भारतीय जनता पार्टी ने उज्जैन (दक्षिण) के विधायक मोहन यादव के नाम को मुख्यमंत्री के रूप में सामने कर सबको चौंका दिया है।
उनके नाम की घोषणा भोपाल में पार्टी के विधायक दल की बैठक के बाद की गयी। यादव के साथ उप मुख्यमंत्री के रूप में दो और नामों की घोषणा की गयी। इनमें से एक हैं दलित नेता जगदीश देवड़ा। देवड़ा भी मोहन यादव की ही तरह मालवा से आते हैं। वे मंदसौर से विधायक हैं।
मध्य प्रदेश की राजनीति पर नज़र रखने वाले राज्य के मालवा क्षेत्र को हिंदुत्व की पुरानी प्रयोगशाला बताते हैं। जानकार कहते हैं कि कुछ सालों में राजनीति का केंद्र ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की तरफ़ शिफ्ट होता जा रहा था। लेकिन इसे अब वापस मालवा में केंद्रित कर दिया गया है।
जानकार ये भी मानते हैं कि जातिगत समीकरण का संतुलन बनाने के लिए विंध्य के रीवा से विधायक राजेन्द्र शुक्ला को भी उप मुख्यमंत्री बनाया गया है।
मालवा क्षेत्र और ख़ास तौर पर इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण खारीवाल ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी का ये फैसला चौंकाने वाला ज़रूर है लेकिन जो लोग पार्टी पर नज़र रखते हैं उन्हें आश्चार्य नहीं हुआ है।
खारीवाल ने बीबीसी को बताया कि भाजपा का ये चौंकाने वाला फ़ैसला ज़रूर था मगर अप्रत्याशित नहीं था। गुजरात में पार्टी ने ऐसा किया और उत्तराखंड और हरियाणा में भी। मैं कहता हूँ कि भाजपा ने चौंकाने वाला सिलसिला जारी रखा है। वो कहते हैं कि ये फ़ैसला संघ की भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की परिकल्पना पर खरा उतरता है।
खारीवाल के अनुसार उज्जैन दक्षिण के विधायक मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाए जाने और मंदसौर के देवड़ा को उपमुख्यमंत्री बनाए जाने से इसके स्पष्ट संकेत मिलने लगे हैं।
वो आगे कहते हैं,''जनवरी में अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार हो जाएगा। उसकी प्राण प्रतिष्ठा भी हो जायेगी। उसके बाद राजनीति का दूसरा बड़ा केंद्र उज्जैन बनकर उभरेगा। ये इसी के संकेत हैं। शाजापुर में संघ की बैठक के दौरान भी इसके संकेत मिलने लगे थे।''
मध्य प्रदेश के दूसरे वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली कहते हैं कि इस चौंकाने वाले फ़ैसले से एक दूसरा संकेत भी मिल रहा है। वो कहते हैं,''पहले संघ सरकार चलवाया करता था। लेकिन अब संकेत स्पष्ट हैं कि संघ ख़ुद सरकार चलाएगा। इस फ़ैसले को नए युग की शुरुआत के रूप में भी देखा जाना चाहिए।''
वैसे वो मानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी में पीढ़ी परिवर्तन की प्रक्रिया चलती रहती थी। लेकिन शिवराज सिंह चौहान के 18 सालों के कार्यकाल से ये प्रक्रिया रुकी पड़ी थी।
उन्होंने वीरेंद्र सखलेचा का उदाहरण देते हुए कहा कि पीढ़ी परिवर्तन के क्रम में उनकी जगह कैलाश जोशी को बतौर मुख्यमंत्री लाया गया था। फिर उनकी जगह सुन्दरलाल पटवा ने ले ली थी।
संघ का प्रभाव
वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली का कहना है कि शिवराज सिंह चौहान और नरेंद्र सिंह तोमर राजनीति में और संगठन में पटवा के ही शागिर्द थे।
उन्होंने बीबीसी को बताया,''सिर्फ़ एक नाम था बाबूलाल गौर का जो इस प्रक्रिया के तहत मुख्यमंत्री नहीं बने थे। लेकिन उमा भारती को अदालती मामले से क्लीन चिट मिलने के बाद भी उन्हें दोबारा मध्य प्रदेश की सत्ता की बागडोर नहीं दी गयी थी और शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बनाए गए थे। उस समय वो भी मध्य प्रदेश की राजनीति में उतने सक्रिय नहीं थे।”
राजेंद्र शुक्ल भी संघ की पृष्ठभूमि से हैं। वो रीवा के विधायक ज़रूर रहे लेकिन शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में उन्हें दो महीनों पहले ही शामिल किया गया था। जानकार कहते हैं कि तीनों नामों की घोषणा में संघ की ही चली है।
वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा कहते हैं कि मोहन यादव भी वर्ष 2008 से लगातार विधायक के रूप में जीतते आ रहे हैं। वो शिवराज सिंह चौहान की सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री बनाए गए लेकिन उनकी इमेज हमेशा लो प्रोफाइल ही रही।
मोहन यादव 1984 में उज्जैन के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नगर मंत्री रहे और 1988 में वो परिषद मध्य प्रदेश के महामंत्री एवं राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बन गए।
1991-92 में परिषद के राष्ट्रीय सचिव के पद के बाद उन्हें संघ में महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी भी मिल गयी। उन्हें 1993 संघ का उज्जैन नगर का सह खण्ड कार्यवाह बनाया गया।
साल 2004 में वो भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य सदस्य बने और फिर प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य।
दो उप मुख्यमंत्री कौन हैं?
मोहन यादव के अलावा बीजेपी ने मध्य प्रदेश में दो उप मुख्यमंत्री बनाए जाने की भी घोषणा की है। ये हैं राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा। राजेंद्र शुक्ला लगातार पांचवीं बार रीवा से विधायक निर्वाचित हुए हैं।
पेशे से इंजिनीयर, शुक्ला ने 1998 में पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा था मगर वो कांग्रेस के उम्मीदवार पुष्पराज सिंह से 1394 वोटों से हार गए थे। मगर वर्ष 2003 उन्होंने पुष्पराज सिंह को हरा दिया था। पेशे से वकील और मंदसौर के क़द्दावर दलित नेता जगदीश देवड़ा शिवराज सिंह चौहान की सरकार में वित्त मंत्री थे।
ऐसा माना जाता है 66 साल के जगदीश देवड़ा ने मध्य प्रदेश में थावरचंद गहलोत के बाद ख़ुद की पहचान एक बड़े दलित नेता के रूप में बनायी। वो आठ बार के विधायक हैं। वो उमा भारती की सरकार में भी कैबिनेट मंत्री रहे हैं।
केंद्रीय मंत्री से मध्य प्रदेश के स्पीकर तक
पूर्व केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर मध्यप्रदेश की विधानसभा के नए अध्यक्ष होंगे। तो सवाल उठता है कि का ये उनके राजनीतिक सफ़र का अंत है?
मुरैना चंबल से राजनीति शुरू करने वाले तोमर को मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था। उन्हें सांसद रहते हुए मुरैना की दिमनी सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ाया गया। शुरू में वो पार्टी के इस फैसले से खुश नहीं थे। मगर फिर उन्होंने न सिर्फ़ चुनाव लड़ा बल्कि जीत भी हासिल की। एक सप्ताह पहले उन्होंने संसद की अपनी सदस्यता और मंत्रिपरिषद से इस्तीफा दे दिया था।
वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली कहते हैं कि विधानसभा के अध्यक्ष बन जाने के बाद अगले पांच सालों तक राजनीति में उनका दायरा सीमित ही रहेगा।
वो कहते हैं, “अब उनके बारे में पार्टी ने यही तय किया है ऐसा लगता है। वो वरिष्ठतम नेताओं में से हैं इस लिए अब वो एक सीमित दायरे में ही रहकर राजनीति करेंगे।"
श्रीमाली कहते हैं कि इसे एक तरह से तोमर के राजनीतिक सफ़र की समाप्ति के रूप में भी देखा जा सकता है।