'भैंस का दूध पीकर गाय बचाने के नारे'

बुधवार, 7 अक्टूबर 2015 (14:29 IST)
- वात्सल्य राय
 
गाय राजनीति का मुद्दा बन गई है। नोएडा के दादरी इलाके में गोमांस खाने के संदेह में अखलाक अहमद की हत्या के बाद गायों के सवाल पर शुरू हुई बहस हर दिन गर्म होती जा रही है।
श्रीगोपाल गोवर्धन गोशाला ट्रस्ट पथमेड़ा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और ट्रस्ट से जुड़े पथमेड़ा पंचगव्य के चेयरमैन जगदीश परिहार ने बीबीसी से बातचीत में आगाह किया, 'सिर्फ राजनीति करने से गाय नहीं बचेगी।'
 
राजस्थान के जालौर जिले में स्थित श्रीगोपाल गोवर्धन गोशाला ट्रस्ट का दावा है कि वह एक लाख 28 हजार लावारिस गायों की देखभाल करता है। परिहार ट्रस्ट के अध्यक्ष रहे हैं और अब भी उसके साथ सक्रिय तौर पर जुड़े हुए हैं।
'नहीं बचेगी गाय' : परिहार ने कहा कि अगर गायों और गाय पालने वाले किसानों की दशा पर ध्यान नहीं दिया गया तो चार दशकों में ही गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। वो चेतावनी देते हैं, 'चालीस से पचास साल बाद गाय की पूजा के लिए फोटो तो मिलेगी लेकिन गाय नहीं मिलेगी।'
 
दादरी की घटना के बाद गायों को लेकर शुरू हुई राजनीति पर परिहार कहते हैं, 'सिर्फ बयान देने से गायों की दशा नहीं सुधरेगी। वो कहते हैं लोग अपने स्वार्थ के लिए राजनीतिक रोटियां सेकने में जुटे हैं।'
 
परिहार कहते हैं, 'जो माइक पर तो बोलते हैं, गाय की जय हो। गाय के लिए टीवी पर बोलते हैं। आंदोलन करते हैं। बहस में बैठते हैं, उनसे पूछो गाय का दूध और घी घर में इस्तेमाल करते हो? वो दूध तो पीते हैं भैंस का और बहस करते हैं गाय के लिए।'
नीयत पर सवाल : परिहार मानते हैं कि गायों को मां कहा जाता है, लेकिन उसकी देखभाल मां की तरह नहीं की जाती। गायों को बचाने के लिए उन पर ध्यान देना जरूरी है।
 
वो कहते हैं, 'जितने आदमी गाय के लिए बोलते हैं अगर वो गाय की सेवा में लग जाएं तो दूसरे दिन कहीं गौशाला की जरूरत नहीं रहेगी। किसान को अगर दूध का मूल्य पूरा मिल जाए तो वो गाय क्यों छोड़ेगा? गोमूत्र का पैसा मिले तो वो गाय क्यों छोड़ेगा? दूध न देने वाली गाय भी वो अपने घर रखेगा।'
 
वर्षों से गायों की देखरेख में जुटे परिहार का दावा है कि गायों के नाम पर राजनीति करने वाले ज्यादातर लोग घर में गाय नहीं रखते। वो सरकार के रवैए से भी निराश हैं।
शेर बनाम गाय : परिहार कहते हैं, 'शेरों के लिए करोड़ों खर्च करने वाली सरकार गाय के लिए खर्च नहीं करती। वजह ये है कि गाय की बात सांप्रदायिक हो जाती है।' परिहार के मुताबिक श्रीगोपाल गोवर्धन गोशाला ट्रस्ट 1993 से निराश्रित गायों की देखभाल में जुटा है।
 
उनका दावा है कि ट्रस्ट जिन गायों की देखभाल कर रहा है उनमें से सिर्फ दो फीसदी ही दूध देती हैं। ये संस्था 'एक परिवार, एक गाय' नियम से गायों को बचाने की मुहिम चला रही है।

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