भारतीय रेल में होने वाले हादसे इशारा करते हैं कि रेलवे इतिहास के सबक़ नहीं लेता है। इसलिए रेलवे में हादसों का इतिहास बार-बार ख़ुद को दोहराता है। रेलवे में हर हादसे के बाद मंत्रालय की तरफ़ से कमिश्नर या चीफ़ कमिश्नर ऑफ़ रेलवे सेफ़्टी की जांच का आदेश होता है। रेलवे में जान या माल या दोनों के नुक़सान का जो मामला सीआरएस की जांच के लायक पाया जाता है, उसकी जांच कराई जाती है।
इसका मक़सद रेल हादसों से सबक़ लेना और कार्रवाई करना होता है ताकि भविष्य में ऐसे हादसों को टाला जा सके। अगर सीआरएस की जांच संभव न हो तो रेलवे में कई बार हादसों या किसी गंभीर घटना की जांच रेलवे के उच्च अधिकारियों की समिति से भी कराई जाती है।
जांच रिपोर्ट की तस्वीर
सीआरएस रेलवे के ही अधिकारी होते हैं और उन्हें डेप्युटेशन (प्रतिनियुक्ति) पर नागरिक उड्डयन मंत्रालय में पोस्टिंग दी जाती है। बताया जाता है कि ऐसा सीआरएस की जांच को पक्षपात से बचाने के लिए किया जाता है।
सीआरएस अपनी जांच में घटना स्थल का दौरा करता है और स्थानीय लोगों से बात भी की जाती है। जांच की प्रक्रिया में चश्मदीद, रेलवे कर्मचारी और मीडिया कवरेज को भी ज़रूरत के मुताबिक़ शामिल किया जाता है।
दरअसल, हर हादसे के बाद घटना स्थल पर राहत कार्य को फ़ौरन शुरू करना सबसे ज़रूरी होता है। ऐसे में कई बार क्षतिग्रस्त डिब्बे, पटरी और अन्य चीज़ों को घटना स्थल से हटाना पड़ता है।
इस तरह से घटना स्थल की तस्वीर काफ़ी बदल जाती है और पूरी जानकारी इकट्ठा कर पाना आसान नहीं होता है।
लेकिन किसी हादसे की जांच रिपोर्ट और उस पर हुई कार्रवाई के बारे में जानने की कोशिश की जाए तो इसकी बहुत ही धुंधली जानकारी हमारे सामने होती है।
हमने इसके लिए सीआरएस की वेबसाइट से कुछ जानकारी जुटाने की कोशिश की तो पाया कि इसके ज़्यादा कॉलम खाली पड़े हैं।
इस वेबसाइट से पता चलता है कि कई साल पुराने मामलों पर अब भी रेल मंत्रालय ने कोई कार्रवाई नहीं की है, या ऐसी कार्रवाई की जानकारी आम लोगों या मुसाफिरों से साझा नहीं की गई है।
हमने हाल के वर्षों में भारत में हुए कुछ बड़े रेल हादसों और उसके बाद रेलवे के एक्शन के बारे में जानने की कोशिश की है।
हादसे पर कार्रवाई
19 अगस्त 2017: इस दिन उत्तर प्रदेश राज्य के खतौली में एक बड़ा रेल हादसा हुआ था। यहां पुरी से हरिद्वार जा उत्कल एक्सप्रेस ट्रेन के 14 डब्बे पटरी से उतर गए थे।
खतौली में पटरी पर मरम्मत का काम चल रहा था और उसी दौरान ट्रेन को चलने के लिए सिग्नल दे दिया गया। इस हादसे में क़रीब 23 लोगों की मौत हुई थी और कई मुसाफिर घायल हुए थे।
इस हादसे के फ़ौरन बाद रेलवे के कुछ बड़े अधिकारियों को जबरन छुट्टी पर भी भेजा गया था। पटरी की मरम्मत कर रहे रेलवे के ट्रैकमैन, लोहार और जूनियर इंजीनियर समेत 14 लोगों को फ़ौरन नौकरी से निकाल दिया गया।
ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फ़ेडरेशन के महामंत्री शिव गोपाल मिश्रा के मुताबिक़ बाद में कमिश्नर रेलवे सेफ़्टी की जांच में पाया गया कि हादसे के लिए केवल रेलवे का जूनियर इंजीनियर ज़िम्मेवार है, इसलिए बाक़ी लोगों को नौकरी में बहाल कर दिया गया।
इसी हादसे के बाद तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। इसके अलावा रेलवे के बड़े अधिकारी कुछ दिन बाद ही काम पर वापस आ गए थे।
22 जनवरी 2017: आंध्र प्रदेश के विजयनगरम ज़िले में हीराखंड एक्सप्रेस ट्रेन के आठ डब्बे पटरी से उतर गए थे। इस हादसे में क़रीब 40 लोगों की मौत हुई थी। शुरू में इस हादसे को एक षडयंत्र बताया गया था और इसकी जांच में एनआईए को शामिल किया गया था।
ख़बरों के मुताबिक़ सीआरएस ने तीन साल के बाद इसकी जांच में पाया कि यह हादसा रेल फ़्रैक्चर यानी टूटी पटरी की वजह से हुआ था। इसके लिए सीधे तौर पर ईस्ट कोस्ट रेलवे के सिविल इंजिनियरिंग विभाग को ज़िम्मेवार बताया गया था।
20 नवंबर 2016: कानपुर के पास पुखरायां में पटना- इंदौर एक्सप्रेस के 14 डिब्बे पटरी से उतर गए। इस हाससे में क़रीब 150 लोगों की मौत हुई थी।
मोदी सरकार के दौरान हुआ यह पहला बड़ा रेल हादसा था। इस हादसे के पीछे भी पहले किसी तरह के षडयंत्र जताया गया। ख़बरों के मुताबिक़ उसी के आधार पर एनआईए ने इसकी जांच भी शुरू की थी।
शिव गोपाल मिश्रा बताते हैं कि बाद में इसमें कोई षडयंत्र नहीं पाया गया था। रेलवे की जांच में पांच रेल कर्मियों को इसके लिए दोषी पाया गया और उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। इनमें दो सीनियर सेक्शन इंजीनियर, दो ट्रैकमैन और एक सीईटी शामिल थे।
20 मार्च 2015: देहरादून- वाराणसी जनता एक्सप्रेस पटरी से उतर गई। इस हादसे में क़रीब 35 लोग मारे गए थे। यह हादसा उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले में हुआ था।
सीआरएस की जांच में इस हादसे के लिए रेलवे के एक सिग्नल मेंटेनर को ज़िम्मेवार पाया गया और उसे नौकरी से निकाल दिया गया था।
10 जुलाई 2011: कानपुर के पास मलवां में हावड़ा से दिल्ली की तरफ़ आ रही कालका मेल ट्रेन पटरी से उतर गई। इस घटना में क़रीब 70 लोगों की मौत हुई थी।
इस हादसे पर एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रेलवे को सीसीआरएस की रिपोर्ट पर हुई कार्रवाई का ब्यौरा सौंपने का आदेश दिया था।
जुलाई 2011 में कोर्ट ने कहा था कि 2010 के बाद रेलवे ने ऐसे हर मामले पर क्या कार्रवाई की है उसकी जानकारी कोर्ट में सौपी जाए। यानी ऐसी कार्रवाई के बारे में जानकारी के लिए याचिकाकर्ता को कोर्ट का सहारा लेना पड़ा था।
छोटे कर्मचारियों पर एक्शन
शिव गोपाल मिश्रा हादसे के लिए छोटे कर्मचारियों पर हुई कार्रवाई पर कहते हैं कि रेलवे में ढाई लाख़ पद खाली पड़े हैं और इनमें दो लाख सेफ़्टी से जुड़े पद हैं जबकि काम हो रहा है स्टेशनों की रंगाई पुताई का।
उनके मुताबिक़, "रेलवे के छोटे कर्मचारियों के ख़िलाफ़ एक्शन लेने से आज तक कुछ नहीं बदला है। केवल बड़ी बातें करने से नहीं होता है। रेलवे में सिग्नलिंग और सेफ़्टी को पुख़्ता करने के लिए एक लाख़ करोड़ रुपये की ज़रूरत है जबकि पिछले दो बजट में दो सौ करोड़ रुपये दिए गए हैं।"
रेलवे बोर्ड के पूर्व मेंबर (ट्रैफ़िक) श्रीप्रकाश कहते हैं, "रेलवे में जांच के बाद हमेशा कार्रवाई होती है। निचले स्तर पर काम करने वाले कर्मचारियों पर एक्शन के पीछे वजह यह है कि ज़मीनी स्तर पर ट्रेन का संचालन वही करते हैं और उन पर ट्रेनों को सही समय पर चलाने का दबाव भी बहुत ज़्यादा होता है। इसी में उनसे ग़लती भी होती है।"
श्रीप्रकाश के मुताबिक़ अगर किसी सिग्लन में कोई ख़राबी आ जाए तो मेंटेनेंस रूम जाना होता है और मेंटेनेंस रूम में सुरक्षा के लिहाज से दो ताले होते हैं, जिसकी चाबी दो लोगों के पास होती है।
"इसे कब खोला गया, कब बंद किया गया, क्या काम किया गया; इन सब बातों को लिखित तौर पर दर्ज़ करना होता है। इसमें लंबा समय लग सकता है और इस दौरान कोई ट्रेन नहीं चल सकती। इस दबाव में कई बार शॉर्ट-कट तरीका अपनाया जाता है, जिसमें ग़लती की भी संभावना होती है।"
भारत में बार-बार होने वाले रेल हादसों के लिए क्या निचले स्तर रेलकर्मी ही ज़िम्मेदार होते हैं या इसके पीछे कुछ अन्य वजह भी है। इसका जवाब भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक यानी सीएजी की एक रिपोर्ट में मिलता है।
हादसों की सबसे बड़ी वजह
सीएजी ने साल 2017-18 से साल 2021-22 के बीच रेलवे में सेफ़्टी से जुड़े कई मुद्दों पर ग़ौर कर पिछले साल एक रिपोर्ट सौपी थी।
सीएजी ने पाया कि ट्रैक रिकॉर्डिंग कार से पटरी के कंडिशन के बारे में जानकारी जुटाने के मामले में 30 से 100 फ़ीसदी तक की कमी रही है।
पटरी के मरम्मत के लिए ब्लॉक (ताकि उस समय कोई ट्रेन न चले) न देने के 32 फ़ीसदी मामले सामने आए जबकि 30 फ़ीसदी मामलों में सबंधित डिविज़न ने ब्लॉक लेने और पटरी के मरम्मत का प्लान ही तैयार नहीं किया था।
सीएजी ने 1129 जांच रिपोर्ट के अध्ययन के बाद रेल हादसे की 24 मुख्य वजहें पाईं हैं। ट्रेन के पटरी से उतरने के 422 मामलों में रेलवे के इंजीनियरिंग विभाग की ग़लती पाई गई। इसमें 171 मामले तो केवल ट्रैक के रखरखाव में कमी की वजह से हुए थे।
ऐसे हादसों के पीछे दूसरी बड़ी ग़लती रेलवे के मैकेनिकल विभाग की पाई गई। सीएजी ने इसमें सबसे बड़ी वजह ख़राब पहिए और कोच का इस्तेमाल होना बताया।
ऐसे 154 हादसे ट्रेन के लोको पायलट की ग़लती से पाए गए। इसमें ख़राब ड्राइविंग या तय रफ़्तार से ज़्यादा गति से ट्रेन चलाने की वजह से हादसे हुए थे।
ट्रेन हादसों के 275 मामलों में रेलवे के ऑपरेटिंग विभाग की ग़लती भी पाई गई। इसमें पाइंट्स यानी आम ज़ुबान में पटरी की ग़लत सेटिंग को एक बड़ी वजह पाया गया। यानि ट्रेन को जाना किसी और ट्रैक पर था लेकिन उसे किसी और ट्रैक पर भेज दिया गया।
सीएजी ने पाया कि रेलवे हादसों से जुड़े 63 फ़ीसदी जांच रिपोर्ट को समय सीमा के अंदर संबंधित अधिकारी को नहीं सौंपा गया जबकि 49 फ़ीसदी मामलों में संबंधित अधिकारी ने जांच रिपोर्ट लेने में देरी की।