नेपाल आर्थिक संकट की चपेट में, भारत-चीन का कितना साथ?

BBC Hindi

गुरुवार, 21 अप्रैल 2022 (07:57 IST)
अभिनव गोयल, बीबीसी संवाददाता
नेपाल की अर्थव्यवस्था के ताज़ा हालात को समझने के लिए पहले कुछ आँकड़ों को समझना ज़रूरी है। ख़तरे की घंटी तब बजी जब मार्च 2022 के मध्य में देश का विदेशी मुद्रा भंडार महज़ 975 करोड़ डॉलर रह गया। जुलाई 2021 में ये 1175 करोड़ डॉलर था।
 
करीब सात महीनों में नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 200 करोड़ डॉलर यानी 24 हजार करोड़ नेपाली रुपये कम हो गए हैं।
 
किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा भंडार का बड़ा योगदान होता है। देश का केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा और अन्य परिसंपत्तियों को अपने पास रखता है। विदेशी मुद्रा को ज्यादातर डॉलर में रखा जाता है। जरूरत पड़ने पर इससे देनदारियों का भुगतान भी किया जाता है। जब कोई देश निर्यात के मुकाबले आयात ज्यादा करता है तो विदेशी मुद्रा भंडार नीचे गिरने लगता है।
 
पारंपरिक तौर पर माना जाता है कि किसी देश का विदेशी मुद्रा भंडार कम से कम 7 महीने के आयात के लिए पर्याप्त होना चाहिए। नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार की क्षमता इस वक्त 6।7 महीने की है जो चिंता का विषय है। कम होते विदेशी मुद्रा भंडार को लेकर कुछ लोग नेपाल की तुलना श्रीलंका से भी करने लगे हैं।
 
कम होते विदेशी मुद्रा भंडार और गिरती अर्थव्यवस्था के बाद नेपाल सरकार ने अप्रैल महीने की शुरुआत में सेंट्रल बैंक के गवर्नर महाप्रसाद अधिकारी को निलंबित कर दिया था। नेपाल स्थिति को सुधारने के लिए निर्यात को बढ़ाने और आयात को कम करने के लिए कई कदम उठा रहा है। नेपाल ने विदेशों से आने वाले गैर जरूरी सामानों पर फिलहाल रोक लगा दी है।
 
जब नेपाल की अर्थव्यवस्था में आयात-निर्यात की बात करते हैं तो नेपाल के लिए दो ट्रेड पार्टनर बहुत महत्वपूर्ण हो जाते हैं। पहला भारत और दूसरा चीन।
 
इसकी वजह है कि नेपाल करीब 62 फीसदी विदेशी व्यापार भारत से करता है और करीब 14 प्रतिशत चीन से।
 
भारत पर कितना निर्भर नेपाल
नेपाल राष्ट्र बैंक के साल 2019-20 के प्रोविजनल डेटा को देखते से पता चलता है कि नेपाल ने करीब 1,060 करोड़ डॉलर का विदेशी व्यापार किया। इसमें आयात करीब 980 करोड़ डॉलर और निर्यात करीब 80 करोड़ डॉलर का था।
 
नेपाल विदेशों से कुल जितने रुपये का सामान खरीदता है उसमें करीब 70 फीसदी भारत से आता है। इसका मतलब है नेपाल 70 फीसदी आयात भारत से करता है जो साल 2019-20 में करीब 620 करोड़ डॉलर था।
 
नेपाल भारत से सबसे ज्यादा वाहन और स्पेयर पार्ट्स, सब्जियां, चावल, पेट्रोलियम प्रोडक्ट, मशीनरी, दवाएं, एमएस बिलेट, हॉट स्टील, इलेक्ट्रिक सामान और कोयला खरीदता है।
 
निर्यात की बात करें तो साल 2019-20 में भारत ने नेपाल से करीब 57 करोड़ डॉलर की खरीदारी की। इनमें मुख्य रूप से इलाइची, जूस, जूट, आयुर्वेदिक दवाएं, ऑयल केक, पाम ऑयल और टेक्सटाइल से जुड़ा सामान था।
 
चीन पर कितना निर्भर नेपाल?
भारत के बाद अगर कोई देश है जिससे नेपाल सबसे अधिक व्यापार करता है तो वो चीन है। 2019-20 में नेपाल ने चीन से करीब 149 करोड़ डॉलर का सामान खरीदा और करीब 1 करोड़ डॉलर का सामान बेचा।
 
नेपाल चीन से सबसे ज्यादा दूरसंचार उपकरण और पुर्जे, वीडियो टेलीविजन, केमिकल फर्टिलाइजर, बिजली का सामान, मशीनरी, कच्चा सिल्क, रेडीमेड गारमेंट्स और जूते खरीदता है। वहीं हस्तशिल्प सामान, वुलेन कारपेट, गेहूं का आटा और रेडीमेड गारमेंट जैसा सामान चीन को बेचता है।
 
भारत और चीन दोनों देशों के साथ नेपाल का व्यापार घाटा बहुत अधिक है। यही वजह है कि नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार पर अधिक भार पड़ रहा है क्योंकि विदेशी व्यापार में खरीदारी डॉलर से ही होती है। कोई देश जितना अधिक अपना सामान विदेशों में बेचता है उसका विदेशी मुद्रा भंडार उतना अधिक भरता है।
 
खराब होती अर्थव्यवस्था की क्या वजह है ?
क्या वजह है कि नेपाल का विदेशी व्यापार घाटा इतनी अधिक है? और क्या ये नेपाल की खराब होती अर्थव्यवस्था के पीछे अकेला बड़ा कारण है या फिर कुछ और भी वजहें हैं?
 
नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे हरिबंश झा कहते हैं, ''कोरोना महामारी के बाद नेपाल के पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों पर काफी असर पड़ा है। खासकर चीन के साथ व्यापारिक रिश्ते तेजी से बदले हैं। चीन का सामान नेपाल में तो तेजी से बिक रहा है लेकिन नेपाल अपना सामान चीन में उतनी तेजी से नहीं बेच पा रहा है''
 
कोरोना महामारी के समय से नेपाल की सीमाओं पर बंदिशें लगी हुईं हैं। कोरोना से पहले एक दिन में सैकड़ों ट्रक बॉर्डर पार करते थे, लेकिन महामारी के बाद एक दिन में केवल 5 से 10 ट्रक ही रोजाना क्रॉस कर पा रहे हैं। जिसके चलते नेपाल भारत और चीन से व्यापार नहीं कर पा रहा है।
 
टूरिज़्म पर असर
नेपाल में विदेशी आय का एक बड़ा स्रोत नेपाल है। सालाना लाखों पर्यटक नेपाल जाते हैं इसमें भारत और चीन दोनों देशों के पर्यटक बड़ी संख्या में शामिल हैं।
 
साल 2018 में नेपाल में 15 लाख से ज्यादा टूरिस्ट आए थे जो साल 2019 में घटकर करीब 11 लाख रह गए। साल 2019 में सबसे ज्यादा नेपाल जाने वाले पर्यटकों में भारत के लोग शामिल थे। इनकी संख्या 2 लाख से ज्यादा थी वहीं करीब 1 लाख 70 हजार चीनी पर्यटक नेपाल पहुंचे थे।
 
कोविड के बाद लंबे समय तक नेपाल की सीमा बंद रही और पर्यटक नेपाल घूमने के लिए नहीं जा पाए। पर्यटन नेपाल की आय का एक बड़ा स्त्रोत है जो कोविड के बाद सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है।
 
बीबीसी नेपाली सेवा के संवाददाता संजय ढकाल के मुताबिक़, ''टूरिस्ट का आना केवल चीन से ही कम नहीं हुआ है बल्कि पश्चिम देशों से भी कम हुआ है''
 
काठमांडू पोस्ट की एक ख़बर के मुताबिक़ 2018-19 में टूरिज़्म से नेपाल को 75 बिलियन नेपाली रुपया की कमाई हुई जो 2020-21 में महज़ 7 बिलियन नेपाली रुपया रह गई है। यानी कोरोना महामारी के दौरान टूरिज़्म से कमाई में नेपाल में 90 फ़ीसदी की गिरावट देखी गई है। विदेशी मुद्रा का एक महत्वपूर्ण सोर्स नेपाल के लिए टूरिज़्म है।
 
पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए नेपाल के वित्त मंत्री जनार्दन शर्मा ने कहा कि नेपाल आने वाले टूरिस्ट को फ्री वीज़ा देने पर विचार किया जा रहा है।
 
रेमिटेंस में भारी गिरावट
नेपाल की अर्थव्यवस्था को मजबूती से खड़ा रखने में रेमिटेंस का बड़ा हाथ है। नेपाल की जीडीपी का एक चौथाई हिस्सा रेमिटेंस से ही आता है।
 
विदेशों में काम करने वाले प्रवासी मजदूर या प्रोफेशनल जब पैसे अपने देश में भेजते हैं तो उसे रेमिटेंस कहते हैं। नेपाल के करीब 30 लाख लोग विदेशों में काम करते हैं।
 
विदेशी मामलों के जानकार और द इमेजइंडिया इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष रॉबिंद्र सचदेव बताते हैं, ''कोविड के समय काफी नौकरियां गई हैं जिसके कारण रेमिटेंस में करीब पचास प्रतिशत की गिरावट आई है। रेमिटेंस के जरिए नेपाल में करीब 800 करोड़ डॉलर सालाना आते थे जो घटकर करीब 450 करोड़ डॉलर रह गए हैं। रेमिटेंस में कमी के चलते नेपाल के विदेशी मुद्रा भंडार पर इसका खासा असर पड़ा है''
 
एफ़डीआई निवेश में कमी
नेपाल में FDI निवेश में चीन 2015 से लगातार नंबर एक है। चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक़ नेपाल में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का 90 फ़ीसदी अकेले चीन से आता है। ये निवेश हाइड्रो-पॉवरस, सीमेंट, हर्बल मेडिसिन और टूरिज़्म के क्षेत्र में है।
 
साल 2019-20 में नेपाल में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 95 मिलियन अमेरिकी डॉलर का आना था, जिसमें से 88 मिलियन अमेरिकी डॉलर का वादा अकेले चीन ने किया था।
 
लेकिन कोरोना महामारी और नेपाल में चल रही राजनीतिक अस्थिरता के बीच उसमें काफ़ी गिरावट दर्ज की गई। काठमांडू पोस्ट के मुताबिक नेपाल में भारत की तरफ से इंवेस्टमेंट में करीब 80 प्रतिशत की गिरावट आई है।
 
अमेरिकी निवेश से नाराज चीन
नेपाल में चीन की दिलचस्पी कम होने के पीछे एक और अहम वजह है अमेरिका। अमेरिका और नेपाल के बीच 50 करोड़ डॉलर का एक समझौता 2017 में हुआ था। 'मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन नेपाल (MCC-Nepal)' के तहत अमेरिका यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के विकास के लिए 50 करोड़ डॉलर देने वाला है। इस समझौते में अमेरिका की ओर से नेपाल में बिजली की अल्ट्रा हाई-वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइन बनाने का ज़िक्र है।
 
नेपाल की संसद को उसे दो साल के अंदर मंजूरी देनी थी। नेपाल में सरकार में सहयोगी दल और विपक्षी पार्टियां को इस समझौते के मौजूदा स्वरूप पर एतराज़ था। उनका कहना है कि समझौते में संशोधन होना चाहिए क्योंकि इसके कुछ प्रावधानों से नेपाल की संप्रभुता को ख़तरा हो सकता है।
 
कोरोना महामारी की वजह से इसमें देरी हुई लेकिन आखिरकार 2022 में वो मंजूरी दे दी गई।
 
चीन ने अमेरिका के विरोध में खुल कर तो कुछ नहीं कहा, लेकिन इससे जुड़े सवाल के जवाब में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा, " चीन, नेपाल की संप्रभुता और हितों की कीमत पर स्वार्थी एजेंडे को आगे बढ़ाने वाली प्रतिरोधी कूटनीति और कार्यों का विरोध करता है।"
 
अमेरिका के नेपाल में इस बढ़ते क़दम ने भी चीन और नेपाल की केमिस्ट्री को कुछ हद तक प्रभावित किया है।

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