बजट 2018: बजट से पहले ज़रूर जान लें ये 5 फाइनेंशियल टर्म
गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018 (11:04 IST)
- मेधावी अरोरा
भारत के वित्त मंत्री अरुण जेटली गुरुवार को 2018-19 का बजट पेश करेंगे। आने वाले वित्तीय वर्ष के लिए केंद्र सरकार आय और व्यय का खाका पेश करेगी। 2019 में होने वाले आम चुनावों से पहले मौजूदा सरकार का ये आखिरी पूर्ण बजट होगा। इसलिए इसमें होने वाली घोषणाओं पर लोगों का ध्यान अधिक होगा। जीएसटी लगाए जाने के बाद सरकार का ये पहला बजट होगा।
बजट की घोषणा होने से पहले इससे जुड़े ये पांच टर्म आपको जान लेने चाहिए क्योंकि इससे जुड़े कुछ अहम फ़ैसले लिए जा सकते हैं।
राजकोषीय घाटा या फिस्कल डेफिसिट
सरकार की कुल सालाना आमदनी के मुकाबले जब खर्च अधिक होता है तो उसे राजकोषीय घाटा कहते हैं। इसमें कर्ज शामिल नहीं होता। साल 2017 में बजट की घोषणा करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि साल 2017-18 में राजकोषीय घाटा कुल जीडीपी का 3।2 फ़ीसदी होगा। ये इसके पिछले वित्तीय वर्ष के लक्ष्य 3.5 फ़ीसदी से कम था।
हालांकि विशेषज्ञों की चिंता है कि ये लक्ष्य पूरा नहीं होगा और आने वाले वित्तीय वर्ष में राजकोषीय घाटा कम होने के बजाय बढ़ सकता है। ऐसा अनुमान है कि बजट लोकलुभावन होगा जिसमें आने वाले चुनावों के लिहाज से मतदाताओं को लुभाने के लिए सरकार अधिक खर्च की घोषणा करेगी और टैक्स की सीमा में भी बदलाव कर सकती है।
पर्सनल इनकम टैक्स में छूट की सीमा
वर्तमान में ढाई लाख रुपये तक की सालाना कमाई करने वाले लोगों को टैक्स में पूरी तरह छूट मिलती है। हालांकि ऐसा अनुमान है कि सरकार इस सीमा को बढ़ा सकती है। संभावना जताई जा रही है कि सरकार इस सीमा को बढ़ाकर तीन लाख रुपये तक कर सकती है। यानी तीन लाख से कम सालाना कमाई पर टैक्स नहीं देना होगा। इससे लाखों लोगों को राहत मिलेगी।
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर
प्रत्यक्ष कर वो हैं जो देश के नागरिक सरकार को सीधे तौर पर देते हैं। ये टैक्स इनकम पर लगता है और किसी अन्य व्यक्ति को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। डायरेक्ट टैक्स में इनकम टैक्स, वेल्थ टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स आते हैं।
अप्रत्यक्ष कर वो हैं जो किसी भी व्यक्ति को ट्रांसफर किये जा सकते हैं जैसे किसी सर्विस प्रोवाइडर, प्रोडक्ट या सेवा पर लगने वाला टैक्स। अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण जीएसटी है जिसने वैट, सेल्स टैक्स, सर्विस टैक्स, लग्जरी टैक्स जैसे अलग-अलग टैक्स की जगह ले ली है।
वित्तीय वर्ष
भारत में वित्तीय वर्ष की शुरुआत एक अप्रैल से होती है और अगले साल के 31 मार्च तक चलता है। इस साल का बजट वित्तीय वर्ष 2019 के लिए होगा जो एक अप्रैल 2018 से 31 मार्च 2019 तक के लिए होगा। मौजूदा सरकार ने वित्तीय वर्ष के कैलेंडर बदलाव की बात कई बार कही है। सरकार वित्तीय वर्ष को जनवरी से दिसंबर तक करना चाहती है। हालांकि अब तक इसमें बदलाव नहीं हुआ।
शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म गेन
वर्तमान में कोई भी व्यक्ति अगर एक साल से कम समय के लिए शेयरों में पैसे लगाता है तो उसे अल्पकालिक (शॉर्ट-टर्म) पूंजीगत लाभ कहते हैं। इस पर 15 फ़ीसदी तक टैक्स लगता है।
शेयरों में जो पैसा एक साल से अधिक समय के लिए होता है उसे दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कहते हैं जिस पर टैक्स नहीं लगता है। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि सरकार दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर की समय सीमा में बदलाव कर सकती है। इसके तहत समय सीमा को बढ़ा कर एक से तीन साल किया जा सकता है।