ट्रेड वॉर: अमेरिका के दिल में भारत के लिए प्यार या ज़हर?

शुक्रवार, 29 जून 2018 (11:03 IST)
- सुरंजना तिवारी
 
भारत की धमकियों, शिकायतों और अमेरिकी वस्तुओं पर करों में बढ़ोतरी के फ़ैसले के बाद भी डोनल्ड ट्रंप टस से मस नहीं हो रहे हैं। वह अपने उस फ़ैसले पर अडिग हैं जिसमें उन्होंने अमेरिका में आयात की जाने वाली वस्तुओं के करों में बढ़ोतरी की थी।
 
 
सोमवार को व्हाइट हाउस में उन्होंने संवाददाताओं से कहा, "हम बैंक हैं जिससे हर कोई चोरी करना और लूटना चाहता है।" ख़ुद के छेड़े ट्रेड वॉर में उन्होंने चीन, यूरोपीय संघ और दक्षिण अमेरिकी देशों को निशाने पर लिया है, पर भारत पर उनकी कार्रवाई ने कइयों को उलझन में डाल दिया है। भारत और अमेरिका के बीच अच्छे रिश्ते रहे हैं, लेकिन आर्थिक मोर्चे पर अब राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप शायद भारत को कोई विशेष तरज़ीह नहीं देना चाहते हैं।
 
 
ट्रेड वॉर से टाटा पर उसका असर
सोमवार को उन्होंने भारतीय उत्पादों पर करों में बढ़ोतरी के फ़ैसले को सही ठहराया। उन्होंने कहा कि भारत ने अमेरिकी वस्तुओं और उत्पादों पर 100 फ़ीसदी तक कर लगा रखा है। उनका यह बयान तब आया है जब अमेरिका के प्रतिनिधियों का समूह भारत के दो दिनों के दौरे पर था। व्यापारिक रिश्ते में उपजी उलझन को कम करने पर ये समूह भारतीय प्रतिनिधियों से मुलाक़ात करने भारत आया था।
 
 
डोनल्ड ट्रंप ने भारत से आयात किए जाने वाले स्टील और एल्युमीनियम पर करों में बढ़ोतरी कर दी थी, जिसकी जवाबी कार्रवाई में भारत ने बादाम, अखरोट जैसे अमेरिकी उत्पादों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी थी। दूसरे देशों की तुलना में अमेरिका में भारत के स्टील और एल्युमीनियम की खपत कम है। लेकिन टाटा स्टील जैसी कंपनियां, जो यूरोपीय संघ में अपना व्यापार करती हैं, वो काफ़ी हद तक इससे प्रभावित होंगी।
 
 
टाटा की गाड़ियों का व्यापार भी ट्रेड वॉर से अछूता नहीं है। ट्रंप ने यूरोपीय संघ से आयात होने वाली असेंबल्ड कारों पर 20 प्रतिशत टैरिफ़ लगाने की धमकी दी थी जिसके बाद एक दिन में ही इसके शेयर 3.9 प्रतिशत गिर गए।
 
 
टाटा अपनी जगुआर लैंड रोवर कारों का निर्माण ब्रिटेन में और बिक्री अमेरिका में करता है। ऐसे में ट्रंप की धमकी के बाद कारों के निर्यात पर असर होगा। जगुआर लैंड रोवर ब्रिटेन की सबसे बड़ी ऑटो निर्माता कंपनी है, जो टाटा मोटर्स का सबसे बड़ा कारोबार है। इसकी कुल कमाई में कंपनी का योगदान 77 प्रतिशत है।
 
 
अमेरिका की आपत्ति
भारत और अमेरिका के बीच सिर्फ़ टैरिफ़ दर में बढ़ोतरी एक मात्र मुद्दा नहीं है। मार्च में अमेरिका ने भारतीय निर्यातकों को दी जा रही कुछ छूट का भी मुद्दा उठाया था। वॉशिंगटन ने इसके ख़िलाफ़ विश्व व्यापार संगठन में आपत्ति दर्ज की थी और कहा था कि भारत के सस्ते सामान अमेरिकी कंपनियों को नुक़सान पहुंचा रहे हैं।
 
 
डोनल्ड ट्रंप ने एच1बी वीज़ा के नियमों में भी बदलाव किया है। ऐसे में भारत को ट्रेड वॉर के असर से अछूता नहीं देखा जा सकता है। भारत के लिए अमेरिका बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिनके बीच 2017 में 126 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था। अगले साल भारत में चुनाव होने हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिका के साथ अपने रिश्ते को मज़बूत बनाए रखना होगा।
 
 
निकी हेली का भारत दौरा
जीडीपी के आंकड़े बताते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है। पिछली तिमाही में इसने चीन को भी टक्कर दी है। उलझन यह पैदा कर रहा है कि ट्रंप और मोदी ने चरमपंथ को ख़त्म करने के लक्ष्यों पर एक साथ काम करने की बात कही थी।
 
 
पिछले महीने अमेरिकी सेना ने प्रशांत कमान का नाम बदलकर हिंद-प्रशांत कमान कर दिया था। अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक़, यह भारत और अमेरिका के बीच मज़बूत रिश्ते का प्रतीक था।
 
 
बुधवार को संयुक्त राष्ट्र की अमेरिकी दूत निकी हेली भारत आईं। उन्होंने कहा, "हम इस समय भारत और अमेरिका को साथ आने की कई वजह देखते हैं। मैं यहां भारत के साथ अपने संबंध को और मज़बूत करने आई हूं। हम चाहते हैं कि भारत से हमारा रिश्ता और मज़बूत हो।"
 
 
निकी हेली भारतीय मूल की अमेरिकी नागरिक हैं।
 
 
राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने इस सप्ताह इस रिश्ते का फ़ायदा भी उठाया। उन्होंने अपने सहयोगी देश ख़ासकर चीन और भारत को ईरान को मदद करने पर रोक लगाने को कहा। उन्होंने नवंबर तक वहां से तेल के आयात को बंद करने को कहा। चीन और भारत ईरान के बड़े आयातकों में से हैं। अमेरिका ने ईरान से अपना परमाणु समझौता रद्द कर दिया था।
 
 
भारतीय विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री का जुलाई में अमेरिकी दौरा तय था जिसे अब रद्द कर दिया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ट्रेड वॉर के बावजूद भारत और अमेरिका का रिश्ता पहले की तरह बरकरार रहेगा या फिर समीकरण बदलेंगे।
 

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