अलाउद्दीन ख़िलजी को लैंड रेवेन्यू यानी भूमि राजस्व में सुधार के लिए जाना जाता है लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि वो एक क्रूर शासक थे और उनकी टैक्स की नीतियों के कारण उस समय मध्यवर्ग की कमर टूट गई थी।
दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफ़ेसर रहीं और अभी इंडियन हिस्टोरिकल कांउसिल की सदस्य मीनाक्षी जैन कहती हैं, "अलाउद्दीन ख़िलजी बड़े सख़्त सुल्तान थे। इतिहास में हम उन्हें लैंड रेवेन्यू पॉलिसी के लिए जानते हैं। वो पहले शासक थे जिन्होंने भूमि कर को उत्पाद का 50 फ़ीसदी कर दिया था।"
लैंड रेवेन्यू पॉलिसी
प्रो मीनाक्षी कहती हैं, "ख़िलजी ने इसके अलावा कराई और चराई टैक्स भी लगाया था। उस समय के इतिहासकार जियाउद्दीन बर्नी ने लिखा है कि अलाउद्दीन ख़िलजी लैंड रेवेन्यू पॉलिसी के कारण जो ग्रामीण इलाक़ों का मध्य वर्ग था वो इतना ग़रीब हो गया कि उनकी महिलाओं को लोगों के घरों में जाकर काम करना पड़ा।"
अलाउद्दीन ख़िलजी दिल्ली सल्तनत पर अपने चाचा और ससुर जलालुद्दीन ख़िलजी का सिरकलम कर क़ाबिज़ हुए थे। क्या इस आधार पर ख़िलजी को क्रूर शासक कहा जाना चाहिए? प्रो. मीनाक्षी कहती हैं कि 'यह कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन इसका आकलन ख़िलजी के शासन के आधार पर कर सकते हैं।'
दक्षिण के मंदिरों पर हमला
उनके मुताबिक, "अलाउद्दीन ख़िलजी पहले सुल्तान थे जिन्होंने दक्षिण भारत पर हमला किया। दक्षिण भारत में उन्होंने मंदिरों पर हमला किया और ख़ूब लूटपाट की। उन्होंने रंगनाथ मंदिर पर हमला किया था। अलाउद्दीन ख़िलजी ने अपने जनरल मलिक काफ़ूर को दक्षिण भारत की ओर हमले के लिए कहा था। उनका उद्देश्य दक्षिण में साम्राज्य विस्तार नहीं था। उन्होंने कई मंदिरों में लूटपाट की थी। ख़िलजी का दक्षिण भारत पर आक्रमण लूट-पाट के लिए था।"
प्रो. मीनाक्षी का कहना है कि विजयनगर के राजकुमार की पत्नी गंगा देवी ने 'मदुरय विजय' संस्कृत में एक काव्य लिखा है। उनके अनुसार, ''ख़िलजी के हमले के बाद दक्षिण के मंदिरों की बहुत बुरी स्थिति हो गई थी और उनके पति राजकुमार कांपन ने मंदिरों में दोबारा पूजा शुरू कराई थी।'
बिचौलियों को ख़त्म किया
हालांकि सल्तनत काल के जाने-माने इतिहासकार हरबंश मुखिया, प्रोफ़ेसर मीनाक्षी जैन से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि ख़िलजी ने अपने शासन में जनहित के कई काम किए थे। मुखिया का कहना है कि क़ीमतों पर नियंत्रण के लिए ख़िलजी ने शानदार काम किया था।
उन्होंने कहा, "क़ीमतों पर नियंत्रण के लिए ख़िलजी बनियों के दुकान में गुप्तचरों को भेज देते थे कि कहीं ज़्यादा दाम तो नहीं लिया जा रहा है। जहां तक टैक्स बढ़ाने की बात है तो ख़िलजी ने बिचौलियों को ख़त्म कर दिया था। ज़ाहिर है उन्होंने बिचौलियों को ख़त्म करने के लिए ताक़त का भी सहारा लिया।"
क्या सल्तनत काल में कोई मध्य वर्ग जैसी बात थी? हरबंस मुखिया कहते हैं कि 'यह बिल्कुल बकवास बात है।' उनका कहना है कि 'उस वक़्त कोई मध्य वर्ग नहीं था बल्कि बिचौलियों के ख़त्म होने से लोगों को राहत ही मिली थी।'
तब तो सम्राट अशोक भी क्रूर थे!
मुखिया कहते हैं कि 'अपने ससुर की हत्या कर दिल्ली सल्तनत पर आने की वजह से अलाउद्दीन को क्रूर कहा जाना चाहिए तो सम्राट अशोक ने तो 99 भाइयों की हत्या की थी।' मुखिया पूछते हैं कि सत्ता के लिए हत्या क्या लोकतांत्रिक भारत में नहीं हुई है?
उनके अनुसार, "अलाउद्दीन ख़िलजी को लेकर बख़्तियार ख़िलजी की भी बात की जा रही है। बख़्तियार ने बिहार में बुद्ध की मूर्तियां और नालंदा विश्वविद्यालय में तोड़फोड़ की थी। हालांकि बख़्तियार ख़िलजी का दिल्ली सल्तनत से कोई संबंध नहीं है। बख़्तियार का वक़्त अलाउद्दीन ख़िलजी से 200 साल पहले का है।"