- बर्टिल फाल्क (लेखक)
इंदिरा गांधी और उनके पति फिरोज़ गांधी के बीच रिश्तों के तार काफी उलझे हुए थे। लेकिन इंदिरा ने फिरोज़ की मौत के बाद एक ख़त में लिखा कि जब भी उन्हें फिरोज़ की ज़रूरत महसूस हुई वो उन्हें साथ खड़े दिखे। दोनों के बीच तनाव तब शुरू हुआ जब इंदिरा अपने दोनों बच्चों को लेकर लखनऊ स्थित अपना घर छोड़ कर पिता के घर आनंद भवन आ गईं।
शायद ये संयोग नहीं था लेकिन इसी साल यानी 1955 में फिरोज़ ने कांग्रेस पार्टी के भीतर भ्रष्टाचार विरोधी अभियान शुरू किया। इंदिरा गांधी इसी साल पार्टी की वर्किंग कमेटी और केंद्रीय चुनाव समिति सदस्य बनी थीं। उन दिनों संसद में कांग्रेस का ही वर्चस्व था। विपक्षी पार्टियां ना केवल छोटी थीं बल्कि बेहद कमज़ोर भी थीं। इस कारण नए बने भारतीय गणतंत्र में एक तरह का खालीपन था।
हालांकि फ़िरोज़ सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़े परिवार के करीब थे, वो विपक्ष के अनौपचारिक नेता और इस युवा देश के पहले व्हिसलब्लोअर बन गए थे। उन्होंने बड़ी सावधानी से भ्रष्ट लोगों का पर्दाफ़ाश किया जिस कारण कईयों को जेल जाना पड़ा, बीमा उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया गया और वित्त मंत्री को इस्तीफ़ा तक देना पड़ा।
जब फिरोज़ ने इंदिरा को फासीवादी कहा
फ़िरोज़ के ससुर जवाहरलाल नेहरू उनसे खुश नहीं थे और इंदिरा गांधी ने भी कभी संसद में फिरोज़ के महत्वपूर्ण काम की तारीफ़ नहीं की। फिरोज़ पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी पत्नी के ऑथेरीटेटिव प्रवृत्ति को पहचान लिया था। साल 1959 में जब इंदिरा गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष थीं उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि केरल में चुनी हुई पहली कम्यूनिस्ट सरकार को पलट कर वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाए।
आनंद भवन में नाश्ते की मेज़ पर फिरोज़ ने इसके लिए इंदिरा को फ़ासीवादी कहा। उस वक्त नेहरू भी वहीं मौजूद थे। इसके बाद एक स्पीच में उन्होंने लगभग आपातकाल के संकेत दे दिए थे। फ़िरोज़ गांधी अभिव्यक्ति की आज़ादी के बड़े समर्थक थे। उस दौर में संसद के भीतर कुछ भी कहा जा सकता था लेकिन अगर किसी पत्रकार ने इसके बारे में कुछ कहा या लिखा तो उन्हें इसकी सज़ा दी जा सकती थी।