ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए मेहनत तो हम सभी करते हैं। लेकिन इस मेहनत के साथ अगर चंद और बातों पर अमल किया जाए तो सोने पर सुहागा हो जाए। जानकारों के मुताबिक़ जिज्ञासा होना, हर तरह के मुक़ाबले और चुनौती के लिए तैयार रहना, कर्तव्यनिष्ठ होना, अपने साथियों के साथ सामंजस्य बनाना, ख़तरा उठाने का दम रखना, प्रोफ़ेशनल ज़िंदगी में कामयाबी के मूल मंत्र हैं। अगर इन पर अमल किया जाए तो कामयाबी आपके क़दम चूमेगी।
वहीं, एक रिसर्च ये इशारा भी करती है कि अगर इन हुनरों पर अमल करते हुए कहीं कोई ज़्यादती हो जाती है, तो उसका नुक़सान भी होता है। किसी भी फ़लसफ़े पर अमल करते हुए हमें सबसे पहले अपनी कमज़ोरियों से वाक़िफ़ होना ज़रूरी है। फिर उन कमज़ोरियों को अपनी ताक़त बनाने के तरीक़े पर काम करना चाहिए।
कंपनियां कैसे जांचती है काबिलियत
बहरहाल किसी भी इंसान की प्रोफ़ेश्नल लाइफ़ के पहलुओं को समझने के लिए अभी तक जो तरीक़े अपनाए गए हैं, उनमें कई बहुत पुराने हैं। मौजूदा दौर में जो तरीक़ा सबसे ज़्यादा अपनाया जा रहा है उसका नाम है 'मेयर्स ब्रिग्स टाइप इंडिकेटर' यानी (एमबीटीआई)। इसके तहत लोगों को उनके सोचने के तरीक़े की बुनियाद पर जांचा जाता है।
अमेरिका में 10 में से 9 कंपनियां अपने कर्मचारियों को इसी पैमाने पर जांच रही हैं। लेकिन मनोवैज्ञानिकों की थ्योरी इस तरीक़ो को पुराना मानती है। उनके मुताबिक़ किसी एक ख़ास पैमाने की बुनियाद पर किसी भी इंसान की क़ाबिलियत और बर्ताव को नहीं परखा जा सकता। एक स्टडी तो यहां तक कहती है कि किसी कर्मचारी की मैनेजरियल ख़ूबियां मापने के लिए (एमबीटीआई) अच्छा तरीक़ा नहीं है।
तो क्या हैं ये नुस्खें
मनोवैज्ञानिक और हाई पोटेंशियल नाम की किताब के लेखक ईयान मैक रे का कहना है कि ये तरीक़े किसी कर्मचारी से बात-चीत शुरू करने तक तो ठीक हैं। लेकिन इसकी बुनियाद पर ये तय नहीं किया जा सकता कि कौन शख़्स कितना अच्छा कर्मचारी साबित होगा। ईयान मैक रे और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के प्रोफ़ेसर एड्रियन फ़र्नहम ने वर्क प्लेस पर कामयाब होने के 6 तरीक़े सुझाए हैं।
मैक रे कहते हैं कि हरेक तरीक़े के फ़ायदे हैं। लेकिन अति करने पर नुक़सान भी हैं। कोई भी तरीक़ा अपनाने की कामयाबी इस बात पर निर्भर करती है कि आप किस तरह के पेशे में हैं, और किस क़िस्म का काम कर रहे हैं। इन दोनों रिसर्चरों ने अपने टेस्ट को हाई पोटेंशियल ट्रेट इनवेंट्री यानी (एचपीटीआई) का नाम दिया है।
कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार लोग अपना मक़सद हासिल करने के लिए ख़ुद को पूरी तरह समर्पित कर देते हैं। और अपने प्लान लागू कराने के लिए पूरी मेहनत करते हैं।
1.मिज़ाज में नर्मी
ऐसे लोगों की ख़ासियत होती है कि वो दिमाग़ भटकाने वाली सोच पर भी क़ाबू पा लेते हैं। पेशेवर ज़िंदगी में प्लानिंग के लिए स्वाभिमानी होना बहुत ज़रूरी है। लेकिन इस ख़ासियत के साथ मिज़ाज में नर्मी होना भी ज़रूरी है। यानी माहौल के मुताबिक़ अपने प्लान और सोच में बदलाव लाने की ख़ूबी भी होनी चाहिए।
2.सहकर्मियों के साथ तालमेल
प्रोफ़ेश्नल ज़िंदगी में तनाव भरपूर होता है। सभी जगह आपके मिज़ाज से मेल खाने वाले लोग नहीं मिल सकते। ऐसे में सबके साथ तालमेल बनाना आना चाहिए। अगर ये हुनर आप में नहीं है, तो मुश्किल पैदा हो सकती है। इसका सीधा असर आपके काम पर पड़ेगा। हालात अगर नेगेटिव हों तो भी उनमें अपने लिए संभावनाएं तलाशिए और उन संभावनों को अपनी ताक़त बनाइए।
3.दूसरों की सुनना
किसी भी स्तर पर जब फ़ैसले लिए जाते हैं तो ये ज़रूरी नहीं कि उनमें हरेक स्तर पर बात साफ़ रहे। वैसे तो ज़्यादातर लोग यही चाहते हैं कि हर चीज़ में पारदर्शिता और स्पष्टता रहे लेकिन जिन लोगों में कनफ्यूज़न झेलने का माद्दा ज़्यादा होता है, वो ज़हनी तौर पर ज़्यादा मज़बूत और खुले होते हैं।
वो हर क़िस्म का नज़रिया समझने का माद्दा रखते हैं। और फ़ैसले लेते समय सभी के नज़रिए और सोच पर ग़ौर करते हैं। ऐसे लोग ज़िद्दी नहीं होते। जो लोग इस सच्चाई को नहीं समझ पाते वो अपने फ़ैसलों में निरंकुश हो जाते हैं। जो कि अच्छी लीडरशिप के लिए घातक है। लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि आप ख़ुद को इस तरह पेश करने लगें कि कोई भी आप पर अपनी राय थोपने का इरादा करने लगे।
अस्पष्टता सहने का माद्दा एक स्तर तक ही होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो दूसरे लोग आप पर हावी होने लगेंगे। सलाह देने वालों को ये पता होना चाहिए कि उनकी बात पर किस हद तक ग़ौर किया जा सकता है।
4. नए आइडिया
लीडरशिप और मक़सद को कामयाबी की बुलंदी तक पहुंचाने के लिए नए विचारों का होना ज़रूरी है। और नए विचार सामने लाने के लिए जिज्ञासा और उत्सुकता होनी चाहिए। लेकिन जिज्ञासा में ठहराव भी ज़रूरी है। बहुत ज़्यादा नए-नए आइडिया पर काम करने से कई बार काम की क्वालिटी पर असर पड़ता है। लिहाज़ा पहले एक आइडिया पर काम कीजिए। उसमें कामयाबी या नाकामी के बाद ही दूसरे पर अमल करना चाहिए।
5. जोखिम उठाने की क्षमता
अंग्रेजी में कहावत है नो रिस्क नो गेन। यानि जबतक जोखिम उठाने का माद्दा नहीं रखेंगे कामयाब नहीं हो सकेंगे। बहुत बार ऐसी स्थिति आ जाती है जब तमाम विरोध के बावजूद फ़ैसला लेना पड़ता है। इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि उस फ़ैसले से फ़ायदा पहुंचेगा ही। लेकिन फिर भी जो लोग हौसला कर लेते हैं वही असल में कामयाब होते हैं।
हो सकता है कई बार नाकामी हाथ लगे लेकिन ऐसा हर बार होगा ये ज़रूरी नहीं। लेकिन यहां भी अति आत्मविश्वास का शिकार मत बनिए। ख़ुद पर सिर्फ़ यक़ीन कीजिए अतिविश्वास नहीं।
6. अति-प्रतिस्पर्धा ठीक नहीं
आज दुनिया में गला काट मुक़ाबले का दौर है। ऐसे में आपमें प्रतिस्पर्धा की भावना होना ज़रूरी है। लेकिन अति-प्रतिस्पर्धा का शिकार नहीं होना चाहिए। मैक रे का एचटीपीआई फ़ॉर्मूला कई मल्टीनेशनल कंपनियों में कर्मचारियों की उत्पादकता मापने के लिए वर्षों से इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन इस दिशा में रिसर्च का सिलसिला अभी जारी है। हालांकि कई रिसर्च, मैक रे और उनके साथी प्रोफ़ेसर एड्रियन फ़र्नहम के तरीक़ों में कई ख़ामियां पाती हैं।
लेकिन फिर भी बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की भर्ती के लिए इनके बताए पैमाने ज़हन में रखे जाते हैं। हालांकि इनके बताए सभी तरीक़ों पर हर कोई खरा नहीं उतर सकता फिर कुछ हद तक इन पर अमल करके तरक्क़ी सीढ़ी पर चढ़ा जा सकता है।