पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता आनंद शर्मा ने हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की संचालन समिति से इस्तीफ़ा दे दिया है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक आनंद शर्मा ने सोनिया गांधी को लिखे पत्र में कहा है कि वो अपने आत्मसम्मान से समझौता नहीं करेंगे। अपने पद से इस्तीफ़ा देते हुए शर्मा ने कहा कि मैं आजीवन कांग्रेसी ही रहा हूं और अपने विश्वास पर दृढ़ रहूंगा।
आनंद शर्मा पार्टी के ऐसे पहले नेता नहीं है जिन्होंने नाराज़गी ज़ाहिर की हो। कांग्रेस में असंतुष्ट नेताओं का एक बड़ा समूह है जिसे जी-23 कहा जाता है और जो समय-समय पर किसी न किसी तरीक़े से अपना असंतोष ज़ाहिर करता रहता है।
इसी साल मई में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल पार्टी से अलग हो गए थे। सिब्बल इस समय समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सदस्य हैं। जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री ग़ुलाम नबी आज़ाद भी समय-समय पर पार्टी से नाराज़गी ज़ाहिर करते रहते हैं।
ग़ुलाम नबी आज़ाद ने पांच दिन पहले ही जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की चुनाव समिति के प्रमुख के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। उन्हें कुछ घंटे पहले ही ये पद दिया गया था। आनंद शर्मा को भी इसी साल अप्रैल में हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की चुनाव समिति का प्रमुख बनाया गया था।
हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अब हिमाचल प्रदेश में आनंद शर्मा का कोई बड़ा जनाधार नहीं है और वो इसे कांग्रेस में अपना क़द बढ़वाने की राजनीतिक पैंतरेबाज़ी बता रहे हैं। कांग्रेस पर नज़र रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई कहते हैं, ये एक राजनीतिक पैंतरा है, क्योंकि कांग्रेस में अंदरुनी राजनीति काफी मुखर हो चुकी है।
किदवई कहते हैं, आनंद शर्मा पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं लेकिन राज्य की राजनीति में वो बहुत सक्रिय नहीं हैं। ना ही वो हिमाचल प्रदेश में मख्यमंत्री पद के दावेदार हैं और ना ही पार्टी में कोई बड़ा धड़ा है जो उनके पीछे हो। इस परिप्रेक्ष्य में ऐसा लगता है कि वो शायद चाहते हैं कि उनकी मान-मुनव्वल की जाए क्योंकि अभी चुनावों में पर्याप्त समय है।
आनंद शर्मा की गिनती हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में होती है। आनंद शर्मा सबसे पहले साल 1982 में विधानसभा के लिए चुने गए थे। साल 1984 में इंदिरा गांधी ने आनंद शर्मा को राज्यसभा भेजा था और वो तब से ही लगातार राज्यसभा के सदस्य हैं।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि आनंद शर्मा का जितना क़द है पार्टी ने उन्हें उतना दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर आनंद शर्मा कांग्रेस नहीं छोड़ रहे हैं तो फिर नख़रे क्यों दिखा रहे हैं? वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक विनोद शर्मा मानते हैं कि आनंद शर्मा का ये क़दम कोई ऐसी घटना नहीं है जिसका हिमाचल प्रदेश की राजनीति पर बड़ा असर होने जा रहा है।
विनोद शर्मा कहते हैं, आनंद शर्मा को तो पहले ही कई बार राज्यसभा की सदस्यता दी जा चुकी है। उन्हें चुनाव अभियान समिति का चेयरमैन बनाया गया लेकिन उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया। जिस तरह से ग़ुलाम नबी ने इस्तीफ़ा दिया था वैसे ही आनंद शर्मा ने दे दिया है। ये कोई बड़ी राजनीतिक घटना नहीं है।
हालांकि आनंद शर्मा के चुनाव समिति से इस्तीफ़ा देने से पार्टी की चुनावी तैयारियों पर भले ही बहुत असर ना हो लेकिन इससे जनता के बीच पार्टी की छवि पर असर पड़ सकता है। विनोद शर्मा कहते हैं, ऐसी गतिविधियों से कांग्रेस को नुक़सान होता है, जनता में ये छवि बनती है कि पार्टी में एकजुटता नहीं है। लेकिन अगर जानाधार देखा जाए तो हिमाचल प्रदेश में आनंद शर्मा का अपना कोई जनाधार नहीं है जैसा कि वीरभद्र सिंह का है। इसलिए उनके इस कदम का पार्टी पर कोई बहुत व्यापक असर नहीं होगा।
हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष हैं और नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री चेयरमैन हैं। ये दोनों ही काफ़ी सक्रिय हैं। इनके अलावा और भी कई क्षेत्रीय नेता हैं जो सक्रिय हैं। ऐसे में हिमाचल प्रदेश में आनंद शर्मा की कोई बहुत बड़ी भूमिका नहीं है। बावजूद इसके उन्होंने चुनाव समिति से इस्तीफ़ा दे दिया।
कांग्रेस के केंद्रीय संगठन के चुनाव भी होने हैं और इस बात को लेकर अभी संशय है कि राहुल गांधी पार्टी की कमान संभालेंगे या नहीं। विश्लेषक मानते हैं कि हो सकता है कि संगठन के चुनावों से पहले आनंद शर्मा अपना क़द बढ़ाने की कोशिश कर रहे हों।
रशीद क़िदवई कहते हैं, कांग्रेस संगठन का चुनाव होने वाला है। कयास लगाए जा रहे हैं कि राहुल गांधी आएंगे या कोई और आएगा। ऐसे में ग़ुलाम नबी आज़ाद और आनंद शर्मा जैसे नेता जो कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं के समूह जी-23 का हिस्सा हैं उन्हें लेकर ये सवाल है कि उन्हें कार्यसमिति में लिया जाएगा या नहीं। क्या उन्हें कांग्रेस में फ़ैसला लेने वाले कोर ग्रुप में शामिल किया जाएगा?
किदवई कहते हैं, ऐसा लगता है कि ये उसके लिए ही लड़ाई है। ये आनंद शर्मा की पैंतरेबाज़ी है। एक राजनीतिक पत्ता उन्होंने फेंका है।