पाकिस्तान ने कहा है कि उसके विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी अगले महीने गोवा में होने वाली शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेंशन (एससीओ) की विदेश मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने भारत आएंगे।
एससीओ क्षेत्र के विकास और सुरक्षा को लेकर बनाया गया विभिन्न देशों का एक ब्लॉक है। इसका गठन जून 2001 में शंघाई में हुआ था। रूस, चीन, भारत और पाकिस्तान इसके सदस्य देशों में शामिल हैं।
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक ट्वीट में कहा कि चार और पांच मई को गोवा में विदेश मंत्री का बैठक में हिस्सा लेना एससीओ चार्टर और उसके तरीकों में पाकिस्तान की निरंतर प्रतिबद्धता और किस तरह पाकिस्तान इलाके को विदेश नीति को प्राथमिकता देता है, उसे दर्शाता है।
साल 2014 में उस वक्त के पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ की भारत यात्रा के बाद ये किसी पाकिस्तानी नेता की पहली भारत यात्रा होगी।
भारत और पाकिस्तान के संबंध लंबे समय से ख़राब रहे हैं। 2019 के पुलवामा हमले में 40 भारतीय जवानों की मौत के बाद भारत की तरफ़ से बालाकोट पर कथित चरमपंथी कैंपों पर हमला किया गया था।
अगस्त 2019 में मोदी सरकार के जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटा लिए जाने के कदम का पाकिस्तान ने तीखा विरोध किया था और भारत से व्यापार बंद कर दिया था।
याद रहे कि दिसंबर 2022 में न्यूयॉर्क में बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गुजरात को लेकर विवादित टिप्पणी की थी जिसका भारत ने कड़ा विरोध किया था।
बिलावल भुट्टो और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने लगातार प्रधानमंत्री मोदी के लिए कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया है, हालांकि हाल ही में एक इंटरव्यू में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ ने बातचीत से सभी विषयों को सुलझाने की बात की थी।
इस प्रस्तावित यात्रा पर एक प्रेसवार्ता में भारतीय विदेश मंत्रालय प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि "एससीओ प्रेसिडेंसी के तहत हमने सारे एससीओ मेंबर राज्यों को आने के लिए न्योता दिया था। 4-5 मई को गोवा में ये बैठक है, और हम अपेक्षा करते हैं कि ये बैठक बहुत कामयाब रहेगी पर किसी एक देश की भागीदारी पर ध्यान देना उचित नहीं होगा।"
बिलावल भुट्टो की प्रस्तावित भारत यात्रा ऐसे वक्त होगी जब पाकिस्तान आर्थिक संकट, आंतरिक राजनीतिक मुश्किलों से जूझ रहा है।
बिलावल के भारत दौरे के संकेत
बीबीसी से बातचीत में पाकिस्तानी सुरक्षा मामलों की जानकार आएशा सिद्दीका ने न्यूयॉर्क में दिए गए विवादित बयान के बाद बिलावल भुट्टो की इस प्रस्तावित यात्रा को एक "सामरिक" और "आगे की ओर लिया गया" कदम बताया, जबकि पाकिस्तान में सुरक्षा मामलों के जानकार और पूर्व राजदूत आसिफ़ दुर्रानी ने इसका स्वागत किया।
आएशा सिद्दीका कहती हैं, "बिलावल ये इशारा देना चाह रहे हैं कि आपने हमें बुरा भला कहा, हमने आपको कहा, लेकिन हम एसएसीओ के फोरम पर बात करना चाह रहे हैं, और अब ये आप पर है कि आप हमारे साथ कैसा व्यवहार करते हैं।"
"ये दुनिया को ये भी दिखाने की कोशिश है कि अगर मोदी सरकार ने इनके साथ ठीक से व्यवहार नहीं किया तो ये कहा जा सकेगा कि पाकिस्तान का विदेश मंत्री आया और।।। "
अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स में फॉरेन एडिटर और पूर्व पाकिस्तान संवाददाता रज़ाउल हसन लस्कर के मुताबिक़, "सबसे अहम बात यही है कि करीब 10 साल बाद पाकिस्तान का कोई नेता भारत आ रहा है। यही अपने आप में महत्वपूर्ण है। उनकी भारत में मौजूदगी भी अपने आप में बड़ा मौका है कि बात करने का एक दरवाज़ा खुल सकता है।"
पाकिस्तान की कूटनीति
आर्थिक संकट से परेशान पाकिस्तान मदद के लिए आईएमएफ़, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब आदि का दरवाज़ा खटखटा रहा है।
इसके अलावा ऐसे वक्त बिलावल भारत क्यों आ रहे हैं, जब कुछ वक्त पहले ही उन्होंने न्यूयॉर्क में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ विवादित बयान दिया था?
पाकिस्तान में पूर्व भारतीय हाई कमिश्नर शरत सबरवाल के मुताबिक भारत, पाकिस्तान के बीच तीखे बयान आम बात है।
वो कहते हैं, "जिस दिन दोनों पक्षों के बीच समान फायदों के लेकर कोई बात होगी तब ऐसी भाषा आड़े नहीं आएगी। पूर्व में बहुत कुछ कहा गया है, और उसके बावजूद वक्त आने पर बात आगे बढ़ी है।"
एससीओ की बैठक में पाकिस्तान के शामिल होने पर भारतीय मीडिया में लंबे समय से चर्चा रही है।
पाकिस्तान में पूर्व भारतीय हाईकमिश्नर शरत सबरवाल के मुताबिक़, गोवा में एससीओ विदेश मंत्रियों की होने वाली बैठक महत्वपूर्ण है और पाकिस्तान वहां अपनी उपस्थिति दर्ज करवाना चाहता है।
वो कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि पाकिस्तान उस जगह को छोड़ना चाहेगा और किसी तरह से ये संदेश देना चाहेगा कि वो इस संगठन को महत्व नहीं देता।"
क्या फ़ौज की भी सहमति है?
पूर्व पाकिस्तान संवाददाता रज़ाउल हसन लस्कर के मुताबिक़, "ये साफ़ तय हो गया था पाकिस्तान एससीओ की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की, रक्षा मंत्रियों की और विदेश मंत्रियों की बैठकों में शामिल होगा। हालांकि ये साफ़ नहीं था कि ये बैठकें ऑनलाइन होगी या ऑफ़लाइन। और ये भी तय नहीं हुआ था कि उसमें बिलावल भुट्टो ज़रदारी आएंगे कि हिना रब्बानी खार।"
लेकिन अब ज़रदारी की यात्रा की पुष्टि से ये भ्रम खत्म हो गया है, हालांकि पाकिस्तान में सुरक्षा मामलों की एक जानकार ने अपना नाम दिए जाने की शर्त पर कहा कि हो सकता कि बिलावल को ये सलाह दी जाए कि वो बैठक में शामिल होनी की अपनी योजना पर पुनर्विचार करें।
उनका दावा था कि विदेश मंत्रालय का ट्वीट बिलावल की चाहत को दर्शाता है कि वो एससीओ की बैठक में हिस्सा लेना चाहते हैं, वो अपने मंत्रालय को आज़ादी से चलाना चाहते हैं और भारत से बेहतर रिश्ते चाहते हैं, लेकिन अभी ये यात्रा होनी बाकी है।
आएशा सिद्दीका इस तर्क से सहमत नहीं और उनके मुताबिक़, बिलावल भुट्टो के भारत आने के फ़ैसला उनका अकेले का नहीं होगा।
वो कहती हैं, "आने का फ़ैसला सब बैठ कर हुआ होगा। सलाह ली गई होगी। जो फैसला लेने का तरीका है, उसी में ये से फ़ैसला निकला होगा। ये अकेले बिलावल भुट्टो का फैसला नहीं है। इसमें प्रधानमंत्री भी शामिल होंगे, फ़ौज भी इसमें शामिल होगी।"
पाकिस्तान में पूर्व भारतीय हाईकमिश्नर शरद सबरवाल भी कहते हैं कि सबसे बातचीत के बाद ही पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बिलावल भुट्टो की भारत यात्रा पर ट्वीट किया होगा।
यात्रा और द्विपक्षीय बातचीत के आसार?
पाकिस्तान में विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति ख़तरनाक़ है, अर्थव्यवस्था की हालत बेहद बुरी है, तेल, खाने के सामान आदि के दाम तेज़ी से बढ़े हैं और पाकिस्तानी रुपया डॉलर के मुकाबले लगातार कमज़ोर हुआ है। क्या पाकिस्तान की इस हालत को बिलावल भुट्टो की यात्रा से जोड़कर देखा जाए?
पाकिस्तान में सुरक्षा मामलों के जानकार और पूर्व राजदूत आसिफ़ दुर्रानी के मुताबिक पाकिस्तान भारत पर मदद के लिए निर्भर नहीं है।
वो कहते हैं, "भारत हमारे आर्थिक मसलों को हल करने में मदद तो नहीं दे सकता, न भारत का कोई झुकाव है इस तरफ़, न भारत ने ऐसी कोई पहल की है।"
इस यात्रा की घोषणा के बाद ये भी कयास लगने शुरू हो गए हैं कि क्या दोनो पक्षों के बीच द्विपक्षी वार्ता की गुंजाइश भी हो सकती है?
एक प्रेसवार्ता मे भारतीय विदेश मंत्रालय प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि द्विपक्षी बातचीत पर कुछ कहना अभी "प्रिमैच्योर" या जल्दबाज़ी होगी।
शरत सबरवाल के मुताबिक़, ऐसी बात अभी करना मात्र अटकलबाज़ी होगी, खासकर ऐसे वक्त पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति में इतना उबाल है और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान लगातार शाहबाज़ शरीफ़ की सरकार को सड़क और सड़क के बाहर चुनौती दे रहे हैं।
शरत सबरवाल कहते हैं, "पाकिस्तान में चुनाव के बाद ही हालात बेहतर होंगे। मुझे नहीं लगता कि वो अभी ऐसा कोई कदम (द्विपक्षीय बातचीत जैसा) उठाने की स्थिति में हैं।"
आएशा सिद्दीका के मुताबिक ये प्रस्तावित यात्रा "इशारा है कि पाकिस्तान की राजनीति में चाहे जो कुछ भी हो रहा हो, उसके बावजूद पाकिस्तानी सरकार अपने हित में बातचीत करने के लिए और ताल्लुकात को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है।
"बातचीत की बात सोचना बहुत जल्दबाज़ी होगी। पाकिस्तान ने गेंद भारत के पाले में डाल दी है कि क्या आप स्थिति को अपनी नाराज़गी से हटकर देख सकते हैं।"
आसिफ़ दुर्रानी के मुताबिक़, "हालांकि ये बाइलेटरल विज़िट नहीं है लेकिन बातचीत के मौके हो सकते हैं। भारत इतना बड़ा देश है, ये देखना होगा कि भारत का कितना बड़ा दिल है और वो आगे कैसे आता है।"
यात्रा से उम्मीद?
अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स में फॉरेन एडिटर और पूर्व पाकिस्तान संवाददाता रज़ाउल हसन लस्कर के मुताबिक़, "ये देखना होगा कि जब बिलावल भुट्टो भारत आते हैं तो क्या वो कोई नया नज़रिया लेकर आते हैं जिससे क्या कोई दरवाज़े खुल सकते हैं।
"पुराने वक्त की ओर देखेंगे कि बिलावल भुट्टो की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने भी भारत- पाकिस्तान रिश्तों को बेहतर करने के लिए काफ़ी काम किया है।"
आसिफ़ दुर्रानी याद दिलाते हैं कि "तमाम टेंशन के बावजूद फ़रवरी 2021 में लाइन ऑफ़ कंट्रोल में दोनो मुल्कों में डीजीएमओ के बीच एग्रीमेंट हो गया। वहां शांति है। वो बातचीत के ज़रिए ही हुआ। दोनो मुल्कों को बात करना चाहिए। उन्हें झगड़ों को निपटाने के लिए बात करनी चाहिए।"