आंध्र प्रदेश की विधानसभा ने सोमवार को राजधानी के विकेंद्रीकरण और साल 2020 तक राज्य के सभी इलाकों के समग्र विकास के लिए क़ानून पारित कर दिया है। इस क़ानून के तहत आंध्र प्रदेश की तीन राजधानियां होंगी और इसके साथ ही ऐसा करने वाला ये देश का पहला राज्य बन गया है।
अब आंध्र प्रदेश कार्यपालिका यानी सरकार विशाखापत्तनम से काम करेगी और राज्य विधानसभा अमरावती में होगी और हाई कोर्ट कुर्नूल में होगा। विपक्षी तेलुगूदेशम पार्टी ने इस क़ानून में संशोधन के लिए जितने प्रस्ताव रखे थे, उन्हें खारिज कर दिया गया।
वाईएस जगनमोहन रेड्डी सरकार की तरफ़ से वित्त मंत्री बुग्गना राजेंद्रनाथ रेड्डी ने मंगलवार को ये क़ानून राज्य की विधान परिषद में पेश किया।
विधान परिषद के वजूद पर सवाल?
परिषद में भी तेलुगूदेशम इस क़ानून का विरोध कर रही है और उसने नियम 71 के तहत नोटिस जारी किया है। वाईएस जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के लिए असली चुनौती विधान परिषद में ही है जहां उसके केवल नौ विधान पार्षद हैं। आंध्र प्रदेश विधान परिषद में तेलुगूदेशम के पास 34 सदस्य हैं।
शायद यही वजह है कि वाईएसआर कांग्रेस पार्टी राज्य में विधान परिषद का अस्तित्व ख़त्म कर देना चाहती है ताकि ये क़ानून पारित कराया जा सके।
इसका क्या मतलब है?
व्यावहारिक अर्थों में कहें तो जगनमोहन सरकार ने अपनी राजधानी अमरावती से राज्य के उत्तर पूर्व में तटीय शहर विशाखापत्तनम शिफ़्ट कर दी है। प्रशासन की पूरी मशीनरी, राज्यपाल का दफ़्तर अब वहीं से काम कर रहा है।
आंध्र प्रदेश के मध्य में स्थित अमरावती का इस्तेमाल अब केवल राज्य विधानसभा के सत्रों के लिए सिमट कर रह गया है। जबकि रायलसीमा का शहर और कभी आंध्र प्रदेश की राजधानी रहे कुर्नूल में अब राज्य हाई कोर्ट होगा और उसकी पीठ राज्य के दूसरे हिस्सों में स्थापित की जाएगी।
विधानसभा का सत्र शुरू होने से पहले मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी की अध्यक्षता में राज्य कैबिनेट ने एक प्रस्ताव पारित कर आंध्र प्रदेश राजधानी विकास प्राधिकरण को ख़त्म कर दिया। इस प्राधिकरण का गठन राजधानी अमरावती के विकास के लिए किया गया था।
राजधानी के विकेंद्रीकरण का प्रस्ताव देने वाली हाई पावर कमेटी की रिपोर्ट पर भी कैबिनेट ने इसके साथ ही मुहर लगा दी। अमरावती के किसानों के लिए कैबिनेट ने मुआवजे की अवधि बढ़ाकर 10 से 15 साल कर दी है। इन किसानों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के वर्ल्ड क्लास कैपिटल बनाने की पेशकश पर अपनी ज़मीन दी थी।
इस पर विवाद क्यों है?
दो जून, 2014 को तेलंगाना राज्य बनने के समय आंध्र प्रदेश पुनर्गठन क़ानून में ये प्रावधान किया गया था कि हैदराबाद अगले दस साल तक आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों ही राज्यों की संयुक्त राजधानी रहेगी।
आंध्र प्रदेश की नई राजधानी के लिए जगह खोजने के लिए केंद्र सरकार ने तब शिवराम कृष्णन कमेटी का गठन भी किया था। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में आंध्र प्रदेश के लिए एक से ज़्यादा राजधानी का मॉडल अपनाने की सिफारिश की थी।
कमेटी ने सलाह दी थी कि विजयवाड़ा और गुंटूर के बीच का इलाका बेहद उपजाऊ और बहुफसली होने की वजह से राजधानी बनाने लायक नहीं है। कमेटी ने नई राजधानी के लिए कुछ जगहों के सुझाव भी दिए थे।
लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कमेटी की सिफारिशों को तवज्जो नहीं दी और नई राजधानी के लिए अमरावती को चुना। 22 अक्टूबर, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमरावती में नई राजधानी के निर्माण के लिए बुनियाद रखी।
तस्वीर का दूसरा पहलू ये भी है कि शिवराम कृष्णन कमेटी की रिपोर्ट रखे जाने से काफी पहले से चंद्रबाबू नायडू की सरकार ने राजधानी के लिए अमरावती की तरफ़ कदम बढ़ाना शुरू कर दिया था।
बाद में सरकार ने अस्थाई विधानसभा, सचिवालय और दूसरी इमारतों के निर्माण कार्य के साथ-साथ कई नई सरकारी परियोजनाओं पर काम शुरू कर दिया गया। चंद्रबाबू नायडू सरकार के मंत्रियों ने राजधानियों का मॉडल समझने के लिए कई राज्यों और देशों का दौरा किया। इसी सिलसिले में नई राजधानी के निर्माण के लिए सिंगापुर की कंपनियों के साथ कई समझौता ज्ञापनों पर दस्तखत भी किए गए।
चंद्रबाबू सरकार ने अपनी तरह के भव्य और विशाल राजधानी के निर्माण के लिए कई ब्लूप्रिंट रखे जिसमें भविष्य की अमरावती की झलक मिलती थी।
लेकिन साल 2019 में हालात तेजी से बदले। तेलुगूदेशम पार्टी ने बहुमत गंवा दिया और वाईएस जगनमोहन रेड्डी के नेतृत्व में नई सरकार बनी। नई सरकार ने पहले ही दिन से अमरावती के विकास की सभी गतिविधियों पर रोक लगा दी। ये इशारा काफी था कि अमरावती के हाथ से नई राजधानी का ओहदा निकलने वाला है।
जगनमोहन सरकार ने बाद में राजधानी के मुद्दे पर रिपोर्ट देने के लिए जीएन राव समिति का गठन किया। इससे पहले कि जीएन राव कमेटी अपनी रिपोर्ट देती, मुख्यमंत्री जगनमोहन ने विधानसभा में ये संकेत दिए कि उनकी सरकार तीन राजधानियों के मॉडल पर विचार कर रही है।
बाद में जीएन राव समिति ने भी इसी तर्ज पर अपनी रिपोर्ट देकर सरकार के प्रस्ताव के लिए रास्ता साफ कर दिया।
सोमवार को विधानसभा में क्या हुआ?
वित्तमंत्री बुग्गना राजेंद्रनाथ रेड्डी ने राजधानी के विकेंद्रीकरण का क़ानून विधानसभा में रखा और सदन ने इसे पारित भी कर दिया।
विधानसभा में 12 घंटे तक चली जोरदार बहस के दौरान मुख्यमंत्री जगनमोहन ने कहा कि राजधानी के कामकाज का बंटवारा करके और विकेंद्रीकरण पर ध्यान देकर उनकी सरकार पिछली सरकारों की 'ऐतिहासिक गलतियों' को ठीक कर रही है।
उन्होंने ये भी कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री ने आंध्र प्रदेश के लोगों के सामने एक काल्पनिक राजधानी की तस्वीर रखी थी जिसका निर्माण कभी भी मुमकिन नहीं था। जगनमोहन की दलील थी कि राजधानी के विकेंद्रीकरण का मॉडल राज्य के सभी इलाकों के लोगों की बेहतरी के लिए है।
उन्होंने कहा कि एक ही जगह के विकास पर हज़ारों करोड़ रुपये खर्च करने के बजाय राजधानियों के विकास के लिए पहले से उपलब्ध बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल बेहतर है।
विपक्ष के नेता चंद्रबाबू नायडू ने विधानसभा में इस बहस पर कहा, "मुख्यमंत्रियों के बदलने पर हम हर बार राजधानी कैसे बदल सकते हैं। विकास का विकेंद्रीकरण होना चाहिए न कि राजधानियों का। विकेंद्रीकरण का रास्ता विकास की तरफ़ नहीं जाता है।"
उन्होंने ये भी कहा कि मौजूदा सरकार ने ये फ़ैसला पिछली सरकार से बदला लेने के लिए किया है।
विधानसभा के बाहर क्या हुआ?
दूसरी तरफ़ अमरावती के विकास के लिए ज़मीन देने वाले किसान राजधानी पर सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सचिवालय के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। अमरावती इलाके के सैंकड़ों किसान और महिलाओं ने निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया और विधानसभा परिसर तक पहुंचने के लिए सुरक्षा घेरे को तोड़ा।
भीड़ पर काबू पाने के लिए पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा। पुलिस ने जन सेना पार्टी के नेता पवन कल्याण को भी अमरावती जाने से रोका। वे वहां प्रदर्शनकारियों से मिलने जाना चाहते थे। विधानसभा और कैबिनेट की बैठक के मद्देनज़र सरकार ने राजधानी क्षेत्र और विजयवाड़ा के दूसरे इलाकों में बड़ी तादाद में पुलिस की तैनाती की है।
गांववालों ने सरकार के विरोध में काले झंडे लेकर प्रदर्शन किया जबकि कुछ प्रदर्शनकारियों ने तो गृहमंत्री सुचरित्र के घर में दाखिल होने की भी कोशिश की। अमरावती के इलाके में भी पुलिस की बड़े पैमाने पर तैनाती की गई है।
क्या दूसरे राज्य भी इस मॉडल पर गौर करेंगे?
अभी तक किसी राज्य में ऐसा नहीं हुआ है कि राज्य की प्रशासनिक मशीनरी एक शहर में हो और विधानसभा दूसरे शहर में बैठती हो। सामान्यतः ये दोनों एक शहर में होते हैं, और उस शहर को राज्य की राजधानी का दर्जा हासिल होता है।
हालांकि महाराष्ट्र और कर्नाटक में विधानसभा के सत्र दो शहरों में होते हैं। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में साल में एक बार सर्दियों में विधानसभा नागपुर में बैठती है। ठीक इसी तरह, हिमाचल में शिमला और धर्मशाला में विधानसभा बैठती है। धर्मशाला को राज्य की शीतकालीन राजधानी भी माना जाता है।
कर्नाटक भी बेंगुलुरु के अलावा बेलगांव में विधानसभा बैठती है। उत्तराखंड में हाई कोर्ट नैनीताल में है। इसी तरह से छत्तीसगढ़, केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में हाई कोर्ट राजधानी के बाहर दूसरे शहरों में स्थित है।