कश्मीर पर पीएम नरेन्द्र मोदी के फ़ैसले को मिले देशव्यापी समर्थन की वजह : नज़रिया
शुक्रवार, 16 अगस्त 2019 (17:08 IST)
अशोक मलिक (दिल्ली स्थित ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में फैलो)
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में कहा कि भारत प्रशासित कश्मीर की स्वायत्तता समाप्त करने के सरकार के निर्णय से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का समुचित विकास होगा।
देश में कश्मीर को लेकर लोगों के विचारों में आई सख्ती के चलते ऐसा माहौल बना कि सरकार के लिए यह फ़ैसला मुमकिन हो पाया। जुलाई, 2016 में उग्रवाद विरोधी कार्रवाई में बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्मीर घाटी उबल पड़ी। बुरहान वानी और उनकी मौत के बाद हुई हिंसा से कश्मीर में अशांति का एक नया दौर शुरू हुआ जिसमें आज़ादी के नारों की जगह जिहाद के नारे प्रमुख हो गए।
अब लड़ाई आज़ाद कश्मीर या पाकिस्तान के साथ उसके विलय के लिए नहीं थी, बल्कि ख़िलाफ़त की मांग ज़ोर पकड़ने लगी। कश्मीर के कई युवाओं पर इस्लामिक स्टेट और इसके जैसे अन्य संगठनों के नारे, वीडियो और तस्वीरों का प्रभाव बढ़ने लगा।
2016 की घटनाओं का एक और असर हुआ। इसके बाद वामपंथी समूहों के देशभर के विश्वविद्यालय परिसरों, मीडिया चर्चाओं और लोकमंचों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों में कश्मीरी अलगाववाद का मुद्दा उग्रता से उठाया जाने लगा।
कश्मीर मुसलमानों से जुड़ा विवाद नहीं
ऐतिहासिक रूप से कश्मीर की समस्या भारतीय मुसलमानों से जुड़ा विवाद था ही नहीं। कश्मीरी मुस्लिम अपने आपको सभी (अन्य) भारतीयों से अलग मानते थे, चाहे वे हिन्दू हों या मुसलमान। हाल के वर्षों में भारत के अन्य हिस्सों में पढ़ने और काम करने वाले कश्मीरी मुस्लिम युवाओं की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है।
कश्मीरी मुस्लिम युवा, छात्र राजनीति में हिस्सा ले रहे हैं और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जैसे प्रतिष्ठित राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों में छात्रसंघों में निर्वाचित भी हो रहे हैं। वे सुदूर गोवा और केरल तक में काम कर रहे हैं। लेकिन इस आपसी संपर्क का प्रभाव मिला-जुला रहा है।
पूरे देश में हो रही कश्मीर पर चर्चा
भारत सरकार को उम्मीद रही होगी कि इससे युवा कश्मीरी भारत की विविधता और आर्थिक अवसरों से परिचित होंगे और देश से उनका जुड़ाव मजबूत होगा, हालांकि कुछ हद तक ऐसा हुआ भी। लेकिन साथ ही इससे अलगाववादी विचारधारा को अतिवामपंथी मुद्दों और भारतीय मुस्लिम युवाओं के एक छोटे मगर आसानी से प्रभावित होने वाले तबके से जुड़ने का भी अवसर मिला।
2016 के बाद इन मुख्तलिफ़ समूहों को बांधने वाला सूत्र था- प्रधानमंत्री मोदी और भारतीय राज्य के प्रति उनका विरोध। उनकी नज़र में भारतीय राज्य और मोदी एक ही थे। लेकिन शेष भारत में इसकी तीव्र प्रतिक्रिया हुई और इस प्रतिक्रिया की वजह सिर्फ यही नहीं थी कि मोदी को ख़लनायक बताया जा रहा था। प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत लोकप्रियता के बावजूद इस जटिल परिघटना को सिर्फ एक व्यक्ति के संदर्भ में समझना इसका सरलीकरण करना होगा।
ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि कश्मीरी राजनीतिज्ञों, कश्मीरियों को 'पीड़ित' बताए जाने, कश्मीर की अलगाववादी प्रवृत्तियों, कश्मीर में सड़कों पर होने वाले हिंसक प्रतिरोध और कश्मीर से जुड़े चरमपंथ के प्रति लोगों का धीरज पूरी तरह जवाब देने लगा। इस बात को पूरी तरह समझा नहीं गया है कि विवादित क्षेत्र के रूप में कश्मीर (और व्यापक रूप से पाकिस्तान) का मुद्दा अब उत्तर भारत तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि अब यह पूरे देश में विमर्श का विषय बन गया है।
अलगाववादी कश्मीरियों के प्रति नफ़रत पैदा होने के कारण
टेलीविज़न और सोशल मीडिया के जरिए घाटी और देश के अन्य भागों में होने वाले राजनीतिक आयोजनों में कश्मीरी उग्रवाद और भारत विरोधी नारों से जुड़ी तस्वीरों और घटनाओं का देशभर में व्यापक प्रसार हुआ है। इससे अलगाववादी कश्मीरियों के प्रति नफ़रत पैदा हुई।
एक ओर जहां कश्मीर से इतर विश्वविद्यालय परिसरों और अन्य मंचों पर वामपंथी उदारवादी विमर्श में अलगाववादी राजनीति के प्रसार से आज़ादी समर्थकों को नए सहयोगी मिले, वहीं दूसरी ओर उनके विचार मुख्य धारा के व्यापक जनसमुदाय के सामने भी आ गए, जो इनसे सहमत नहीं थे।
1990 के दशक तक भारतीय सशस्त्र बल कई आंतरिक मोर्चों पर लड़ रहे थे। आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार/झारखंड और अन्य राज्यों में माओवाद, असम, मणिपुर, नगालैंड, पंजाब, जम्मू और कश्मीर में अलगाववाद और उग्रवाद।
आज इनमें से अधिकांश मोर्चों पर ओढ़ी हुई चुप्पी और कमोबेश स्थिरता का माहौल है, लेकिन कश्मीर अपवाद है। यह इस बात से स्पष्ट है कि प्रतिवर्ष सैन्य और अर्द्धसैन्य बलों को अधिकांश वीरता पदक जम्मू और कश्मीर में और/या पाकिस्तान के मोर्चे पर की गई कार्रवाई के लिए दिए जाते हैं।
पुलवामा हमले से शुरू हुई ताज़ा घटनाक्रमों की शुरुआत
इन दोनों बातों की वजह से कश्मीर का मुद्दा बेहद उत्तेजित करने वाला और अखिल भारतीय मुद्दा बन गया है। हर तरह के साक्ष्य इस बात की पुष्टि करते हैं। फ़रवरी 2019 में भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को पाकिस्तानी सेना ने बंदी बना लिया।