कोरोनावायरस : क्या अनलॉक की कला में फ़ेल होता जा रहा है बिहार?

BBC Hindi

मंगलवार, 7 जुलाई 2020 (09:04 IST)
नीरज प्रियदर्शी (पटना से, बीबीसी हिन्दी के लिए)
 
'बिहार के सब भाजपा कार्यकर्ता एवं साथी लोग अभिनंदन के पात्र बानी जा। लोग कहत रहे कि ओहिजा ग़रीबी बा, कोरोना ज़्यादा फैली, लेकिन रउआ लोग सब केहू के ग़लत साबित कर देहनी।'
 
भोजपुरी में यह बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 4 जुलाई को बिहार बीजेपी के कार्यकर्ताओं से कही। वे कह रहे थे कि बिहार बीजेपी के लोगों ने कोरोना के दौरान इतना अच्छा काम किया कि यहां संक्रमण का प्रसार अधिक नहीं हुआ। लेकिन बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े कहते हैं कि प्रधानमंत्री के संबोधन के 2 दिनों (4 और 5 जुलाई) के अंदर बिहार में कोरोना संक्रमण के रिकॉर्ड 950 पॉज़िटिव मामले बढ़े हैं।
 
दरअसल, संक्रमण के रिकॉर्ड मामले मिलने की बात केवल 2 दिनों की नहीं है। पिछले कुछ हफ़्तों से लगातार यही हाल है। हर दिन बीते दिन से कोरोना संक्रमण के अधिक मामले मिल रहे हैं।
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कोरोना के बढ़ते मामले
 
अनलॉक होते बिहार में पॉज़िटिव मामलों की संख्या 3807 (31 मई को) से बढ़कर 11,860 पहुंच गई है। इस तरह इस दौरान संक्रमण के मामले लगभग 3 गुना बढ़े हैं।
 
संक्रमण का प्रसार ऐसा है कि अब यह केवल बाहर से आए लोगों या आम लोगों तक ही नहीं रहा। कई ज़िलों के डीएम और एसपी इसकी चपेट में आ चुके हैं, अस्पतालों में काम करने वाले दर्जनों डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ़ संक्रमित हैं, मंत्रियों-नेताओं तक भी संक्रमण पहुंच गया है, यहां तक कि विधानसभा के सभापति भी सपरिवार संक्रमित हो गए हैं।
 
बीबीसी के साथ एक इंटरव्यू में महाराष्ट्र में कोविड टास्क फ़ोर्स के प्रमुख डॉ. संजय ओक ने कहा था कि 'लॉकडाउन अगर विज्ञान है तो अनलॉक कला है जिसे विभिन्न चरणों में शुरू किया जाता है।' लेकिन बिहार की मौजूदा स्थिति अनलॉक की कला में विफलता की कहानी बयां कर रही है।
 
इसकी बानगी बिहार के राजनीतिक और सामाजिक गलियारे में भी देखी जा सकती है, जहां सत्ता पक्ष और विपक्ष का सारा फ़ोकस आने वाले चुनाव पर शिफ़्ट हो गया है। बिहार में संक्रमण के प्रसार को रोकने के उपायों से ज़्यादा चुनावी गतिविधियां हो रही हैं, सड़कों पर ट्रैफ़िक जाम लग रहा है, समारोह और आयोजनों में लोग जुट रहे हैं। लॉकडाउन में छूट की शर्तें सिर्फ़ काग़ज़ों और घोषणाओं तक सिमट गई लगती हैं।
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राजधानी पटना बना कोरोना हब
 
राजधानी पटना अपने 1,000 पॉज़िटिव मरीज़ों के साथ राज्य का कोरोना हब बना हुआ है। लेकिन बावजूद इसके, बाज़ारों में पहले की तरह भीड़ लगने लगी है और आलम यह है कि सड़कों पर दौड़ती बसों में लोग लद-लदकर सफ़र करते दिखते हैं। वैसे तो यहां की सरकार भी कहती है कि मास्क पहनें और काम पर चलिए। मगर सरकार से जुड़े लोग स्वयं कई मौक़ों पर मास्क से परहेज़ करते दिखे।
 
कुछ दिनों पहले नवनिर्वाचित विधान पार्षदों के शपथग्रहण समारोह की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी, उसमें सभी निर्वाचित पार्षदों के साथ-साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह, विधानसभा के स्पीकर विजय चौधरी, डिप्टी सीएम सुशील मोदी समेत कई अन्य लोग सोशल डिस्टेंसिंग का मज़ाक़ उड़ाते दिख रहे थे।
 
यह एक ग्रुप तस्वीर थी जिसमें शामिल 16 लोगों के बीच 2 ग़ज़ की दूरी का नामोनिशान नहीं था और आधे से अधिक लोगों के कान से लटका मास्क मुंह और नाक को ढकने की जगह उनके गले की शोभा बढ़ा रहा था। इसी समारोह के बाद विधान परिषद के सभापति सपरिवार संक्रमित होने की ख़बर आई। उस तस्वीर के बहाने सरकार की गंभीरता पर सवाल उठाते हुए वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि जब नेता जनता के सामने इस तरह से पेश आने लगें तो स्वाभाविक है कि जनता संक्रमण को गंभीरता से नहीं लेगी।'
 
संतोष कहते हैं कि जहां तक सरकार की गंभीरता का सवाल है तो वह अब चुनावी मोड में आ गई है। सरकार समय से चुनाव करवाने की तैयारी में है इसलिए इस विषम परिस्थिति में भी एक न्यू नॉर्मल स्थापित करना चाह रही है, जहां कोविड-19 को लेकर निगेटिव बातें कम हों, पॉज़िटिव बातें अधिक हों।'
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मुज़फ़्फ़रपुर के डॉक्टर ही बन रहे हैं मरीज़
 
पिछले कुछ दिनों के दरमियान यह भी देखने को मिला है कि बिहार के अलग-अलग शहरों में डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ़ में संक्रमण के मामले बढ़े हैं। केवल मुज़फ़्फ़रपुर शहर में 3 दर्जन से अधिक डॉक्टर संक्रमित हैं। डॉक्टरों का हब कहा जाने वाला वहां का जूरन छपरा इलाक़ा कोरोना हब बन गया है।
 
संक्रमितों में प्राइवेट और सरकारी दोनों अस्पतालों के डॉक्टर शामिल हैं। परिणाम ये हुआ है कि शहर के अधिकांश नर्सिंग होम और प्राइवेट अस्पताल बंद हो चुके हैं। मरीज़ दर-दर भटकने को मजबूर हैं। मुज़फ़्फ़रपुर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एसकेसीएचएम के 10 डॉक्टर संक्रमित पाए गए हैं।
 
वहां के मेडिकल सुपरिटेंडेंट सुनील कुमार शाही ने बीबीसी से कहा कि अस्पताल में भीड़ इतनी हो जा रही है कि संभालना मुश्किल हो रहा है। यही कारण है कि डॉक्टर भी ख़ुद को नहीं बचा पा रहे। लोग बीमार पड़ेंगे तो डॉक्टर को दिखाने तो आएंगे ही। इसमें तो कुछ बुरा नहीं है। लेकिन ये लोग न तो सोशल डिस्टेंसिंग फ़ॉलो कर रहे हैं और न ही मास्क लगा रहे हैं। हम डॉक्टर होने के नाते लोगों को सलाह भर दे सकते हैं। इसका कड़ाई से पालन कराना तो सरकार की ज़िम्मेदारी है, जहां हम बिलकुल फ़ेल हैं।'
 
रिपोर्ट लिखते हुए यह नई जानकारी मिली कि पटना के बड़े अस्पताल आईजीआईएमएस के डायरेक्टर डॉ. एन‌आर विश्वास भी कोरोना पॉज़िटिव पाए गए हैं। पहले उनका ड्राइवर पॉज़िटिव मिला था।
 
आम आदमी की जांच रिपोर्ट 3 दिनों में क्यों?
 
विधान परिषद के सभापति की कोरोना रिपोर्ट पॉज़िटिव आने से सूबे के सियासी जगत में हलचल मच गई। उनसे और शपथ ग्रहण समारोह से जुड़े सभी लोगों की जांच हुई। सीएम नीतीश कुमार, विधानसभा के स्पीकर विजय चौधरी और डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने भी शनिवार को अपनी जांच कराई। एक पुलिस अधिकारी को छोड़ बाक़ी सभी की रिपोर्ट निगेटिव आई है। बीबीसी से इसकी पुष्टि सीएम के पीआरओ विरेंद्र कुमार शुक्ला ने की।
 
सबसे ख़ास बात ये रही कि सीएम समेत दूसरे अन्य नेताओं और अधिकारियों की टेस्ट रिपोर्ट सैंपल देने के कुछ ही घंटों बाद उसी दिन आ गई। लेकिन सोशल मीडिया पर लोग अब यह सवाल करने लगे हैं कि क्या बिहार सरकार कोरोना जांच की प्रक्रिया में भेदभाव कर रही है? यह कहा जा रहा है कि आम आदमी की कोरोना रिपोर्ट आने में कम से कम 2 से 3 दिनों का वक़्त लग जा रहा है।
 
नीतीश कुमार के पीआरओ वीरेंद्र इस सवाल के जवाब में कहते हैं कि ऐसे आरोप लगाने वालों को समझना चाहिए कि सीएम के साथ एक प्रोटोकॉल भी है जिसका पालन करना होता है।' आम आदमी की जांच में देरी के सवाल पर विरेंद्र कुमार शुक्ल कहते हैं कि वे केवल मुख्यमंत्री से जुड़े मामलों के जवाब देने के लिए ज़िम्मेवार हैं।
 
प्रतिदिन टेस्ट की गति बढ़ क्यों नहीं रही?
 
कोरोनावायरस के सैंपल टेस्ट के मामले में बिहार शुरू से ही सबसे पीछे चल रहा राज्य रहा है। 5 जुलाई की शाम को 4 बजे तक राज्य में कोरोनावायरस के 2,57,859 सैंपल टेस्ट हुए हैं। 12 करोड़ से अधिक की आबादी वाले राज्य के लिए अभी तक इतने सैंपल टेस्ट बहुत कम कहे जा सकते हैं।
 
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले कई दिनों से कह रहे हैं कि जांच की गति बढ़ाई जाए। रोज़ाना 20 हज़ार सैंपल टेस्ट हों।' लेकिन सैंपल टेस्ट के रिकॉर्ड के मुताबिक़ पिछले क़रीब 1 हफ़्ते से रोज़ाना औसतन 8 हज़ार लोगों की जांच की गई है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय कहते हैं कि पिछले महीने से तुलना करें तो जांच की गति बहुत तेज़ी से बढ़ी है। लैब बढ़े हैं। आने वाले हफ़्ते तक हम रोज़ 20 हज़ार जांच करने में सक्षम हो जाएंगे।'
 
बढ़ते मामलों से लोगों में डर नहीं?
 
कोविड-19 के आने वाले ख़तरे के लिहाज़ से यह बात भले ही महत्वपूर्ण है कि बिहार में संक्रमण बहुत तेज़ी से फैल रहा है, मगर बिहार की सरकार, नेताओं और अधिकारियों का ज़ोर यह बताने पर ज़्यादा है कि यहां का रिकवरी रेट 73.90 फ़ीसद है, जो कि उनके मुताबिक़ बहुत बेहतर है।
 
नेताओं और अधिकारियों की सुनकर और मीडिया से जानकर अब यही बात यहां के आम लोग भी कहने लगे हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या ऐसा कह देने और मान लेने भर से आने वाला ख़तरा कम हो जाएगा?
 
डॉ. सुनील कुमार शाही कहते हैं कि यहां के लोग अभी ख़तरे को समझ ही नहीं पा रहे हैं। समझते तो इस तरह का व्यवहार नहीं करते, पर हमें पता है कि किसी भी नए एरिया से एक भी नया मामला मिलना बहुत चिंता की बात है और यहां तो रोज़ 400-500 मिल जा रहे हैं। अगर लोग अभी से भी नहीं चेते तो आने वाला समय बहुत ख़राब होने जा रहा है।'
 
डॉ. सुनील जिस ख़राब समय की बात कह रहे हैं, लगता है उसकी शुरुआत हो चुकी है, क्योंकि मधुबनी में बढ़ रहे मामलों के कारण वहां अगले 3 दिनों के लिए फिर से पूर्ण लॉकडाउन लगा दिया गया है। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक़ ख़बर है कि आने वाले दिनों में दरभंगा, मुज़फ़्फ़रपुर, भागलपुर और पटना में भी फिर से लॉकडाउन लग सकता है। (फोटो सौजन्य : ट्विटर)

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