जैसे स्पेनिश और फ्रेंच।

अभिजीत यह सोचकर सिहर जाते हैं कि अगर बॉर्न इंटू ब्रॉथल्स के लिए उनको न चुना गया होता तो उनका क्या होता।

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लेकिन उस फिल्म के सभी बच्चों का जीवन नहीं सुधारा है। एक लड़की (जिसका नाम गुप्त रखा जा रहा है) कुछ अर्सा स्कूलों में शिक्षा पाने के बाद भी सोनागाछी में ही यौनकर्मी बनने पर विवश हो गई है। फिल्म के निर्देशक रॉस कॉफमैन कहते हैं कि उन्होंने उसे रोकने की पूरी कोशिश की लेकिन नाकाम रहे।

वे कहते हैं, 'हम तो बस समझा ही सकते हैं। ज्यादा कुछ तो नहीं कर सकते। मैंने कई बार उस लड़की को और उसके माता-पिता को इस सिलसिले में समझाने की कोशिश की, लेकिन फिर भी वह यौनकर्मी बन गई। यह बहुत ही दुखद है।'

बहरहाल किड्स विद कैमरा नामक संस्था अब भी उस इलाके के बच्चों को बेहतर भविष्य देने के लिए कोशिश कर रही है और अभिजीत की ही एक साथी लड़की कोची को अमेरिका पढ़ाई के लिए भी भेजा गया है।

अभिजीत का अब यह सपना है कि वह अपना कोर्स पूरा करके सोनागाछी में रहने वाले लोगों के बारे में एक फिल्म बनाएँ। खासकर वह एक ऐसी लड़की के बारे में फिल्म बनाना चाहते हैं जिसको दूसरे मौके मिलने के बावजूद यौनकर्मी बनने पर विवश होना पड़ा हो।

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