वो देश जिसका नामोनिशां ही दुनिया से मिट गया

Webdunia
शनिवार, 5 मई 2018 (16:18 IST)
- अनजा म्यूटिक (बीबीसी ट्रैवल)
 
दुनिया के इतिहास में वक़्त के साथ बहुत से मुल्क बने और फ़ना हुए. सरहदों की लक़ीरें खींची गईं और मिटा दी गईं। भारतीय उपमहाद्वीप को ही लीजिए। सम्राट अशोक के ज़माने में भारत का रक़बा अफ़ग़ानिस्तान तक फैला था। मुग़ल बादशाह भी काबुल और कंधार से टैक्स वसूला करते थे। लेकिन बाद में अफ़ग़ानिस्तान एक अलग देश बन गया। भारत की सीमा मौजूदा पाकिस्तान से शुरू होने लगी।
 
70 साल पहले वो सरहद भी सिमट कर लाहौर-अमृतसर के बीच खिंच गई। भारत के दो टुकड़े हो कर दो मुल्क बन गए हिंदुस्तान और पाकिस्तान। इसके बाद फिर पाकिस्तान के भी दो टुकड़े हो गए। 1971 में दुनिया के नक़्शे पर बांग्लादेश के रूप में एक और मुल्क वजूद में आया। भारत की ही तरह दुनिया के कमोबेश हर हिस्से में हम ऐसा होते देखते आए हैं। यूरोप का इतिहास भी ऐसे ही सरहदें बनाने-मिटाने के क़िस्सों से भरा पड़ा है।
 
अभी हाल के दिनों तक यूरोप में एक देश हुआ करता था यूगोस्लाविया। अब वो वजूद में ही नहीं है। उसकी सरहदें मिट चुकी हैं। इस देश का इतिहास में तो ख़ूब ज़िक्र मिलता है, लेकिन दुनिया के नक़्शे पर आप उसे नहीं पाएंगे। बल्कि इसकी जगह बहुत से नए देश बन गए हैं। चलिए आज आप को इसी की सैर पर चलते हैं। इस देश का नाम है यूगोस्लाविया।
 
न्यूयॉर्क में रहने वाली ट्रैवेल राइटर अनजा म्यूटिक का जन्म यूगोस्लाविया में हुआ था। फिर वो वहां से पढ़ाई और रोज़गार की तलाश में दूसरे देश चली गईं। पिछले बीस सालों से अनजा ट्रैवेल राइटिंग कर रही हैं। क़रीब दो दशक बाद जब वो अपने वतन की सैर के लिए निकलीं, तो उनका देश मिट चुका है।
अनजा म्यूटिक का जन्म पूर्व यूगोस्लाविया के दूसरे बड़े शहर ज़गरेब में हुआ था। ज़गरेब अब क्रोएशिया की राजधानी है। अनजा ने लगभग उस पूरे इलाक़े का दौरा किया, जिसे कभी दुनिया यूगोस्लाविया के नाम से जानती थी। वो सभी जगह गईं लेकिन वो घर, गलियां, मोहल्ले उन्हें कहीं नहीं मिले, जहां उनका बचपन बीता था।
 
हालांकि, होश संभालने के बाद वो अपने परिवार के साथ न्यूयॉर्क चली गई थीं। लेकिन अनजा ने पहली बार दुनिया में आंकें यूगोस्लाविया की सरहद में ही खोली थीं। उनका शुरुआती बचपन यूगोस्लाविया में ही गुज़रा था।
 
अनजा म्यूटिक कहती हैं कि 1993 में उन्हें किसी ने देश छोड़कर जाने के लिए नहीं कहा था। बल्कि उनका परिवार ख़ुद ही ज़लावतन हुआ था। उस वक़्त युगोस्लाविया में जिस तरह के हालात पैदा हो गए थे, उससे उन्हें लग रहा था मानो किसी ने उनके पैरों तले ज़मीन खींच ली हो। अपना वजूद बचाए रखने के लिए उनके पास कुछ बाक़ी नहीं बचा है। लिहाज़ा वो अपना घर-बार छोड़ने के लिए मजबूर हो गईं।
 
क़रीब 15 साल बाद एक रोज़ अनजा को ख़याल आया कि क्यों ना एक बार फिर से जाकर अपने पुरखों की ज़मीन तलाशी जाए। उस जंग के नतीजों पर नज़र डाली जाए जिसने एक देश को एक-एक कर 6-7 टुकड़ों में बांट दिया। इस बंटवारे को सहने वालों पर इसका क्या असर रहा।
 
1990 में यूगोस्लाविया के टूटने के बाद उससे कई देश बने। इसमें क्रोएशिया, सर्बिया, मोंटेनेग्रो, मैसेडोनिया, बोस्निया-हर्ज़ेगोविना शामिल हैं। सबसे पहले साल 1991 में क्रोएशिया ने ख़ुद को स्वतंत्र घोषित किया था।
 
क्रोएशिया की आज़ादी की लड़ाई 1995 तक चली। इसके बाद बोस्निया में भयानक क़त्ल-ओ-ग़ारद मचा, जिस पर 1995 में डेटन समझौते के साथ लगाम लगी। 1999 में कोसोवो के बाग़ियों के समर्थन के नाम पर नैटो देशों ने जिस तरह से सर्बिया में बमबारी की, वो तो सभी जानते हैं।
अनजा म्यूटिक क़रीब एक हफ़्ते की यात्रा पर निकलीं थीं। जिन सूबों से मिलकर कभी यूगोस्लाविया बनता था, अब हर वो सूबा ख़ुदमुख़्तार देश बन चुका है। अनजा ने इन सभी देशों में एक-एक दिन गुज़ारा। वो अपने साथ वो गाइडबुक लेकर आई थीं, जो यूगोस्लाविया में गृह-युद्ध शुरू होने से पहले छपी थी। पूरे रास्ते वो बहुत से लोगों से मिलीं और उनसे कावा यानि कॉफ़ी के साथ गुफ़्तगू की।
 
यूगोस्लाविया में कॉफ़ी के साथ लोगों से बातें करना सामाजिक रिवाज था। अनजा अपने सफ़र के दौरान इसी याद को फिर से ताज़ा करना चाहती थीं। उन्हें उम्मीद थी कि लोग उन्हें यूगोस्लाविया के ख़ात्मे की दर्द भरी कहानियां सुनाएंगे। अपनी पुरानी यादों में खोकर पुराने क़िस्से बताएंगे। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
 
अपने पूरे सफ़र में अनजा क़रीब 50 लोगों से मिलीं। अपनी कहानी लिखने के लिए उन सभी के बयान रिकॉर्ड किए। इन 50 लोगों में पैरामिलिट्री के जवान, सियासतदां, शायर, कलाकार, दार्शनिक और एनजीओ वर्कर भी शामिल थे।
 
इन सभी की बातें सुनने के बाद अनजा को लगा कि यूगोस्लाविया भले ही दुनिया के नक़्शे से मिट गया हो, लेकिन यहां की संस्कृति आज भी लोगों में जिंदा है। यहां उनकी मुलाक़ात मैसेडोनिया के कवि टोडोर चलवोस्की की बेटी से हुई। उन्हों ने बड़ी फ़राग़दिली से अनजा का इस्तक़बाल किया। ऐसा लगा ही नहीं कि ये उनकी पहली मुलाक़ात है।
 
अनजा स्कोपजे के पुराने बाज़ारों में भी घूमीं। चमड़े से बना सामान यहां ख़ूब बिकता है। यहां आज भी तांबे, चमड़े और कपड़ों की दुकानें रिवायती अंदाज़ में सजी थीं। ओपानसी यहां ख़ूब बिकते हैं। दरअसल ओपानसी यहां के रिवायती जूते हैं, जो चमड़े से बने होते हैं। दक्षिण पूर्वी देशों में किसान इन्हें बड़े पैमाने पर पहनते हैं।
 
घूमते-घूमते अनजा एक परिवार से मिलीं। ये घर पूर्व युगोस्लाविया के ज़माने का ही बना था। घर में काफ़ी बड़ा खुला रक़बा था, जहां अंजीर के पेड़ लगे थे। सहन में दो महिलाएं अजवारा तैयार कर रही थीं। दरअसल अजवारा बाल्कन राज्यों में पतझड़ के मौसम में बनाया जाता है। ये पकवान भुनी हुई लाल मिर्च से तैयार किया जाता है। इसे बनाने में मेहनत और वक़्त दोनों दरकार होते हैं।
 
अनजा सहन में अंजीर के पेड़ के साए तले बैठीं और बीच-बीच में उठकर अजवारा के पतीले में कलछी चलाकर अपने बचपन के दिन याद करने लगीं। उसनीजे ने उनकी ख़ातिर में तुर्की कॉफ़ी बनाई और लकड़ी की ट्रे में कुछ स्लेटको भी लेकर आईं।
 
स्लेटको एक ख़ास तरह का मुरब्बा होता है जो रसभरी से बनता है और बहुत मीठा होता है। अनजा ने उनसे पूछा कि यूगोस्लाविया की कौन सी बातें उन्हें याद हैं, तो उनका जवाब था उस दौर में ज़िंदगी ज़्यादा बेहतर थी।
 
अपने पूरे सफ़र में अनजा ने बहुत से लोगों के तजुर्बे सुने। कुछ ने यूगोस्लाविया के पतन के लिए सियासी पॉलिसियों को ज़िम्मेदार ठहराया तो कुछ ने अपनी ही थ्योरी बयान की। कुछ ने अपनी ज़ाती ज़िंदगी का कोई भी पन्ना पलटने से इनकार कर दिया।
 
जबकि कुछ ने बचपन के दोस्तों को याद किया, जिनसे वो दोबारा कभी मिले ही नहीं। लेकिन सभी के तजुर्बे में एक चीज़ समान थी वो था गुस्सा, उदासी, नाउम्मीदी। सबसे बढ़कर ये कि सभी ने इस बंटवारे में कुछ ना कुछ खोया था।
 
अपना दौरा पूरा करने के बाद जब अनजा वापस न्यूयॉर्क पहुंची तो उनके पास बहुत सी कहानियों थीं, जिन्हें वो दूसरों तक पहुंचाना चाहती थीं। पूर्व युगोस्लाविया के इस दौरे ने उन्हें यहां के लोगों की ज़िंदगी में झांकने का एक और मौक़ा दिया।
 
आज अनजा मानती हैं कि घर बदलते रहते हैं। लेकिन, जिस जगह से हमारा ताल्लुक़ है वो हमारी यादों में हमेशा रहता है। ठीक उसी तरह जिस तरह अनजा के ज़हन में उनके बचपन और देश की यादें तो ज़िंदा हैं। लेकिन घर और देश आज कहीं नहीं है।

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