शवों के साथ एकांत का शौक रखने वाला यह तानाशाह

Webdunia
सोमवार, 6 अगस्त 2018 (15:52 IST)
- रेहान फ़ज़ल
 
चार अगस्त, 1972, को बीबीसी के दिन के बुलेटिन में अचानक समाचार सुनाई दिया कि युगांडा के तानाशाह ईदी अमीन ने युगांडा में वर्षों से रह रहे 60000 एशियाइयों को अचानक देश छोड़ देने का आदेश दे दिया है। उन्होंने ये भी ऐलान किया कि उन्हें देश छोड़ने के लिए सिर्फ़ 90 दिन का समय दिया जाता है।
 
 
छह फ़ीट चार इंच लंबे और 135 किलो वज़न वाले ईदी अमीन को हाल के विश्व इतिहास के सबसे क्रूर और निर्दयी तानाशाहों में गिना जाता है। एक ज़माने में युगांडा के हैवी वेट बॉक्सिंग चैंपियन रहे ईदी अमीन 1971 में मिल्टन ओबोटे को हटा कर सत्ता में आए थे। अपने आठ वर्ष के शासन काल में उन्होंने क्रूरता के इतने वीभत्स उदाहरण पेश किए जिसकी मिसाल आधुनिक इतिहास में बहुत कम ही मिलती है।
 
 
चार अगस्त,1972 को ईदी अमीन को अचानक एक सपना आया और उन्होंने युगांडा के एक नगर टोरोरो में सैनिक अधिकारियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अल्लाह ने उनसे कहा है कि वो सारे एशियाइयों को अपने देश से तुरंत निकाल बाहर करें।
 
 
अमीन ने कहा, ''एशियाइयों ने अपने आप को युगांडावासियों से अलग-थलग कर लिया है और उन्होंने उनके साथ मिलने-जुलने की कोई कोशिश नहीं की है। उनकी सबसे ज़्यादा रुचि युगांडा को लूटने में रही है। उन्होंने गाय को दुहा तो है, लेकिन उसे घास खिलाने की तकलीफ़ गवारा नहीं की है।'
 
 
एशियाइयों को निकालने की सलाह मिली थी कर्नल ग़द्दाफ़ी से
शुरू में अमीन की इस घोषणा को एशियाई लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया। उन्हें लगा कि अमीन ने अपने सनकपन में ये ऐलान कर दिया है। लेकिन थोड़े दिनों में उन्हें पता चल गया कि अमीन उन्हें अपने देश से बाहर कर देने के लिए उतारू हैं।
 
 
वैसे तो बाद में अमीन ने कई बार स्वीकार किया कि ये फ़ैसला लेने की सलाह अल्लाह ने उनके सपने में आ कर दी थी, लेकिन अमीन के शासन पर बहुचर्चित किताब 'गोस्ट ऑफ़ कंपाला' लिखने वाले जॉर्ज इवान स्मिथ लिखते हैं, 'इसकी प्रेरणा उन्हें लीबिया के तानाशाह कर्नल ग़द्दाफ़ी से मिली थी, जिन्होंने उन्हें सलाह दी थी कि उनके देश पर उनकी पकड़ तभी मज़बूत हो सकती है, जब वो उसकी अर्थव्यवस्था पर अपना पूरा नियंत्रण कर लें। उन्होंने उनसे कहा कि जिस तरह उन्होंने अपने देश में इटालियंस से पिंड छुड़ाया है, उसी तरह वो भी एशियाइयों से अपना पिंड छुड़ाएं।'
 
 
सिर्फ़ 55 पाउंड ले जाने की इजाज़त
जब ये घोषणा हुई तो ब्रिटेन ने अपने एक मंत्री जियॉफ़्री रिपन को इस मंशा से कंपाला भेजा कि वो अमीन को ये फ़ैसला बदलने के लिए मना लेंगे। लेकिन जब रिपन वहाँ पहुंचे तो अमीन ने कहलवाया कि वो बहुत व्यस्त होने के कारण अगले पांच दिनों तक उनसे नहीं मिल पाएंगे। रिपन ने लंदन वापस लौटने का फ़ैसला किया।
 
 
जब उनके अधिकारियों ने उन्हें समझाया तो चौथे दिन अमीन जा कर रिपन से मिलने को तैयार हुए। लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ। अमीन अपने फ़ैसले पर अड़े रहे। भारत सरकार ने भी स्थिति का जाएज़ा लेने के लिए भारतीय विदेश सेवा के एक अधिकारी निरंजन देसाई को कंपाला भेजा।
 
 
निरंजन देसाई याद करते हैं, ''जब मैं कंपाला पहुंचा तो वहाँ हाहाकार मचा हुआ था। उनमें से बहुत से लोग अपनी पूरी ज़िंदगी में युगांडा से बाहर नहीं गए थे। हर व्यक्ति को अपने साथ सिर्फ़ 55 पाउंड और 250 किलो सामान ले जाने की इजाज़त थी। कंपाला से बाहर रहने वाले एशियाइयों को इन नियमों की भी जानकारी नहीं थी।''
 
 
लोगों ने लॉन में अपना सोना गाड़ा
अमीन का ये फ़ैसला इतना अचानक था कि युगांडा की सरकार इसे लागू करने के लिए तैयार नहीं थी। कुछ अमीर एशियाइयों ने अपने धन को ख़र्च करने का नायाब तरीका निकाला।
 
 
निरंजन देसाई बताते हैं, 'उन लोगों में इस तरह की सोच बन गई कि अगर आप अपना पैसा बाहर नहीं ले जा सकते हैं तो उसे स्टाइल से उड़ा दीजिए। कुछ अक्लमंद लोग अपना पैसा बाहर ले जाने में कामयाब भी हो गए। सबसे आसान तरीका था पूरी दुनिया घूमने का पूरे परिवार के लिए फ़र्स्ट क्लास टिकट ख़रीदना जिसमें एम सीओ के ज़रिए होटल बुकिंग पहले से ही कर दी गई हो।'
 
 
उन्होंने कहा, ''इन एमसीओ (मिसिलेनियस चार्ज ऑर्डर) को बाद में युगांडा से निकलने के बाद भुनाया जा सकता था। कुछ लोगों ने अपनी गाड़ियों की कार्पेट के नीचे ज़ेवर रख कर पड़ोसी देश कीनिया पहुंचाए। कुछ लोगों ने पार्सल के ज़रिए अपने ज़ेवर इंग्लैंड भेज दिए। दिलचस्प बात ये है कि ये सभी अपने गंतव्य स्थान पर सुरक्षित पहुंच भी गए। कुछ को उम्मीद थी कि वो कुछ समय बाद वापस युगांडा लौट आएंगे। इसलिए उन्होंने अपने ज़ेवर अपने लॉन या बगीचे में गाड़ दिए। मैं कुछ ऐसे लोगों को भी जानता हूं जिन्होंने अपने ज़ेवर बैंक ऑफ़ बड़ोदा की स्थानीय ब्रांच के लॉकर में रखवा दिए। उनमें से कुछ लोग जब 15 साल बाद वहाँ गए तो उनके ज़ेवर उस लॉकर में सुरक्षित थे।'
 
 
अंगुली से अंगूठी काट कर उतरवाई गई
इस समय लंदन में रह रही गीता वाट्स को वो दिन अब भी याद हैं जब वो लंदन जाने के लिए एनतेबे हवाई अड्डे पहुंची थीं। गीता बताती हैं, ''हम लोगों को अपने साथ ले जाने के लिए सिर्फ़ 55 पाउंड दिए गए थे। जब हम हवाई अड्डे पहुंचे तो लोगों के सूटकेस खोल कर देखे जा रहे थे। उनकी हर चीज़ बाहर निकाल कर फेंकी जा रही थी, ताकि वो देख सकें कि उसमें सोना या पैसा तो छिपा कर नहीं रखे गए हैं।''
 
 
''पता नहीं किस वजह से मेरे माता-पिता ने मेरी अंगुली में सोने की एक अंगूठी पहना दी थी। हमसे कहा गया कि मैं अंगूठी उतार कर उन्हें दे दूँ। अंगूठी इतनी कसी थी कि मेरी अंगुली से उतर ही नहीं रही थी। आख़िर में उन्होंने उसे काट कर मेरी अंगुली से अलग किया। सबसे ख़तरनाक चीज़ ये थी कि जब अंगूठी को काटा जा रहा था, तो ऑटोमेटिक हथियार लिए युगांडाई सैनिक हमें घेर कर खड़े थे।'
 
 
32 किलोमीटर की दूरी में पाँच बार तलाशी
बहुत से एशियायियों को अपनी दुकानें और घर ऐसे ही खुले छोड़ कर आना पड़ा। उन्हें अपना घर का सामान बेचने की इजाज़त नहीं थी। युगांडाई सैनिक उनका वो सामान भी लूटने की फ़िराक में थे, जिन्हें वो अपने साथ बाहर ले जाना चाहते थे।
 
 
निरंजन देसाई बताते हैं, 'कंपाला शहर से एनतेबे हवाई अड्डे की दूरी 32 किलोमीटर थी। युगांडा से बाहर जाने वाले हर एशियाई को बीच में बने पांच रोड ब्लॉक्स से हो कर जाना पड़ता था। हर रोड ब्लॉक पर उनकी तलाशी होती थी और सैनिकों की पूरी कोशिश होती थी कि उनसे कुछ न कुछ सामान ऐंठ लिया जाए।'
 
 
मैंने निरंजन देसाई से पूछा कि एशियाई लोगों की छोड़ी गई बेपनाह संपत्ति का हुआ क्या?
 
 
देसाई का जवाब था, ''ज़्यादातर सामान अमीन सरकार के भ्रष्ट मंत्रियों और सैनिक अधिकारियों के हाथ लगे। आम लोगों को इसका बहुत कम हिस्सा मिल पाया। वो लोग इस तरह हथियाई हुई संपत्ति को कोड भाषा में 'बांग्लादेश' कहते थे।'... उन्होंने कहा, ''उस ज़माने में ही बांग्लादेश नया-नया आज़ाद हुआ था। सैनिक अधिकारियों को अक्सर ये कहते सुना जाता था कि उनके पास इतने 'बांग्लादेश' हैं।''
 
 
जॉर्ज इवान स्मिथ अपनी किताब 'गोस्ट ऑफ़ कंपाला' में लिखते हैं, ''अमीन ने एशियाइयों की ज़्यादातर दुकानें और होटल अपने सैनिकों को दे दिए। इस तरह के वीडियो मौजूद हैं जिसमें अमीन अपने सैनिक अधिकारियों के साथ चल रहे हैं। उनके साथ हाथ में नोट बुक लिए एक असैनिक अधिकारी भी चल रहा है और अमीन उसे आदेश दे रहे हैं कि फ़लाँ दुकान को फ़लाँ ब्रिगेडियर को दे दिया जाए और फ़लाँ होटल फ़लाँ ब्रिगेडियर को सौंप दिया जाए।'
 
 
वो लिखते हैं, ''इन अधिकारियों को अपना घर तक चलाने की भी तमीज़ नहीं थी। वो मुफ़्त में मिली दुकानों को क्या चला पाते। वो एक जनजातीय प्रथा का पालन करते हुए अपने कुनबे के लोगों को आमंत्रित करते और उनसे कहते कि वो जो चाहें, वो चीज़ यहाँ से ले जा सकते हैं। उनको इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं था कि कहाँ से नई चीज़ें ख़रीदी जाएं और इन चीज़ों का क्या दाम वसूला जाए। नतीजा ये हुआ कि कुछ ही दिनों में पूरी अर्थव्यवस्था धरातल पर पहुंच गई।''
 
 
अमीन की क्रूरता और बर्बरता
इस पूरी घटना से अमीन की छवि पूरी दुनिया में एक नीम सनकी शासक के रूप में फैल गई। उनकी क्रूरता की और कहानियाँ भी पूरी दुनिया को पता चलने लगीं। अमीन के समय में स्वास्थ्य मंत्री रहे हेनरी केयेंबा ने एक किताब लिखी 'अ स्टेट ऑफ़ ब्लड: द इनसाइड स्टोरी ऑफ़ ईदी अमीन' जिसमें उन्होंने अमीन की क्रूरता के ऐसे क़िस्से बताए कि पूरी दुनिया ने दाँतो तले अंगुली दबा ली।
 
 
केयेंबा ने लिखा, ''अमीन ने अपने दुश्मनों को न सिर्फ़ मारा बल्कि उनके मरने के बाद उनके शवों के साथ भी बर्बरता पूर्ण व्यवहार किया। युगांडा के मेडिकल समुदाय के बीच ये बात आम थी कि मुर्दाघर में रखे बहुत से शवों के साथ छेड़छाड़ की गई थी और उनके गुर्दे, लिवर, नाक, होंठ और गुप्तांग गायब मिलते थे। जून 1974 में जब विदेश सेवा के एक अधिकारी गॉडफ़्री किगाला को गोली मारी गई तो उसकी आँखें निकाल ली गईं और उनके शव को कंपाला के बाहर जंगलों में फेंक दिया गया।''
 
 
केयेंबा ने बाद में एक बयान दिया कि कई बार अमीन ने ज़ोर दिया कि वो मारे गए लोगों के शवों के साथ कुछ समय अकेले में बिताना चाहते हैं। जब मार्च 1974 में कार्यवाहक सेनाध्यक्ष ब्रिगेडियर चार्ल्स अरूबे की हत्या हुई तो अमीन उनके शव को देखने मुलागो अस्पताल के मुर्दाघर में आए।
 
 
उन्होंने उपचिकित्सा अधीक्षक क्येवावाबाए से कहा कि वो उन्हें शव के साथ अकेला छोड़ दें। किसी ने ये नहीं देखा कि अमीन ने अकेला छोड़े जाने पर उस शव के साथ क्या किया, लेकिन कुछ युगांडावासियों का मानना है कि उन्होंने अपने दुश्मन का ख़ून पिया जैसा कि काकवा जनजाति में प्रथा है। अमीन काकवा जनजाति से आते थे।
 
 
मानव गोश्त खाने के आरोप
केयेंबा लिखते हैं, ''कई बार राष्ट्रपति और दूसरे लोगों के सामने शेख़ी बघारी थी कि उन्होंने मानव का गोश्त खाया है। मुझे याद है अगस्त 1975 में जब अमीन कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के अपनी ज़ाएर यात्रा के बारे में बता रहे थे तो उन्होंने कहा कि वहाँ उन्हें बंदर का गोश्त परोसा गया जो कि मानव के गोश्त से अच्छा नहीं था।
 
 
लड़ाई के दौरान अक्सर होता है कि आपका साथी सैनिक घायल हो जाता है। ऐसे में उसको मार कर खा जाने से आप भुखमरी से बच सकते हैं।'' एक और मौक़े पर अमीन ने एक उगांडा के एक डॉक्टर को बताया था कि मानव का गोश्त तेंदुए के गोश्त से ज़्यादा नमकीन होता है।
 
 
रेफ़्रीजरेटर में मानव का कटा हुआ सिर
अमीन के एक पुराने नौकर मोज़ेज़ अलोगा ने कीनिया भाग आने के बाद एक ऐसी कहानी सुनाई थी जिस पर आज के युग में विश्वास करना मुश्किल है। अमीन के समय में युगांडा में भारत के उच्चायुक्त रहे मदनजीत सिंह ने अपनी किताब कल्चर ऑफ़ द सेपल्करे में लिखा है, अलोगा ने बताया, ''अमीन के पुराने घर कमांड पोस्ट में एक कमरा हमेशा बंद रहता था। सिर्फ़ मुझे ही उसके अंदर घुसने की इजाज़त थी और वो भी उसे साफ़ करने के लिए।''
 
 
''अमीन की पांचवीं बीबी सारा क्योलाबा को इस कमरे के बारे में जानने की बहुत उत्सुक्ता थी। उन्होंने मुझसे उस कमरे को खोलने के लिए कहा। मैं थोड़ा झिझका क्योंकि अमीन ने मुझे आदेश दिए थे कि उस कमरे में किसी को घुसने नहीं दिया जाए। लेकिन जब सारा ने बहुत ज़ोर दिया और मुझे कुछ पैसे भी दिए तो मैंने उस कमरे की चाबी उन्हें सौंप दी। कमरे के अंदर दो रेफ़्रीजरेटर रखे हुए थे। जब उन्होंने एक रेफ़्रीजरेटर को खोला तो वो चिल्ला कर बेहोश हो गईं। उसमें उनके एक पूर्व प्रेमी जीज़ गिटा का कटा हुआ सिर रखा हुआ था।'
 
 
अमीन का हरम
सारा के प्रेमी की तरह अमीन ने कई और महिलाओं के प्रेमियों के सिर कटवाए थे। जब अमीन की दिलचस्पी इंडस्ट्रियल कोर्ट के प्रमुख माइकल कबाली कागवा की प्रेमिका हेलेन ओगवांग में जगी तो अमीन के बॉडीगार्ड्स ने उन्हें कंपाला इंटरनेशनल होटल के स्वीमिंग पूल से उठवा कर गोली मार दी। बाद में हेलेन को पेरिस में युगांडा के दूतावास में पोस्ट किया गया, जहाँ से वो भाग निकलीं।
 
 
अमीन मेकरेरे विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर विंन्सेंट एमीरू और तोरोरो के रॉक होटल के मैनेजर शेकानबो की पत्नियों के साथ भी सोना चाहते थे। इन दोनों को बाकायदा योजना बना कर मारा गया। अमीन के इतने प्रेम संबंध थे कि उनकी गिनती करना मुश्किल है। कहा जाता है कि एक समय में उनका कम से कम 30 महिलाओं का हरम हुआ करता था जो पूरे युगांडा में फैला होता था। ये महिलाएं ज़्यादातर होटलों, दफ़्तरों और अस्पतालों में नर्सों के रूप में काम करती थीं।
 
 
अमीन की चौथी पत्नी मेदीना भी एक बार उनके हाथों मरते-मरते बाल बाल बची थीं। हुआ ये कि फ़रवरी 1975 में अमीन की कार पर कंपाला के पास गोलीबारी की गई। अमीन को शक हो गया कि मेदीना ने हत्या की कोशिश करने वालों को कार के बारे में जानकारी दी थी। अमीन ने मेदीना को इस बुरी तरह से पीटा कि उनकी खुद की कलाई टूट गई।
 
 
अधिकतर एशियाइयों को ब्रिटेन ने शरण दी
बहरहाल एशियाइयों को निकाले जाने के बाद युगांडा की पूरी अर्थव्यवस्था तहसनहस हो गई। निरंजन देसाई बताते हैं, 'चीज़ों की इतनी कमी हो गई जिनकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। होटलों में किसी दिन मक्खन ग़ायब हो जाता तो किसी दिन ब्रेड। कंपाला के कई रेस्तराँ अपने मेन्यू कार्ड की इस तरह हिफ़ाजत करने लगे जैसे वो कोई सोने की चीज़ हो। वजह थी कि शहर के प्रिंटिंग उद्योग पर एशियाइयों का एकाधिकार था।'
 
 
निकाले गए 60000 लोगों में से 29000 लोगों को ब्रिटेन ने शरण दी। 11000 लोग भारत आए। 5000 लोग कनाडा गए और बाकी लोगों ने दुनिया के अलग अलग देशों में पनाह ली। ज़मीन से शुरुआत करते हुए इन लोगों ने ब्रिटेन के रिटेल उद्योग की पूरी सूरत बदल दी। ब्रिटेन के हर शहर के हर चौराहे पर पटेल की दुकान खुल गई और वो लोग अख़बार और दूध बेचने लगे।
 
 
आज युगांडा से ब्रिटेन में जा कर बसा पूरा समुदाय बहुत समृद्ध है। ब्रिटेन में इस बात के उदाहरण दिए जाते हैं कि किस तरह बाहर से आए पूरे समुदाय ने न सिर्फ़ अपने आप को ब्रिटेन की संस्कृति में ढाला बल्कि उसके आर्थिक उत्थान में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
 
 
भारत सरकार के रवैये पर सवाल
इस त्रासदी पर सबसे आश्चर्यजनक और ढुलमुल रवैया था भारत सरकार का...उन्होंने इसे युगांडा के आंतरिक मामले की तरह लिया और अमीन प्रशासन के ख़िलाफ़ विश्व जनमत बनाने की कोई कोशिश नहीं की। नतीजा ये रहा कि लंबे समय तक पूर्वी अफ़्रीका में रहने वाला भारतीय समुदाय भारत से दूर चला गया और ये समझता रहा कि उनके मुश्किल समय में उनके अपने देश ने उनका साथ नहीं दिया।
 
 
ईदी अमीन आठ वर्ष तक सत्ता में रहने के बाद उसी ढ़ंग से सत्ता से हटाए गए, जैसे उन्होंने सत्ता पर कब्ज़ा किया था। उनको पहले लीबिया और फिर सऊदी अरब ने अपने यहाँ शरण दी जहाँ 2003 में 78 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
 

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